प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
जल

तय सीमा से कम भूजल का उपयोग कर रहा है विदर्भ क्रिकेट संघ

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और सीमित भूजल उपयोग से किया जा रहा मैदान का रखरखाव; विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन ने एनजीटी में दी जानकारी

Susan Chacko, Lalit Maurya

विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को जानकारी दी है कि वो निर्धारित सीमा से कम भूजल का उपयोग कर रहा है। साथ ही उसने जल संरक्षण के लिए कई उपाय किए हैं।

एसोसिएशन का कहना है कि 2018 से ही बारिश की बूंदों को संजोने के लिए प्रणाली स्थापित की गई थी, जो सक्रिय रूप से काम कर रही है। इसके साथ ही 2014 में दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी स्थापित किए गए थे। इनकी क्षमता 10 किलोलीटर प्रतिदिन है। इन प्लांट्स की मदद से हर दिन क्रमशः 7.2 और 9.2 क्यूबिक मीटर पानी ट्रीट हो रहा है। इनका रख-रखाव ‘डायकी एक्सिस इंडिया’ द्वारा किया जा रहा है। मैदान की सिंचाई के लिए नगरपालिका या किसी अन्य स्रोत से ताजा पानी नहीं लिया जा रहा है।

हालांकि जल संरक्षण के सभी उपायों के बावजूद, मैदान का सालभर रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए सीमित मात्रा में भूजल का उपयोग आवश्यक है।

क्या है पूरा मामला

यह जानकारी विदर्भ क्रिकेट संघ ने 15 जुलाई 2025 को अपने जवाब में दी है। गौरतलब है कि एसोसिएशन ने यह जानकारी एनजीटी द्वारा 19 मार्च 2025 को दिए आदेश को ध्यान में रखते हुए दी है।

अपने इस आदेश में अदालत ने सभी क्रिकेट संघों से यह जानकारी मांगी थी कि वे मैदान की सिंचाई के लिए कितने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से ट्रीट किए पानी और कितने ताजे पानी का उपयोग कर रहे हैं। साथ ही, सालभर में कुल कितना पानी सिंचाई में उपयोग होता है और उसमें एसटीपी के ट्रीटेड और ताजे पानी का अनुपात क्या है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि स्टेडियम यह स्पष्ट करें कि ताजे पानी की कमी के बावजूद क्या वे सिंचाई के लिए उसका उपयोग जारी रखना चाहते हैं, और साथ ही अदालत ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग की स्थिति के बारे में ब्योरा देने का निर्देश दिया था।

विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन ने कहा कि उसे 2 दिसंबर 2021 को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण से 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी)' मिला है, जो 1 दिसंबर 2026 तक मान्य है। इस एनओसी के तहत एसोसिएशन को प्रतिदिन 33 घन मीटर और सालाना 11,814 घन मीटर भूजल उपयोग की अनुमति है। हालांकि, वास्तविक उपयोग इस सीमा से काफी कम है। भूजल की निगरानी के लिए संघ ने 'फोर्ब्स मार्शल' नामक एजेंसी को नियुक्त किया है।

एसोसिएशन ने इस बात की भी पुष्टि की है कि यह स्टेडियम नागपुर में स्थित है, जो "सुरक्षित क्षेत्र" की श्रेणी में आता है।

बता दें कि इससे पहले भी अप्रैल 2021 में एनजीटी ने क्रिकेट मैदानों के लिए भूजल के बढ़ते उपयोग को लेकर एक आदेश जारी किया था, जिसमें पानी बचाने के लिए हर संभव उपाय किए जाने के लिए कहा गया था। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ नागिन नंदा की पीठ ने अपने इस आदेश में कहा था कि पीने के पानी को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए।

क्रिकेट या अन्य मैदानों के लिए जहां तक संभव हो, वेस्ट वाटर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए| साथ ही पानी की गुणवत्ता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए| यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उस पानी में किसी तरह के कोई रोगजनक और आक्रामक घटक न हों। इसके साथ ही अदालत ने अनिवार्य रूप से बारिश की बूंदों को संजोने का निर्देश दिया था।