आईआईटी मद्रास और डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने जीनों के 'स्विच' मेकैनिज्म की खोज की है, जो जटिल बीमारियों जैसे कैंसर और डायबिटीज के इलाज में मददगार हो सकती है।
यह अध्ययन दिखाता है कि कैसे जीनों की परस्पर क्रियाएं शरीर के मेटाबॉलिज्म को बदल सकती हैं, जिससे नई चिकित्सा पद्धतियों का विकास संभव है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास और डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है, जिससे यह समझा जा सका है कि कैसे दो या उससे अधिक जीनों की परस्पर क्रियाएं शरीर की छिपी हुई कोशिकीय गतिविधियों को सक्रिय कर सकती हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक जेनेटिक वेरिएंट्स आपस में मिलकर एक 'स्विच' की तरह काम कर सकते हैं, जिससे यह कोशिकीय गतिविधियां सक्रिय हो जाती हैं। अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे दो या उससे अधिक जीन आपस में मिलकर समय के साथ शरीर के मेटाबॉलिस्म (उपापचय) को बदल सकती हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह अध्ययन कैंसर, डायबिटीज और न्यूरो-डिजेनेरेटिव जैसी जटिल बीमारियों को जड़ से समझने और उनके इलाज खोजने में मददगार साबित हो सकता है। अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि यह जटिल बीमारियां केवल एक जीन की गड़बड़ी से नहीं, बल्कि कई जीनों की आपसी क्रिया से पनपती हैं।
वहीं श्रीजित ससीकुमार ने इसे सरल शब्दों में समझाते हुए कहा, “यह कुछ ऐसा है जैसे दो स्विच एक साथ ऑन करते ही कोई छुपा हुआ बैकअप सिस्टम चालू हो जाए। इससे सिस्टम का व्यवहार पूरी तरह बदल जाता है। समय के साथ इन परिवर्तनों को देखना जरूरी है, क्योंकि कई असर केवल एक खास समय पर ही सामने आते हैं।”
यह शोध आईआईटी मद्रास के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के पीएचडी छात्र श्री श्रीजित ससीकुमार और प्रोफेसर हिमांशु सिन्हा के नेतृत्व में किया गया। इसमें डेनमार्क की टेक्निकल यूनिवर्सिटी की डॉक्टर शन्नारा टेलर पार्किन्स और डॉक्टर सुरेश सुदर्शन ने सहयोग किया है। अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन में दिखाया गया है कि कैसे यीस्ट (खमीर) में कुछ खास जीन वेरिएंट आपस में मिलकर एक पहले से निष्क्रिय मेटाबोलिक पाथवे को सक्रिय कर सकते हैं। खोज यह समझने का एक आधार देती है कि कैसे कई जीन मिलकर इंसानों सहित जटिल जीवों के स्वास्थ्य और बीमारियों को प्रभावित करते हैं।
अध्ययन में देखा गया है कि जब यीस्ट के दो विशेष जीन वेरिएंट एमकेटी1 (89जी) और टीएओ3 (4477सी) एक साथ मौजूद होते हैं, तो एक निष्क्रिय माने जाने वाला आर्जिनिन जैवसंश्लेषण मार्ग सक्रिय हो जाता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने टाइम-बेस्ड मल्टी-ओमिक्स तकनीक, जिसमें ट्रांसक्रिप्टोमिक्स, प्रोटीओमिक्स और मेटाबोलोमिक्स शामिल हैं, का इस्तेमाल करके यह समझा है कि ये जीन स्विच कैसे कोशिकाओं की गतिविधि को दोबारा प्रोग्राम करते हैं।
जीन-से-जीन की बातचीत ने खोले जैविक रहस्य
खोज साबित करती है कि जीन अकेले काम नहीं करते, बल्कि उनके संयोजन से नए और अप्रत्याशित जैविक परिणाम सामने आ सकते हैं। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि इस जीन-जीन की पारस्परिक क्रिया ने एक नए जैविक नियम को उजागर किया है, जो बताता है कि कैसे जीन के अलग-अलग बदलाव मिलकर ऐसे नए परिणाम बना सकते हैं जो अकेले काम करने पर नहीं दिखते।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर हिमांशु सिन्हा का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “इस खोज के नतीजे केवल यीस्ट तक सीमित नहीं हैं। कैंसर और डायबिटीज जैसी बीमारियां अक्सर एक जीन के बदलाव से नहीं, बल्कि कई जीनों की पारस्परिक क्रिया से होती हैं। अध्ययन में दर्शाया गया है कि कैसे समय के साथ ये जीन आपस में मिलकर शरीर के मेटाबॉलिस्म को बदल सकते हैं।“
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस खोज के नतीजे इलाज के नए रास्ते खोल सकते हैं, जहां व्यक्ति विशेष की जीन को ध्यान में रखते हुए इलाज तय किया जा सकेगा। साथ ही यह शोध नए बायोमार्कर और दवाओं के लक्ष्य की पहचान में भी मदद कर सकता है, जिससे बीमारियों की पहचान और इलाज दोनों में सुधार हो सकता है।
साथ ही इसका उपयोग सिंथेटिक बायोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी में भी किया जा सकता है, जहां जीन की खास तरह से डिजाइन की गई क्रियाएं कुछ विशेष रास्तों को सक्रिय या बंद कर सकती हैं। इससे दवाओं, बायोफ्यूल और अन्य उपयोगी पदार्थों का उत्पादन बेहतर किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों को भरोसा है कि इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनका उपयोग कृषि और उद्योगों में भी किया जा सकता है। इनकी मदद से ऐसे फसलें तैयार की जा सकती हैं, जो गर्मी, सूखा, कीटों के हमलों सह सकती हैं। साथ ही इसकी मदद से बेहतर सूक्ष्मजीव तैयार किए जा सकते हैं।
वैज्ञानिकों को भरोसा है कि इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनका उपयोग कृषि और उद्योगों में भी किया जा सकता है। इनकी मदद से ऐसे फसलें तैयार की जा सकती हैं, जो गर्मी, सूखा, कीटों के हमलों सह सकती हैं। साथ ही माइक्रोबियल इंजीनियरिंग में भी इसे आजमाया जा सकता है। देखा जाए तो यह शोध न केवल जीनों के बीच परस्पर क्रियाओं को समझने का नया ढांचा देता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे भविष्य में चिकित्सा हर व्यक्ति के जीन प्रोफाइल पर आधारित हो सकती है।
आईआईटी मद्रास की यह खोज आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य और जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।