30 जुलाई को भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन ने केरल के वायनाड जिले के दो इलाकों को तबाह कर दिया। 400 से अधिक लोगों की मौत और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं फोटो: रॉयटर्स
आपदा

वायनाड में भूस्खलन पीड़ितों को प्रदान की जाए मनोवैज्ञानिक सहायता: केरल उच्च न्यायालय

ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चला है कि मानवीय गतिविधियों के साथ-साथ मानसून में आई बाढ़ ने इस आपदा को जन्म दिया

Susan Chacko, Lalit Maurya, Anil Ashwani Sharma

केरल उच्च न्यायालय ने केरल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से पूछा है कि क्या वायनाड भूस्खलन पीड़ितों को परामर्श या ​​मनोवैज्ञानिक सहायता दी जा सकती है। छह सितंबर, 2024 को दिए अपने आदेश में अदालत ने दोनों प्राधिकरणों से एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत करने को कहा है।

इस मामले में न्यायमूर्ति ए के जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति श्याम कुमार वी एम की पीठ ने केरल सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि बाल कल्याण समिति, केरल राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (केएसएमएचए) और स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग प्रभावित क्षेत्र के लोगों, विशेषकर बच्चों को इस आपदा से उबरने के लिए प्रभावी कदम उठाएं।

इस मामले में उच्च न्यायालय ने कोझिकोड स्थित मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड, जो वायनाड जिले को कवर करता है, को वायनाड में आपदा प्रभावित लोगों को उचित मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने को कहा है। साथ ही इस बारे में उन्होंने अब तक क्या कार्रवाई की है इस बारे में एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि एमिकस क्यूरी ने इस बात को लेकर चिंता जताई थी कि किस प्रकार भूस्खलन से बच्चों पर भावनात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इस बारे में उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि राज्य सरकार को पीड़ितों की सहायता के लिए कार्रवाई करनी चाहिए।

एमिकस क्यूरी ने न्यायालय के समक्ष दिशा-निर्देशों और नियमों पर सुझावों सहित एक रिपोर्ट भी दायर की थी, जो विभिन्न प्राधिकारियों को आपदा प्रबंधन से निपटने के तरीके के बारे में मार्गदर्शन करेगी।

उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण से अपना जवाब दाखिल करने को भी कहा है।

वायनाड में आई आपदा ने निगल ली थी सैकड़ों जिंदगियां

गौरतलब है कि पिछले महीने केरल के वायनाड में भूस्खलन से करीब 400 लोग मारे गए। इसकी वजह से मुंडक्कई, चूरलमाला और अट्टामाला क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे। बचाव अभियान समाप्त होने के बाद ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चला है कि मानवीय गतिविधियों के साथ-साथ मानसून में आई बाढ़ ने इस आपदा को जन्म दिया था। इस आपदा ने न केवल शारीरिक, आर्थिक बल्कि मानसिक तौर पर भी लोगों को तोड़ दिया है।

डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है कि उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक बाढ़ व भूस्खलन की जो घटनाएं हम देख रहे हैं, उनकी एक बड़ी वजह मानवीय गतिविधियां हैं। जिन क्षेत्रों में भूस्खलन हो रहा है वें ऐसी जगह हैं जहां निर्माण की इजाजत न होते हुए भी चैकडैम बनाए गएं या फिर इमारतें खड़ी की गईं।

हम विकास और निर्माण-कार्यों के नाम पर लगातार पहाड़ व पेड़ काट रहे हैं, लेकिन सुरक्षात्मक दीवार जिसे ‘रिटेनिंग वॉल] कहते हैं, नहीं बनाते। कुछ जगहें तो नितांत असहाय हैं क्योंकि तेजी से होते शहरीकरण और बुनियादी ढांचों के निर्माण की वजह से बाढ़ की विभीषिका से प्राकृतिक तौर पर रक्षा करने वाली दलदली जमीनें, तालाब और झीलें गुम होती जा रही हैं।

भूस्खलन से दुनिया भर में जितनी मौतें होती हैं, उनमें से 8 फीसदी भारत में होती है। इसरो ने देश के 17 राज्यों और 2 केन्द्र शासित प्रदेशों के उन 147 जिलों की रैंकिंग जारी की है, जहां भूस्खलन होने का सर्वाधिक जोखिम है।

इनमें उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग व टिहरी गढ़वाल पहले व दूसरे तथा केरल का त्रिशूर जिला तीसरे स्थान पर हैं। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) के मुताबिक 1998 से 2022 के बीच देश में भूस्खलन की 80 हजार घटनाएं हुई हैं।