वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में भारत में 81,748 नए फेफड़ों के कैंसर के मामले सामने आए, जो दुनिया में चौथे सबसे अधिक थे।  फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

आज है विश्व फेफड़ा दिवस: सजगता से थम सकती है फेफड़े से जुड़ी बीमारियां

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, गरीब देशों में सांस की बीमारियों से 90 फीसदी से अधिक मौतें होती हैं

Dayanidhi

  • लोग मानते हैं कि सिर्फ धूम्रपान से ही फेफड़ों की बीमारी होती है, या उम्र बढ़ने पर सांस फूलना सामान्य है, ये मिथक इलाज में देरी का कारण बनते हैं।

  • भारत में फेफड़ों का कैंसर, सीओपीडी, अस्थमा और टीबी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। 2022 में भारत में 81,748 फेफड़ों के कैंसर के नए मामले दर्ज हुए।

  • सीओपीडी एक खामोश हत्यारा: दुनिया में हर साल लाखों मौतों का कारण बनती है। इसके मुख्य कारणों में धूम्रपान, घरेलू वायु प्रदूषण, काम की जगह पर धूल और धुआं, बचपन की सांस की बीमारियां

हर साल 25 सितंबर को विश्व फेफड़ा दिवस (वर्ल्ड लंग डे) मनाया जाता है। यह दिन फेफड़ों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने और दुनिया भर में सांस की बीमारियों को कम करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय श्वसन सोसायटी मंच (एफआईआरएस) और उसके सहयोगियों ने की थी।

फेफड़े हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। ये हमें जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि लोग तब तक फेफड़ों की देखभाल नहीं करते जब तक कोई गंभीर बीमारी न हो जाए।

फेफड़ों से जुड़ी गलतफहमियां और उनके खतरनाक परिणाम

लोगों के बीच फेफड़ों से जुड़ी कई गलत धारणाएं हैं, जो समय पर इलाज और बचाव में रुकावट बनती हैं। सिर्फ धूम्रपान करने वालों को फेफड़ों की बीमारी होती है, यह गलत है। प्रदूषण, धूल, धुआं, संक्रमण और आनुवांशिक कारण भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

बुढ़ापे में सांस फूलना सामान्य है, यह एक गंभीर लक्षण हो सकता है, जिसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। व्यायाम से फेफड़े पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं, व्यायाम जरूरी है, लेकिन यह अकेले फेफड़ों को प्रदूषण या धूम्रपान से होने वाले नुकसान से नहीं बचा सकता। ऐसी गलत धारणाएं खासकर भारत जैसे देश में फेफड़ों की बीमारियों को और जटिल बना देती हैं।

भारत में फेफड़ों की बीमारियों का बढ़ता संकट

वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में भारत में 81,748 नए फेफड़ों के कैंसर के मामले सामने आए, जो दुनिया में चौथे सबसे अधिक थे। इसके अलावा क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), अस्थमा, टीबी और फेफड़ों के कैंसर जैसी बीमारियां भारत में बहुत आम हैं, लेकिन अक्सर इनका पता तब चलता है जब बीमारी बहुत बढ़ चुकी होती है। कम जागरूकता और समय पर जांच की कमी इसका मुख्य कारण है।

क्या है सीओपीडी और क्यों है यह खतरनाक है?

क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) एक गंभीर और फेफड़ों की बीमारी है, जिसमें सांस की नलियां संकरी हो जाती हैं और मरीज को सांस लेने में कठिनाई होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, साल 2021 में पूरी दुनिया में 35 लाख लोगों की मौत क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के कारण हुई। 90 फीसदी से अधिक मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। सीओपीडी दुनिया भर में बीमारी की समस्या के लिहाज से आठवां सबसे बड़ा कारण है।

क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के प्रमुख कारण:

धूम्रपान – विकसित देशों में 70 फीसदी और विकासशील देशों में 30 से 40 फीसदी मामले धूम्रपान से होते हैं। घरेलू वायु प्रदूषण – लकड़ी, कोयला या गोबर से खाना पकाने से निकलने वाला धुआं। धूल, धुएं या रासायनिक पदार्थों के संपर्क में आना – जैसे फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर। बचपन में बार-बार होने वाला फेफड़ों का संक्रमण या कमजोर शारीरिक विकास। जन्मजात रोग जैसे अल्फा-1 ऐन्टीट्रिप्सिन की कमी।

कैसे पहचानें और रोकथाम करें?

क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के लक्षणों में लगातार खांसी, सीने में जकड़न, सांस फूलना आदि शामिल हैं। इसकी पुष्टि एक खास जांच – स्पायरोमेट्री से होती है, जो फेफड़ों की कार्यक्षमता मापती है। दुर्भाग्य से, भारत जैसे देशों में यह जांच सभी जगह उपलब्ध नहीं है, जिससे बीमारी का सही समय पर पता नहीं चल पाता।

विश्व फेफड़ा दिवस का उद्देश्य फेफड़ों से जुड़ी गलत धारणाओं को दूर करना, लोगों को समय पर जांच और इलाज के लिए प्रेरित करना। धूम्रपान और प्रदूषण के खिलाफ सख्त कदम उठाना। स्वच्छ ऊर्जा और स्वच्छ ईंधन का उपयोग करना, सरकारों से बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और उपकरणों की मांग करना आदि।

फेफड़ों की बीमारियां न तो अमीर-गरीब देखती हैं, न ही उम्र या लिंग। इनका इलाज संभव है, पर सही समय पर पहचान और इलाज जरूरी है। विश्व फेफड़ा दिवस 2025 एक मौका है जागरूक होने का, और दूसरों को जागरूक करने का।