प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
प्रदूषण

अरुणाचल: नदियों-झीलों में फ्लोराइड, डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट पर एनजीटी ने लिया संज्ञान

डाउन टू अर्थ में 26 अगस्त 2025 को प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है

Susan Chacko, Lalit Maurya

  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अरुणाचल प्रदेश की नदियों और झीलों में खतरनाक स्तर पर फ्लोराइड की मौजूदगी पर चिंता जताई है।

  • सीपीसीबी और अन्य संबंधित अधिकारियों को इस मामले में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए गए हैं।

  • डीटीई की रिपोर्ट के अनुसार, फ्लोराइड का स्तर डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक पाया गया है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 17 सितंबर 2025 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से अरुणाचल प्रदेश की नदियों और झीलों में पाए गए फ्लोराइड प्रदूषण के मामले पर जवाब दाखिल करने को कहा है। एनजीटी ने संबंधित अधिकारियों से कहा है कि वे इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया एनजीटी की पूर्वी पीठ के समक्ष पेश करे।

इस मामले में अगली सुनवाई 11 नवंबर 2025 को होगी।

अदालत ने सीपीसीबी के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, तवांग जिले के उपायुक्त और नॉर्थ ईस्टर्न रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी को भी अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं।

गौरतलब है कि इस मामले में अदालत ने डाउन टू अर्थ में 26 अगस्त 2025 को प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया है।

डीटीई रिपोर्ट में क्या कुछ आया है सामने

यह खबर अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले की झीलों और नदियों (सतही जल) में फ्लोराइड के खतरनाक स्तर से जुड़ी है। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में डीआरडीओ तेजपुर के वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र की नदियों और ऊंचाई वाली झीलों से लिए पानी के नमूनों में फ्लोराइड का स्तर 21.86 मिलीग्राम/लीटर तक मिला था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षित सीमा 1.5 मिलीग्राम/लीटर से कई गुणा अधिक है।

इसके बाद 2024 में नॉर्थ ईस्टर्न रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, ईटानगर के शोधकर्ताओं ने भी अध्ययन किया। इसमें प्रसिद्ध पर्यटन स्थल संगेस्तर त्सो (माधुरी झील) में फ्लोराइड का स्तर 7.11 मिलीग्राम/लीटर दर्ज किया गया, जो डब्ल्यूएचओ की सीमा से चार गुना अधिक है।

गौरतलब है कि पानी में फ्लोराइड की अधिकता से दांत और हड्डियों की समस्याएं (फ्लोरोसिस) हो सकती हैं। साथ ही इसके गंभीर मामलों में हड्डियों का विकार, न्यूरोलॉजिकल और थायरॉयड समस्याओं का भी खतरा रहता है। बच्चे और बुजुर्ग इससे सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं।

तवांग का यह मामला दर्शाता है कि प्राकृतिक और दूर-दराज के क्षेत्र भी अदृश्य खतरों से अछूते नहीं हैं। सही विज्ञान, नीति और स्थानीय सहभागिता से इस खतरे को कम किया जा सकता है और भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित रखा जा सकता है।