पीएफएएस प्रदूषण भूजल में व्यापक और कठिन-नष्ट होने वाला संकट है।
कोलॉइडल कार्बन प्रोडक्ट (सीसीपी) भूजल में पीएफएएस को प्रभावी रूप से फंसाता है।
“पुश-पुल” तकनीक से जमीन में फिल्टर बनाकर पीएफएएस स्तर 10,000 गुना घटाए गए।
सीसीपी विधि छोटे और लंबे-चेन पीएफएएस दोनों को पकड़ने में सफल और कम लागत वाली है।
कम रखरखाव और लंबे समय के प्रभाव के कारण यह वास्तविक दुनिया में उपयोगी समाधान बनती है।
पिछले कई दशकों से पॉलीफ्लुओरोएल्किल पदार्थ (पीएफएएस) का उपयोग रोजमर्रा के जीवन और उद्योगों में होता रहा है। नॉन-स्टिक फ्राइंग पैन, पानी से बचाने वाले कपड़े, फूड पैकेजिंग, कॉस्मेटिक्स, फायरफाइटिंग फोम, धातु कोटिंग और मशीनों के लुब्रिकेंट इन सभी में पीएफएएस पाए जाते हैं। समस्या यह है कि ये रसायन बहुत लंबे समय तक नष्ट नहीं होते, इसलिए इन्हें “फॉरएवर केमिकल्स” भी कहा जाता है।
पीएफएएस का सबसे बड़ा खतरा तब सामने आता है जब ये जमीन में रिसकर भूजल (ग्राउंडवाटर) को प्रदूषित कर देते हैं। अमेरिका सहित कई देशों में सैकड़ों सैन्य ठिकानों, औद्योगिक क्षेत्रों और नगरपालिकाओं के पास पीएफएएस-दूषित भूजल पाया गया है।
पीएफएएस के अणुओं में कार्बन-फ्लोरीन का बंधन बहुत मजबूत होता है, जिससे इन्हें तोड़ना या नष्ट करना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसी कारण वैज्ञानिकों के सामने एक बड़ा सवाल है: इतने बड़े पैमाने पर दूषित भूजल को साफ कैसे किया जाए?
नया शोध और नई उम्मीद
हाल ही में ब्राउन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा, जैकब्स इंजीनियरिंग और अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मिलकर इस समस्या पर एक नया अध्ययन किया। यह शोध द जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटीरियल्स में प्रकाशित हुआ है।
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक खास तरह के बहुत महीन कार्बन पदार्थ का उपयोग किया, जिसे कोलॉइडल कार्बन प्रोडक्ट (सीसीपी) कहा जाता है। इसका उद्देश्य पीएफएएस को नष्ट करना नहीं, बल्कि उन्हें भूजल में ही फंसा देना था ताकि वे आगे फैल न सकें और पीने के पानी तक न पहुंचें।
“पुश-पुल” तकनीक क्या है?
इस तकनीक को “पुश-पुल टेस्टिंग” कहा जाता है। इसके दो चरण होते हैं:
पुश: सीसीपी को जमीन के नीचे इंजेक्ट किया जाता है, जिससे मिट्टी और पानी के बीच एक तरह का फिल्टर बन जाता है।
पुल: कुछ समय बाद उसी क्षेत्र से पानी वापस निकाला जाता है और उसमें पीएफएएस की मात्रा मापी जाती है।
अगर पानी में पीएफएएस की मात्रा कम हो जाती है, तो इसका मतलब है कि सीसीपी ने उन्हें सफलतापूर्वक पकड़ लिया।
प्रयोगशाला से असली दुनिया तक
शोधकर्ताओं ने पहले इस तकनीक को प्रयोगशाला में, दूषित स्थल से लाई गई मिट्टी के साथ परखा। इसके बाद उन्होंने इसे असली परिस्थितियों में एक अमेरिकी नौसेना प्रशिक्षण क्षेत्र में आजमाया, जहां पीएफएएस का स्तर बहुत अधिक था।
क्या कहते है अध्ययन के नतीजे
पीएफएएस की मात्रा में भारी गिरावट: फील्ड टेस्ट में पीएफएएस का स्तर 50,000 नैनोग्राम प्रति लीटर से घटकर 10 महीनों में जांच की सीमा से भी नीचे चला गया। यह लगभग 10,000 गुना कमी है।
छोटे और बड़े दोनों पीएफएएस पर असर: यह तकनीक न केवल लंबे-चेन पीएफएएस, बल्कि छोटे-चेन पीएफएएस को भी पकड़ने में सफल रही, जो आमतौर पर साफ करना ज्यादा कठिन होते हैं।
कम लागत: लंबे समय में इस विधि की लागत अन्य पीएफएएस-सफाई तरीकों से आधी से भी कम पाई गई।
कम रखरखाव: एक बार सीसीपी जमीन में डालने के बाद बहुत कम देखभाल की जरूरत होती है।
क्यों है यह खोज अहम?
विशेषज्ञों के अनुसार, यह तकनीक उन समुदायों के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है जो वर्षों से पीएफएएस प्रदूषण से जूझ रहे हैं। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह तरीका कम लागत में लंबे समय तक भूजल को सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है।
आगे की राह
हालांकि यह शोध बहुत आशाजनक है, फिर भी वैज्ञानिक मानते हैं कि और अध्ययन जरूरी हैं। भविष्य में यह जानना होगा कि सीसीपी कितने सालों तक प्रभावी रहता है, अलग-अलग मिट्टी और पानी की स्थितियों में यह कैसे काम करता है, और क्या इसे पीएफएएस को पूरी तरह नष्ट करने वाली तकनीकों के साथ जोड़ा जा सकता है।
यह नया शोध दिखाता है कि पीएफएएस जैसे जिद्दी प्रदूषकों से निपटने के लिए व्यावहारिक और टिकाऊ समाधान संभव हैं। यदि इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया गया, तो यह स्वच्छ पेयजल की रक्षा करने और लोगों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।