जक्कुर झील बेंगलुरु की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी झीलों में से एक है। इस झील का निर्माण करीब 200 साल पहले कराया गया था, ताकि बेंगलुरु के जक्कुर उपनगर और आसपास के गांवों के लिए पानी संरक्षित किया जा सके। हेब्बल घाटी के 65 हेक्टेयर हिस्से में फैली इस ऐतिहासिक झील से लोगों को पीने और सिंचाई के लिए पानी मिलता रहा है। प्रवासी पक्षियों को भी सदियों से इस झील में आश्रय मिलता रहा है।
लेकिन, बीते कुछ दशकों में शहरों के दूसरे जल स्रोतों की तरह जक्कुर झील भी प्रदूषण व अतिक्रमण की चपेट में आ गई। शहर का सीवेज भी इसी झील में डंप किया जाने लगा। 2000 के दशक की शुरुआत से झील के आसपास अपार्टमेंट्स के कब्जे पनपने लगे। आसपास के उद्योगों ने भी झीलों को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिससे स्थानीय समुदायों के साथ ही वहां की जैवविविधता भी खतरे में पड़ गई।
झील की बदतर हालत देखकर आखिरकार बैंगलोर विकास प्राधिकरण (बीडीए) नींद से जागा और साल 2005 में झील के पुनरुद्धार के लिए परियोजना शुरू की गई। 2010-11 तक झील को जिंदा करने की ये कोशिशें चलती रहीं, लेकिन इसमें कचरा फेंकने और सीवेज बहाने पर रोक नहीं लगाई जा सकी। ऐसे में इन कोशिशों का कोई नतीजा नहीं निकला। 2014-15 में बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) ने इस झील को अपने नियंत्रण में ले लिया। इसके बाद इसके पुनरुद्धार में वित्तीय बाधाएं रोड़ा बनने लगीं।
2011 में बेंगलुरु स्थित एक ट्रस्ट जल पोषण ने जक्कुर झील के कायाकल्प के लिए टीम का गठन किया। झील के पुनरुद्धार की दिशा में यह एक बड़ा कदम था। इस टीम ने बीबीएमपी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे सरकारी संस्थाओं के साथ साझेदारी की। साथ ही पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर रिसर्च के लिए बायोम एनवायरनमेंटल सॉल्यूशंस और अशोका ट्रस्ट जैसी संस्थाओं को भी साथ मिलाया। शुरू में स्वयंसेवकों के साथ झील की साप्ताहिक सफाई जैसी कोशिशें की गईं, लेकिन टीम को जल्द ही समझ आ गया कि इस समस्या के निपटारे के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
साल 2022 में कर्नाटक सरकार ने अमृत नगरोथाना योजना के तहत 200 करोड़ रुपए के अनुदान की घोषणा की, ताकि जक्कुर झील समेत बेंगलुरु व आसपास की 67 झीलों को फिर से जिंदा किया जा सके। इसके लिए सबसे पहले झील में जमा गाद निकालने, कब्जे रोकने के लिए बाड़ लगाने जैसे काम शुरू किए गए। इसके साथ ही तीसरे स्तर पर पानी की सफाई के लिए 2.8 हेक्टेयर में वेटलैंड बनाने काम भी शुरू हुआ। प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करने के लिए जैव विविधता पार्क भी बनाया गया।
इसी बीच बैंगलोर जल आपूर्ति एवं स्वच्छता बोर्ड ने वहां एक बड़े सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना की। 10 मिलियन लीटर प्रतिदिन क्षमता वाला यह प्लांट झील को पुनर्जीवित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। यह प्लांट 12,500 से ज्यादा घरों से निकलने वाले वेस्ट वाटर को साफ करता है, जिससे हर दिन 8 मिलियन लीटर साफ पानी मिलता है। प्लांट से साफ हो चुका पानी जक्कुर झील से पहले वेटलैंड में पहुंचता है। झील के भरने के बाद अतिरिक्त पानी बहकर रचेनहल्ली और केलकेरे जैसी झीलों में पहुंचता है। इससे पानी का एक बड़ा नेटवर्क बन जाता है।
प्लांट और वेटलैंड से साफ हो चुके पानी ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित कर दिया है। आसपास के कुओं और बोरवेल रिचार्ज हो गए हैं। मछुआरों के साथ ही आजीविका के दूसरे साधन भी बढ़ गए हैं। मत्स्य पालन विभाग की तरफ से मछली पकड़ने के लिए नियमित तौर पर टेंडर जारी किए जा रहे हैं। पीक सीजन के दौरान मछुआरे हर दिन 500 किलो तक मछलियां पकड़ लेते हैं। वन विभाग की तरफ से जल पोषण ट्रस्ट को देसी प्रजातियों के पौधे उपलब्ध कराए जा रहे हैं, ताकि घुसपैठिया पौधों को हटाया जा सके।
जक्कुर झील का पुनरोद्धार करने वाली टीम के सदस्य मोहम्मद रफी कहते हैं, “यह झील सरकार और आम लोगों की साझेदारी का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस झील से 2 किमी के दायरे में हर दिन कम से कम 5 मिलियन ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज होने में मदद मिलती है। इतना ही नहीं, यह झील 500 से ज्यादा वनस्पतियों और जीवों का पोषण भी कर रही है।”