आपदाएं केवल प्राकृतिक नहीं होती, बल्कि हमारी कमजोर तैयारियों, खराब विकास नीतियों और जलवायु परिवर्तन का परिणाम होती हैं।
हर साल आपदाओं से लगभग 2.3 ट्रिलियन डॉलर का कुल नुकसान होता है, लेकिन आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डीआरआर) में निवेश बेहद कम है।
विकासशील देशों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है, जबकि निजी क्षेत्र के 75 फीसदी निवेश जोखिम को नजरअंदाज करते हैं।
सेंडाई फ्रेमवर्क (2015–2030) जोखिम-आधारित विकास और पर्यावरणीय सुरक्षा को प्राथमिकता देता है, जिसमें इको-डीआरआर भी शामिल है।
2025 की थीम: 1) डीआरआर में बजट बढ़ाना और 2) सभी सार्वजनिक और निजी निवेशों को जोखिम-संवेदनशील और टिकाऊ बनाना।
हर साल 13 अक्टूबर को आपदा जोखिम न्यूनीकरण का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (इंटरनेशनल डे फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन) मनाया जाता है। इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 1989 में की थी, ताकि दुनिया भर में आपदाओं से जुड़ी जागरूकता को बढ़ाया जा सके और यह बताया जा सके कि आपदाएं केवल प्राकृतिक घटनाएं नहीं, बल्कि हमारी तैयारियों और विकास की गुणवत्ता से भी जुड़ी होती हैं।
आपदाएं क्यों बढ़ रही हैं?
आज के समय में आपदाएं केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं रह गई हैं। जलवायु परिवर्तन, अनियोजित शहरीकरण और खतरों को नजरअंदाज करने वाली विकास नीतियां इन आपदाओं को और अधिक गंभीर बना रही हैं। हाल के वर्षों में सूखा जैसी घटनाएं 29 फीसदी तक बढ़ी हैं। बाढ़ से सबसे अधिक मौतें और आर्थिक नुकसान एशिया में दर्ज किए गए हैं। केवल उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से ही हर साल औसतन 119.5 अरब डॉलर का नुकसान होता है।
आर्थिक प्रभाव
आपदाओं के कारण न केवल जीवन का नुकसान होता है, बल्कि इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर पड़ता है। आपदाओं से होने वाला सीधा आर्थिक नुकसान हर साल लगभग 202 अरब डॉलर तक पहुंचता है। जब हम पर्यावरणीय नुकसान और परोक्ष प्रभावों को जोड़ते हैं, तो यह आंकड़ा 2.3 ट्रिलियन डॉलर सालाना हो जाता है।
विकासशील देश इन आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, जहां संसाधन पहले से ही सीमित होते हैं। वहीं विकसित देशों को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है। इस गंभीर स्थिति के बावजूद, आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश बेहद कम है। केवल एक फीसदी से भी कम सार्वजनिक बजट आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए आवंटित होता है।
साल 2019 से 2023 के बीच केवल दो फीसदी विकास सहायता परियोजनाएं ही आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डीआरआर) को शामिल करती हैं। आपदा तैयारी के लिए मिलने वाली मानवीय सहायता भी घट रही है।
निजी क्षेत्र की भूमिका और चुनौतियां
आज दुनिया में लगभग 75 फीसदी निवेश निजी क्षेत्र द्वारा किए जाते हैं। लेकिन इनमें से अधिकतर निवेश जलवायु जोखिम और आपदा प्रबंधन को नजरअंदाज करते हैं। इससे न केवल आर्थिक नुकसान की संभावना बढ़ती है, बल्कि समाज की समग्र सहनीयता भी कम होती है।
क्या हैं समाधान?
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015–2030) इस दिशा में एक अहम वैश्विक पहल है। यह समझौता सदस्य देशों को ऐसे कदम उठाने के लिए प्रेरित करता है, जिससे विकास की उपलब्धियों को आपदाओं से बचाया जा सके। इसके अनुसार, सभी विकास योजनाएं जोखिम-आधारित हों, स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन को आपदा जोखिम न्यूनीकरण का हिस्सा बनाया जाए।
स्थानीय समुदायों, सरकारों और निजी क्षेत्रों की भागीदारी जरूरी है, इसी के तहत इको-डीआरआर यानी पारिस्थितिकी आधारित आपदा जोखिम न्यूनीकरण को भी महत्व दिया गया है। उदाहरण के लिए - जंगल बाढ़ को रोकने में मदद करते हैं, मैंग्रोव समुद्री तूफानों से रक्षा करते हैं, झीलें और आर्द्रभूमियां जल संचयन और सूखा प्रबंधन में सहायक हैं।
अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2025 की थीम: सरकारें और वैश्विक एजेंसिया डीआरआर में अधिक निवेश करें, सभी सार्वजनिक और निजी विकास परियोजनाएं जोखिम-संवेदनशील और जलवायु-लचीली हों।
आपदाएं केवल प्राकृतिक नहीं होतीं, वे अक्सर मानव जनित कमजोरियों और गलत विकास विकल्पों का परिणाम होती हैं। आपदाएं केवल जीवन और संपत्ति ही नहीं छीनतीं, वे विकास की वर्षों की मेहनत को पल भर में मिटा सकती हैं।
यदि हम आज ही आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डीआरआर) में निवेश नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए जरूरी है कि सरकार, निजी क्षेत्र, और समाज मिलकर ऐसे कदम उठाएं जो भविष्य को सुरक्षित बना सकें। आपदाएं रोकी नहीं जा सकतीं, लेकिन उनसे होने वाले नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है यदि हम आज तैयार हों।