गंगा में मिलता प्रदूषण, प्रतीकात्मक तस्वीर; फोटो: विकास चौधरी 
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गंगा प्रदूषण: उत्तराखंड में मानकों का पालन नहीं कर रहे कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, एनजीटी ने मांगी जानकारी

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हलफनामा दाखिल करते हुए कहा है कि राज्य के ज्यादातर एसटीपी या तो बंद पड़े हैं या तय मानकों के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) को निर्देश दिया है कि वह एक हलफनामा दाखिल कर यह बताए कि राज्य के कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) क्यों बंद हैं और वे तय मानकों का पालन क्यों नहीं कर रहे। यह निर्देश 16 अप्रैल, 2025 को दिया गया है।

एनजीटी ने यह कदम उस हलफनामे को देखकर उठाया है जो खुद उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) ने दाखिल किया है। इस हलफनामे में खुलासा किया गया है कि राज्य के ज्यादातर एसटीपी या तो बंद पड़े हैं या तय मानकों के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अदालत को सूचित किया है कि जल अधिनियम, 1974 के तहत उत्तराखंड पेयजल निगम के प्रबंध निदेशक और उत्तराखंड जल संस्थान के महाप्रबंधक को प्लांट्स द्वारा मानकों का पालन न करने के संबंध में निर्देश जारी किए गए हैं।

ऐसे में एनजीटी ने उत्तराखंड सरकार को भी आदेश दिया है कि वह एक हलफनामा दाखिल करे। इस हलफनामे में साफ-साफ यह बताया जाए कि कब तक राज्य में सभी एसटीपी बनकर चालू हो जाएंगे। इस मामले में अगली सुनवाई 29 मई 2025 को होगी।

क्या है पूरा मामला

यह मामला गंगा नदी में हो रहे प्रदूषण को रोकने से जुड़ा है। ट्रिब्यूनल राज्य और जिलेवार स्तर पर इस मुद्दे की समीक्षा कर रहा है। 16 अप्रैल, 2025 को जिस बारे में सुनवाई हुई है वो उत्तराखंड से जुड़ा है। गौरतलब है कि 13 फरवरी 2025 को एनजीटी ने शहरी विकास सचिव को निर्देश दिया था कि उत्तराखंड के विभिन्न जिलों और स्थानीय निकायों में उत्पन्न होने वाले सीवेज के 100 फीसदी उपचार के लिए समयबद्ध योजना दाखिल की जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गंगा में गंदा पानी न छोड़ा जाए।

एनजीटी ने एसटीपी स्थापित करने और उन्हें घरों से जोड़ने के लिए समयबद्ध योजना भी मांगी है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि संयंत्र तय मानकों का पालन करें।

सिंचाई विभाग, पर्यावरण सचिव और पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के उप सचिव द्वारा इस मामले में रिपोर्ट दाखिल की गई हैं। हालांकि, 13 फरवरी, 2025 को एनजीटी द्वारा दिए आदेश के अनुसार इसमें आवश्यक स्पष्ट और पूरी जानकारी नहीं दी गई है। पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त सचिव के हलफनामे के साथ जो रिपोर्ट दी गई है उसमें शहर और कस्बेवार नालों का ब्यौरा तो दिया गया है, लेकिन अधिकांश कॉलम खाली छोड़े गए हैं।

राज्य सरकार की ओर से वकील का कहना है कि अलग-अलग विभागों से जानकारी मांगी गई है, जिसका इन्तजार किया जा रहा है। इसकी वजह से पूरा विवरण सारणीबद्ध तरीके से नहीं दिया जा सका है। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह के भीतर पूरा विवरण के साथ एक नया हलफनामा अदालत में पेश किया जाएगा।