एमआरएनए कोविड वैक्सीन सामान्यतः सुरक्षित हैं, फिर भी कुछ युवा पुरुषों में दुर्लभ रूप से मायोकार्डिटिस देखा गया
स्टैनफोर्ड वैज्ञानिकों ने दो-चरणीय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पहचानी, जिसमें मैक्रोफेज और टी-कोशिकाएं सूजन बढ़ाती हैं दिल की मांसपेशियों में नुकसान करती
मुख्य साइटोकाइन सीक्ससीएल 10 और आईएफएन-गामा हृदय में प्रतिरक्षा कोशिकाएं बुलाकर अस्थायी क्षति पैदा करते हैं और सूजन को बढ़ा देते
अधिकांश वैक्सीन-संबंधित मायोकार्डिटिस मामले हल्के होते हैं और उचित निगरानी में जल्दी ठीक हो जाते हैं बिना स्थायी हृदय क्षति
सोया से प्राप्त जेनिस्टीन ने प्रयोगों में सूजन घटाई, जिससे भविष्य में वैक्सीन जोखिम कम करने की संभावना दिखी है
कोविड-19 महामारी के दौरान एमआरएनए आधारित वैक्सीन ने दुनिया भर में करोड़ों लोगों की जान बचाई। इन वैक्सीन को अरबों लोगों को लगाया गया है और ये आज भी सुरक्षित और प्रभावी मानी जाती हैं। फिर भी, कुछ दुर्लभ मामलों में खासकर किशोर और युवा पुरुषों में, वैक्सीन के बाद दिल की मांसपेशियों में सूजन (जिसे मायोकार्डिटिस कहा जाता है) देखी गई है। हाल ही में स्टैनफोर्ड मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने इस दुर्लभ समस्या के पीछे के जैविक कारणों को समझाने वाला एक महत्वपूर्ण शोध प्रकाशित किया है।
मायोकार्डिटिस क्या है?
मायोकार्डिटिस का अर्थ है दिल की मांसपेशियों में सूजन। इसके लक्षणों में सीने में दर्द, सांस लेने में परेशानी, बुखार और दिल की धड़कन तेज होना शामिल हो सकता है। वैक्सीन से जुड़ा मायोकार्डिटिस आमतौर पर टीका लगने के एक से तीन दिन के भीतर दिखाई देता है और इसमें कोई वायरस संक्रमण नहीं होता।
डॉक्टर अक्सर खून में “कार्डियक ट्रोपोनिन” नामक पदार्थ की मात्रा जांचते हैं। यह पदार्थ सामान्य रूप से केवल दिल की मांसपेशियों में होता है और अगर यह खून में पाया जाए तो इसका मतलब होता है कि दिल की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा है।
यह समस्या कितनी आम है?
यह स्थिति बहुत ही दुर्लभ है। पहले डोज के बाद लगभग 1,40,000 में से एक व्यक्ति में और दूसरे डोज के बाद लगभग 32,000 में से एक व्यक्ति में मायोकार्डिटिस देखा गया है। 30 साल से कम उम्र के पुरुषों में इसका जोखिम थोड़ा अधिक है। फिर भी, वैज्ञानिकों के अनुसार कोविड-19 संक्रमण खुद वैक्सीन की तुलना में लगभग 10 गुना ज्यादा मायोकार्डिटिस पैदा करता है।
स्टैनफोर्ड शोध में क्या नया सामने आया?
स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिकों ने पाया कि वैक्सीन के बाद शरीर में एक दो-स्तरीय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया होती है।
पहला चरण: वैक्सीन लगने पर “मैक्रोफेज” नामक प्रतिरक्षा कोशिकाएं सक्रिय होती हैं। ये कोशिकाएं शरीर की शुरुआती सुरक्षा प्रणाली का हिस्सा होती हैं। सक्रिय होने पर ये सीक्ससीएल10 नामक एक रसायन (साइटोकाइन) छोड़ती हैं।
दूसरा चरण: सीक्ससीएल10, “टी-कोशिकाओं” को सक्रिय करता है। इसके बाद टी-कोशिकाएं आईएफएन-गामा नामक एक और शक्तिशाली साइटोकाइन छोड़ती हैं।
जब सीक्ससीएल10 और आईएफएन-गामा दोनों ज्यादा मात्रा में बनते हैं, तो ये दिल में अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को आकर्षित करते हैं। इससे दिल की मांसपेशियों में सूजन और अस्थायी नुकसान हो सकता है।
क्या दिल को स्थायी नुकसान होता है?
अधिकांश मामलों में नहीं। स्टैनफोर्ड के शोधकर्ता के अनुसार, वैक्सीन से जुड़ा मायोकार्डिटिस आमतौर पर हल्का होता है और कुछ समय में अपने-आप ठीक हो जाता है। यह सामान्य हार्ट अटैक जैसा नहीं होता क्योंकि इसमें रक्त नलिकाओं में रुकावट नहीं होती।
हालांकि बहुत ही दुर्लभ मामलों में सूजन गंभीर हो सकती है, जिसके लिए अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है।
वैज्ञानिकों ने समाधान की दिशा में क्या पाया?
शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर सीक्ससीएल10 और आईएफएन-गामा को रोका जाए, तो दिल में सूजन और कोशिकाओं को होने वाला नुकसान कम हो जाता है, जबकि वैक्सीन की सुरक्षा क्षमता बनी रहती है।
इसके अलावा, उन्होंने जेनिस्टीन नामक सोया से मिलने वाले एक प्राकृतिक यौगिक का परीक्षण किया। जेनिस्टीन में सूजन-रोधी गुण होते हैं और यह कुछ हद तक एस्ट्रोजन हार्मोन जैसा काम करता है। यही कारण हो सकता है कि महिलाओं में यह समस्या कम देखी जाती है।
प्रयोगों में जेनिस्टीन ने प्रयोगशाला में उगाई गई मानव दिल की कोशिकाओं और चूहों में दिल को होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया।
आगे क्या मायने हैं?
साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन नामक पत्रिका में प्रकाशित यह शोध न सिर्फ कोविड-19 वैक्सीन बल्कि भविष्य की एमआरएनए वैक्सीन तकनीक के लिए भी महत्वपूर्ण है। इससे वैज्ञानिकों को वैक्सीन को और सुरक्षित बनाने, जोखिम कम करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
एमआरएनए कोविड-19 वैक्सीन बहुत सुरक्षित और प्रभावी हैं
वैक्सीन से जुड़ा मायोकार्डिटिस बहुत दुर्लभ और अक्सर अस्थायी होता है
कोविड-19 संक्रमण वैक्सीन से कहीं ज्यादा खतरनाक है
नया शोध भविष्य में वैक्सीन को और सुरक्षित बनाने की दिशा दिखाता है
कुल मिलाकर, यह अध्ययन विज्ञान की उस निरंतर कोशिश का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य लोगों को बेहतर सुरक्षा देना और दुर्लभ दुष्प्रभावों को भी समझना है।