नदी

जहरीली होती जीवनधाराएं, भाग-चार: पूरी दुनिया की चिंता का सबब बनी प्रदूषित नदियां

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने विश्व नदी दिवस के आयोजन को “वाटर फॉर लाइफ” दशक के लक्ष्यों के लिए उपयुक्त माना

DTE Staff

नदियां हमें प्रकृति से मिले सबसे कीमती उपहारों में से एक हैं। वे हमारे भोजन और ताजे पानी का सबसे बड़ा स्रोत भी हैं। हमारे जीवन का आधार भी यही नदियां हैं। वे मछलियों और दूसरे जीवों को घर मुहैया कराती हैं। हमारा पूरा पारिस्थितिकी तंत्र इन्हीं नदियों पर निर्भर है, इसलिए हमें इन्हें संरक्षित करना होगा। दुर्भाग्य से नदियों में बढ़ता प्रदूषण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए संकट बनता जा रहा है। इस प्रदूषण की बड़ी वजह जल निकायों पर बढ़ता दबाव और तेजी से बढ़ती इंसानों की आबादी है। भारत की 1569 मील लंबी गंगा दुनिया की 5 सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। इसके प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह बिना ट्रीटमेंट के इसमें बहा दिया गया दूषित सीवेज है।

नदियों के संरक्षण को लेकर दुनियाभर में चिताएं हैं। लगभग हर देश में नदियों को कई खतरों का सामना करना पड़ता है। हम केवल अपनी सक्रिय भागीदारी के जरिए ही भविष्य में उनके अस्तित्व, उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं।

वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने “वाटर फॉर लाइफ” दशक की शुरुआत की, ताकि जल संसाधनों की बेहतर देखभाल के लिए जागरुकता बढ़ाई जा सके। इसके बाद विश्व नदी दिवस की शुरुआत की गई। यह पहल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध नदी अधिवक्ता मार्क एंजेलो की तरफ से 1980 में दिए गए प्रस्ताव का नतीजा थी।

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने विश्व नदी दिवस के आयोजन को “वाटर फॉर लाइफ” दशक के लक्ष्यों के लिए उपयुक्त माना। इसलिए उन्होंने मार्क के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

दुनिया भर में नदी की सुरक्षा में जुटे लोग पहले विश्व नदी दिवस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए एक साथ आए। 2005 में इसका उद्घाटन कार्यक्रम बहुत सफल रहा। कई देशों में नदी दिवस का धूमधाम से आयोजन किया गया। हर साल सितंबर के चौथे रविवार को मनाया जाने वाला यह आयोजन लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले साल 100 से अधिक देशों में करोड़ों लोग जलमार्गों के इस उत्सव में शामिल हुए।

कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में स्वच्छ मीठे पानी का महत्व भी बहुत रहा। इसलिए विश्व नदी दिवस दुनिया भर के लाखों लोगों के लिए एक साथ आने, स्वस्थ, जीवंत जलमार्गों के महत्व का जश्न मनाने का यह सही समय है। इस साल (2024) की थीम “शांति के लिए जल” है, जिसमें कई और विषय भी शामिल हैं। इन्हीं में स्ट्रीम कनेक्टिविटी को बनाए रखने या बहाल करने की आवश्यकता जैसे मुद्दे भी शामिल हैं। इसके साथ ही, इस बार कई परियोजनाओं और गतिविधियों के जरिए नदियों और महासागरों के सामने आने वाली चुनौतियों के बीच संबंधों पर भी प्रकाश डाला जाएगा।

देश भर में कई समूह नदियों से संबंधित गतिविधियों की तैयारी कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में कोलकाता से लेकर तमिलनाडु तक नदियों के प्रहरी इन आयोजनों में शामिल होंगे।

नर्मदा नदी को बचाने की लड़ाई लड़ रहे एक्टिविस्ट नदी के किनारे मानव श्रृंखला बनाएंगे, वैगई नदी को बचाने के लिए भी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।