प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

दुनिया में बढ़ रहा कैंसर का खतरा: 2050 तक तीन करोड़ मामले, 1.86 करोड़ मौतों का अंदेशा

अंतराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक कैंसर अब दुनिया में हृदय संबंधी रोगों के बाद मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है।

Lalit Maurya

  • एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक कैंसर के मामले तीन करोड़ तक पहुंच सकते हैं और 1.86 करोड़ मौतों का खतरा है।

  • कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में कैंसर का बोझ तेजी से बढ़ रहा है, जहां स्वास्थ्य सेवाएं पहले से ही संघर्ष कर रही हैं।

  • विशेषज्ञों ने चेताया है कि अगर रोकथाम के ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।

कैंसर एक ऐसी घातक बीमारी है, जो दुनिया भर में करोड़ों जिंदगियों को प्रभावित कर रही है। इस बारे में जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि 1990 से 2023 के बीच दुनिया भर में कैंसर के मामलों और मौतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। हालांकि इस दौरान इलाज और रोकथाम के प्रयासों में भी अच्छी खासी प्रगति हुई, लेकिन इसके बावजूद यह बीमारी थमने का नाम ही नहीं ले रही।

अध्ययन में जो आंकड़े साझा किए हैं उनसे पता चला है कि 2023 में दुनिया भर में 1.85 करोड़ लोगों को कैंसर हुआ था। वहीं 1.04 करोड़ लोग इस बीमारी का शिकार बन गए थे। यह आंकड़े त्वचा के सामान्य (नॉन-मेलानोमा) कैंसर को छोड़कर हैं।

चिंता की बात है कि इनमें से करीब 58 फीसदी नए मामले और करीब 66 फीसदी मौतें कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में दर्ज की गई। गौरतलब है कि यह देश पहले ही स्वास्थ्य आवश्यकतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ऊपर से कैंसर का बढ़ता बोझ इनपर भारी दबाव डाल सकता है।

अंतराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक कैंसर अब दुनिया में हृदय संबंधी रोगों (कार्डियोवास्कुलर डिजीज) के बाद मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है।

इस नए विश्लेषण में जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री, मृत्यु पंजीकरण प्रणाली और कैंसर से मरने वाले लोगों के परिवार या देखभाल करने वालों के साक्षात्कार से जुड़े आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। इस अध्ययन में 1990 से 2023 के बीच 204 देशों और क्षेत्रों में 47 प्रकार के कैंसर और 44 जोखिम कारकों का विस्तृत आकलन प्रस्तुत किया गया है।

साथ ही अध्ययन में 2050 तक कैंसर के पड़ने वाले बोझ का भी अनुमान लगाया गया है। इसमें इस बात की भी जांच की गई है कि गैर-संक्रामक बीमारियों से होने वाली मौतों को 2015 से 2030 के बीच एक-तिहाई तक कम करने के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य में अब तक कितनी प्रगति हुई है।

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह भी चेताया है कि अगर इसकी रोकथाम की दिशा में जल्द से जल्द ठोस कदम न उठाए गए तो 2050 तक 3.05 करोड़ लोग कैंसर से जूझ रहे होंगे। वहीं इस बीमारी से 1.86 करोड़ लोग अपनी जान से हाथ धो सकते हैं। अध्ययन में इस बात की भी आशंका जताई है कि इनमें से आधे से ज्यादा मामले और दो-तिहाई मौतें कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में होंगी।

मतलब की अगले 25 वर्षों में 2050 तक कैंसर के नए मामलों में 60.7 फीसदी जबकि मौतों में 74.5 फीसदी की वृद्धि होने का अंदेशा है।

अध्ययन के मुताबिक सबसे तेज बढ़ोतरी कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में होगी, जहां कैंसर से होने वाली मौतों में करीब 91 फीसदी तक की बढ़ोतरी का अंदेशा है, जबकि अमीर देशों में यह बढ़ोतरी करीब 43 फीसदी रह सकती है।

बढ़ती आबादी और उम्रदराज जनसंख्या से बढ़ रहा बोझ

रिपोर्ट के मुताबिक भले ही उम्र के हिसाब से दरों में खास बढ़ोतरी नहीं होगी, लेकिन आबादी और बुजुर्गों की बढ़ती संख्या कैंसर के मामलों को तेजी से बढ़ाएगी। अनुमान है कि 2024 से 2050 के बीच उम्र के हिसाब से कैंसर से होने वाली मौतों की दर में वैश्विक स्तर पर करीब 5.6 फीसदी की गिरावट आ सकती है।

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि आबादी बढ़ने और लोगों की उम्र बढ़ने के कारण कुल मामलों में भारी इजाफा हो सकता है। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि यह सुधार संयुक्त राष्ट्र के उस लक्ष्य से बहुत पीछे हैं जिसमें 2030 तक गैर-संक्रामक बीमारियों (जैसे कैंसर) से होने वाली असमय मौतों को एक-तिहाई तक करने की बात कही गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक 1990 से 2023 के बीच कैंसर से होने वाली मौतों में 74 फीसदी जबकि नए मामलों में 105 फीसदी का इजाफा हुआ है। हालांकि आर्थिक रूप से समृद्ध देशों में उम्र के हिसाब से कैंसर से होने वाली मृत्यु की दर 24 फीसदी घटी है, लेकिन दूसरी तरफ गरीब और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में नए मामलों की दर क्रमशः 24 फीसदी और 29 फीसदी बढ़ी है।

2023 में स्तन कैंसर सबसे आम था, जबकि फेफड़ों का कैंसर सबसे ज्यादा मौतों का कारण बना।

चार में से एक मौत की वजह तंबाकू

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि 2023 में कैंसर से जुड़ी करीब 42 फीसदी (43 लाख) मौतें ऐसे कारणों से हुई जिन्हें रोका जा सकता था। इनमें तंबाकू, असुरक्षित यौन संबंध, मोटापा और खराब खानपान और जीवनशैली शामिल है। इसमें सबसे बड़ा कारण तंबाकू का उपयोग था, जो दुनियाभर में कैंसर से होने वाली मौतों के 21 फीसदी के लिए जिम्मेवार थी।

रिपोर्ट के मुताबिक तंबाकू सभी देशों में जोखिम का प्रमुख कारक थी, सिवाय आर्थिक रूप से कमजोर देशों के, जहां असुरक्षित यौन संबंध इसका सबसे बड़ा कारण था और यह कैंसर से होने वाली मौतों के 12.5 फीसदी के लिए जिम्मेदार था।

रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में पुरुषों में कैंसर से हुई 46 फीसदी और महिलाओं में 36 फीसदी मौतें इन रोके जा सकने वाले कारणों से जुड़ी पाई गई। इस दौरान पुरुषों के लिए प्रमुख जोखिम तंबाकू, शराब, खराब खानपान, कार्यस्थल पर जोखिम और वायु प्रदूषण रहे। वहीं महिलाओं में तंबाकू, असुरक्षित यौन संबंध, मोटापा और हाई ब्लड शुगर प्रमुख कारण रहे।

अमेरिकी विशेषज्ञ डॉक्टर लीजा फोर्स ने इस बारे में चिंता जताते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “कैंसर का बोझ आने वाले दशकों में बहुत तेजी से बढ़ेगा, खासकर उन देशों में जहां संसाधन सीमित हैं। लेकिन कैंसर नियंत्रण नीतियों को अभी भी वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकता नहीं माना गया है।“

वहीं नेपाल हेल्थ रिसर्च काउंसिल के डॉक्टर मेघनाथ धीमाल का कहना है, “कमजोर देशों में कैंसर का बढ़ना एक आने वाला संकट है। अगर अभी कदम न उठाए गए, तो हालात नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं।“

विशेषज्ञों ने जोर दिया है कि हर देश को अपनी कैंसर नीति में रोकथाम, शुरूआती जांच और इलाज की समान पहुंच सुनिश्चित करनी होगी। इसके साथ ही, कैंसर से जुड़े आंकड़े जुटाने के लिए बेहतर निगरानी तंत्र (रजिस्ट्री सिस्टम) की जरूरत है ताकि सही नीतियां बनाई जा सकें। देखा जाए तो अगर सरकारें आज निर्णायक कदम नहीं उठातीं, तो 2050 तक कैंसर एक ऐसी वैश्विक महामारी बन सकता है, जिससे बचना मुश्किल होगा।