शोध में टिकाऊ प्रथाओं की ओर बदलाव को बढ़ावा देने के लिए इनसे संबंधित शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों की मांग की गई है और कई प्रबंधन रणनीतियों का प्रस्ताव दिया गया है। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, अल्बर्ट कोक
वन्य जीव एवं जैव विविधता

टाइगर शार्क और रे की 43 फीसदी प्रजातियां संकट में: अध्ययन

शोध में भारत में प्रभावी टाइगर शार्क संरक्षण के लिए मछुआरों, व्यापारियों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को शामिल करते हुए एक सहयोगी नजरिए की आवश्यकता जताई गई है।

Dayanidhi

भारत में कई प्रजातियां या तो विलुप्त होने की कगार पर हैं या खतरे में हैं। केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडी (कुफोस) के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययनों ने हिंद महासागर में शार्क प्रजातियों की घटती आबादी के बारे में चिंता जाहिर की है। प्रतिष्ठित टाइगर शार्क (गैलियोसेर्डो क्यूवियर) पर दुनिया भर में किए गए अध्ययनों में गिरावट आने की बात कही गई है इसलिए शार्क संरक्षण की मांग उठ रही है

दुनिया भर में टाइगर शार्क की आबादी घट रही है, इस प्रजाति को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में 'संकटग्रस्त की कगार' के रूप में आंका गया है। इसके बावजूद इसके बारे में क्षेत्रीय प्रबंधन के लिए आवश्यक बुनियादी जानकारी का अभाव है।

बायोलॉजिकल कंजर्वेशन नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि अरब सागर में जी. क्यूवियर की आबादी और गतिशीलता को देखा गया, जो दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण शार्क वाली क्षेत्रों में से एक है।

साल 2023 और 2024 में 16 महीनों में कोचीन में उतरे जी. क्यूवियर के अवधि और आवृत्ति के आंकड़ों ने 180 से 240 सेमी लंबाई वर्ग वाली शार्कों का खुलासा किया, जिसमें सबसे बड़ी टाइगर शार्क 405 सेमी लंबी थी। लगभग 95 फीसदी युवा वयस्क पकड़े जाते हैं और वे बायकैच या व्यावसायिक रूप से पकड़े जाने के तौर पर सामने आते हैं, जो उतरने वाले शार्क या शार्क लैंडिंग के लगभग 23 फीसदी में योगदान करते हैं।

प्रतिष्ठित टाइगर शार्क (गैलियोसेर्डो क्यूवियर) पर दुनिया भर में किए गए अध्ययनों में गिरावट आने की बात कही गई है इसलिए शार्क संरक्षण की मांग उठ रही है।

पश्चिमी हिंद महासागर में शार्क और रेज की कुल 264 प्रजातियां के बारे में जानकारी हैं, जिनमें से 43 फीसदी खतरे में हैं। पश्चिमी हिंद महासागर के कुछ हिस्से शार्क शेरीज के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि अरब सागर, जिसमें दुनिया की चोंड्रिचथियन प्रजातियों में से 15 फीसदी मौजूदगी है, जिनमें से आधे से अधिक खतरे में हैं।

अध्ययन के दौरान कोचीन में उतरे टाइगर शार्क में से लगभग 98 फीसदी चारा वाली लॉन्गलाइन का उपयोग करके शार्क पकड़ने वालों के निशाने पर थे, जबकि शेष दो फीसदी गिलनेट और ट्रॉल शेरीज के दौरान पकड़े गए थे।

शोध में टाइगर शार्क संरक्षण क्षेत्र बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया है। हिंद महासागर टूना आयोग के विपरीत, जो दुनिया भर में टूना को पकड़ने पर नजर रखता है, शार्क संरक्षण के पास ऐसा कोई निकाय नहीं है। कुछ देशों ने टाइगर शार्क पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है। क्योंकि भारत में इस पर प्रतिबंध नहीं है, इसलिए शार्क पकड़ने वाले दूर-दूर तक गहरे समुद्र में जाते हैं।

साथ ही शोध में भारत में प्रभावी टाइगर शार्क संरक्षण के लिए मछुआरों, व्यापारियों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को शामिल करते हुए एक सहयोगी नजरिए की आवश्यकता जताई गई है। एक और प्रमुख बाधा स्थानीय मछुआरों के अनुपालन को सुनिश्चित करना है।

शोध में टिकाऊ प्रथाओं की ओर बदलाव को बढ़ावा देने के लिए इनसे संबंधित शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों की मांग की गई है और कई प्रबंधन रणनीतियों का प्रस्ताव दिया गया है। जिसमें पपिंग और नर्सरी ग्राउंड जैसे प्रमुख आवासों के लिए संरक्षित क्षेत्र स्थापित करना, अत्यधिक मछली पकड़ने को रोकने के लिए न्यूनतम कानूनी आकार सहित आकार प्रतिबंध लागू करना और लंबे समय तक स्थिरता के लिए सहभागी शोध को बढ़ावा देना शामिल है।