दुनिया में 3.4 अरब लोग अभी भी सुरक्षित रूप से प्रबंधित शौचालय सुविधाओं से वंचित हैं।
लगभग 35.4 करोड़ लोग आज भी खुले में शौच करने को मजबूर हैं, जिससे स्वास्थ्य और सुरक्षा खतरे बढ़ते हैं।
स्वच्छता की कमी और दूषित पानी के कारण रोजाना 1,000 से अधिक पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत होती है।
स्वच्छता तंत्र से निकलने वाली मीथेन गैस जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर पिघलने की समस्या को और बढ़ा रही है।
भारत में स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 11.73 करोड़ से अधिक शौचालय बने और 5.57 लाख गांव ओडीएफ प्लस घोषित हुए।
हर साल 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि दुनिया के हर व्यक्ति को सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय उपलब्ध कराना कितना आवश्यक है। शौचालय केवल एक सुविधा नहीं है, बल्कि यह मानव गरिमा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समानता से जुड़ा हुआ मुद्दा है।
बहुत से लोग इसे सामान्य बात मान लेते हैं, लेकिन दुनिया के करोड़ों लोगों के पास आज भी सुरक्षित शौचालय की सुविधा नहीं है। इसी समस्या पर गौर करने और लोगों तथा सरकारों को जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित करने के लिए यह दिन मनाया जाता है।
विश्व शौचालय दिवस का इतिहास
विश्व शौचालय दिवस की शुरुआत सिंगापुर के समाजसेवी जैक सिम ने की थी। उन्होंने 19 नवंबर को विश्व शौचालय संगठन (विश्व शौचालय संगठन -डब्ल्यूटीओ) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में स्वच्छता से जुड़ी समस्याओं को उजागर करना और उनके समाधान के लिए लोगों को जागरूक करना था।
साल 2010 में संयुक्त राष्ट्र ने पानी और स्वच्छता को मानव का मूल अधिकार घोषित किया। इसके बाद विश्व शौचालय दिवस का संदेश और भी मजबूत हुआ। अंततः 14 जुलाई 2013 को संयुक्त राष्ट्र ने 19 नवंबर को आधिकारिक रूप से विश्व शौचालय दिवस के रूप में मान्यता दी। तब से यह दिन वैश्विक स्तर पर मनाया जा रहा है।
साल 2025 की थीम: ‘बदलती दुनिया में स्वच्छता’
साल 2025 के लिए विश्व शौचालय दिवस की थीम - 'बदलती दुनिया में स्वच्छता' है। इस थीम का मुख्य संदेश यह है कि दुनिया तेजी से बदल रही है,जनसंख्या बढ़ रही है, शहर फैल रहे हैं, जलवायु परिवर्तन नई चुनौतियां पैदा कर रहा है। ऐसे समय में हमें ऐसे स्वच्छता तंत्रों की आवश्यकता है जो भविष्य के लिए तैयार हों, मजबूत हों, टिकाऊ हों और हर व्यक्ति को सुविधा दे सकें।
वैश्विक स्वच्छता की स्थिति
स्वच्छता के क्षेत्र में दुनिया ने काफी काम किया है, लेकिन अभी भी कई गंभीर चुनौतियां बनी हुई हैं :
लगभग 3.4 अरब लोग अभी भी सुरक्षित रूप से प्रबंधित शौचालय सुविधाओं से वंचित हैं।
लगभग 35.4 करोड़ लोग आज भी खुले में शौच करते हैं, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ता है और महिलाओं-लड़कियों की सुरक्षा पर असर पड़ता है।
दूषित पानी, स्वच्छता की कमी और गंदगी के कारण रोजाना 1,000 से अधिक पांच वर्ष से से कम उम्र के बच्चों की मौत हो जाती है।
स्वच्छता तंत्र से निकलने वाली मीथेन गैस ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्र स्तर बढ़ने की समस्या को और गंभीर बनाती है।
डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ का अनुमान है कि 2030 तक भी तीन अरब लोग सुरक्षित शौचालय से वंचित रह सकते हैं, जो एसडीजी-6 को हासिल करने में बड़ी बाधा होगी।
यह आंकड़े बताते हैं कि स्वच्छता केवल स्वास्थ्य से जुड़ा विषय नहीं है, बल्कि पर्यावरण और सामाजिक विकास का मूल स्तंभ भी है।
भारत में स्वच्छता की दिशा में कदम : स्वच्छ भारत मिशन
भारत सरकार ने साल 2014 में स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) शुरू किया। यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान माना जाता है। इसका उद्देश्य खुले में शौच की प्रथा को समाप्त करना और गांव-शहर दोनों में शौचालयों का विस्तार करना था।
स्वच्छ भारत मिशन – ग्रामीण (एसबीएम-जी)
साल 2024 तक ग्रामीण क्षेत्रों में 11.73 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया। देश के 5.57 लाख से अधिक गांवों को ओडीएफ प्लस घोषित किया जा चुका है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, बेहतर स्वच्छता के कारण 2019 तक दस्त से होने वाली तीन लाख मौतों में कमी देखी गई।
ओडीएफ गांवों में हर परिवार ने औसतन 50,000 रुपये की स्वास्थ्य खर्च में बचत दर्ज की। सबसे अहम बात यह रही कि 93 फीसदी महिलाओं ने कहा कि शौचालय बनने के बाद उन्हें अधिक सुरक्षित महसूस होता है।
स्वच्छ भारत मिशन – शहरी (एसबीएम-यू)
साल 2024 तक शहरी इलाकों में 63.63 लाख घरों के शौचालय और 6.36 लाख से अधिक सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण हुआ। देश के 4,576 शहर ओडीएफ घोषित किए जा चुके हैं, जबकि अनेक शहर ओडीएफ प्लस और ओडीएफ प्लस-प्लस की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
इन उपलब्धियों ने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और महिलाओं की गरिमा को मजबूत किया है। यह मिशन दुनिया के लिए एक उदाहरण बना है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनभागीदारी एक साथ आएँ, तो बड़े बदलाव संभव हैं।
विश्व शौचालय दिवस हमें यह याद दिलाता है कि सुरक्षित शौचालय किसी व्यक्ति की बुनियादी गरिमा से जुड़ा अधिकार है। आज भी दुनिया में करोड़ों लोगों के पास यह सुविधा नहीं है, इसलिए सरकारों, संगठनों और आम नागरिकों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
भारत का स्वच्छ भारत मिशन यह साबित करता है कि सही दिशा में किए गए प्रयास कितने प्रभावशाली हो सकते हैं।
एक स्वच्छ, स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य तभी संभव है जब हर व्यक्ति के पास सुरक्षित शौचालय की सुविधा हो, यही विश्व शौचालय दिवस का असली संदेश है।