कार्यस्थलों में उत्पीड़न, काम की खराब स्थितियां, लंबे समय तक काम का दबाव और समर्थन की कमी जैसे कारण मानसिक तनाव को बढ़ाते हैं।  फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं एक अरब से अधिक लोग

हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है

Dayanidhi

  • दुनिया में एक अरब से अधिक लोग किसी न किसी मानसिक स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं।

  • हर साल 7,27,000 से अधिक आत्महत्याएं होती हैं, हर आत्महत्या एक अधूरी कहानी है।

  • दुनिया की 60 फीसदी जनसंख्या कार्यरत है और कार्यस्थल का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

  • 2030 तक हर छह में से एक व्यक्ति 60 वर्ष से अधिक उम्र का होगा, बुजुर्गों में अकेलापन और मानसिक रोग तेजी से बढ़ रहे हैं।

  • मानसिक स्वास्थ्य एक मौलिक अधिकार है, इसके लिए जागरूकता, संवेदनशीलता और निवेश की तत्काल आवश्यकता है।

हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करना, इससे जूझ रहे लोगों के लिए समर्थन जुटाना और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए काम करना है।

आज, दुनिया में एक अरब से अधिक लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। इसके बावजूद, समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भ्रम, कलंक और भेदभाव अभी भी मौजूद हैं। यह न केवल व्यक्ति की मानसिक स्थिति को खराब करता है, बल्कि उसके जीवन की गुणवत्ता और कार्यक्षमता पर भी असर डालता है।

कार्यस्थल और मानसिक स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनिया की 60 फीसदी जनसंख्या कार्यरत है, यानी वे किसी न किसी प्रकार का काम कर रहे हैं। ऐसे में कार्यस्थल का वातावरण मानसिक स्वास्थ्य को बहुत प्रभावित करता है।

उत्पीड़न, काम की खराब स्थितियां, लंबे समय तक काम का दबाव और समर्थन की कमी जैसे कारण मानसिक तनाव को बढ़ाते हैं। इससे कर्मचारी की कार्यक्षमता में कमी आती है और कई बार मानसिक बीमारियां जन्म लेती हैं।

इसलिए जरूरी है कि सरकारें, नियोक्ता, कर्मचारी संगठनों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच सहयोग हो ताकि एक ऐसा वातावरण बनाया जा सके जहां कार्यस्थल मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाए, बल्कि उसे सहारा दे।

आत्महत्या : एक गंभीर संकट

हर साल 7,27,000 से अधिक लोग आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवाते हैं। हर एक मौत के पीछे एक अधूरी कहानी होती है जैसे दर्द, अकेलापन और असहायता की कहानी।

साल 2030 तक आत्महत्याओं में 33 फीसदी की कमी का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब तक सिर्फ 12 फीसदी प्रगति ही हो पाई है। यह एक गंभीर संकट है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। समय की मांग है कि हम संवेदनशीलता, दया और निवेश के साथ तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।

बुजुर्गों में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 2030 तक हर छह में से एक व्यक्ति की उम्र 60 साल या उससे अधिक होगी। उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति के जीवन में कई बदलाव आते हैं जैसे - स्वास्थ्य में गिरावट, अकेलापन, सामाजिक अलगाव और कभी-कभी अपने ही परिवार या देखभाल करने वालों द्वारा शारीरिक या मानसिक शोषण भी देखा जाता है।

  • 14 फीसदी बुजुर्ग (70 वर्ष से ऊपर) किसी न किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित होते हैं

  • इस उम्र वर्ग में मानसिक रोग 6.8 फीसदी विकलांगता के वर्षों के लिए जिम्मेदार हैं।

  • छह में से एक बुजुर्ग को किसी न किसी प्रकार का शोषण सहना पड़ता है।

यह आंकड़े हमें चेतावनी देते हैं कि हमें बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीरता से ध्यान देना होगा। उन्हें समझना, उनसे संवाद करना और उनके लिए सुरक्षित व सम्मानजनक वातावरण बनाना अत्यंत आवश्यक है।

क्या किया जा सकता है?

मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करें, डर और शर्म को हटाएं। जैसे हम शारीरिक बीमारियों पर बात करते हैं, वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य पर भी बात होनी चाहिए।

जिन्हें सहायता की जरूरत है, उन्हें समर्थन दें, चाहे वह परिवार का सदस्य हो, सहकर्मी या पड़ोसी, एक सुनने वाला कान और थोड़ी सहानुभूति किसी की जिंदगी बदल सकती है।

कार्यस्थलों पर मानसिक स्वास्थ्य नीतियां बनें, जैसे फिजिकल सेफ्टी के लिए नियम होते हैं, वैसे ही मानसिक सुरक्षा के लिए भी दिशा-निर्देश होने चाहिए।

बुजुर्गों के लिए सामाजिक कार्यक्रम और सहायता केंद्र विकसित हों, ताकि वे अकेलेपन और उपेक्षा का शिकार न हों।

सरकार और समाज दोनों मिलकर निवेश करें, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए धन, संसाधन और प्रशिक्षण आवश्यक है।

मानसिक स्वास्थ्य कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। इस विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर, आइए हम संकल्प लें कि मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देंगे, इस पर खुलकर बात करेंगे और जरूरतमंदों के लिए सहारा बनेंगे।