एक तरफ जहां दुनिया में करोड़ों बच्चों को स्वस्थ जीवन जीने के लिए पर्याप्त भोजन भी उपलब्ध नहीं है, वहीं दूसरी तरफ बच्चों की बड़ी आबादी ऐसी भी है जो भोजन की अधिकता और खराब खानपान की वजह से मोटापे का शिकार बन रही है; फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

कुपोषण का बदलता चेहरा, मोटापे से जूझ रहा हर दसवां बच्चा

दुनिया भर में फास्ट फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाने का बढ़ता चाव बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है

Lalit Maurya

  • यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में कुपोषण का चेहरा बदल रहा है। अब हर दसवां बच्चा मोटापे से जूझ रहा है।

  • 39 करोड़ बच्चे बढ़ते वजन से परेशान हैं, जिससे मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।

  • करीब 18.8 करोड़ बच्चे बढ़ते मोटापे से त्रस्त हैं।

  • इतिहास में पहली बार हुआ है जब दुनिया भर में बच्चों और किशोरों में मोटापे का स्तर कुपोषण के सबसे आम रूप यानी कम वजन से जूझ रहे बच्चों से ज्यादा हो गया है।

  • 2000 से अब तक उन बच्चों (पांच से 19 वर्ष) की संख्या घटी है जो कम वजन से जूझ रहे थे।

  • वहीं दूसरी तरफ मोटापे से पीड़ित बच्चों की संख्या में तीन गुणा इजाफा हुआ है और उनकी संख्या तीन फीसदी से बढ़कर 9.4 फीसदी पर पहुंच गई है।

दुनिया भर के बच्चों के लिए कुपोषण एक बड़ी समस्या है। हालांकि अब इसके स्वरूप में तेजी से बदलाव आ रहा है, जहां पहले बच्चे खाने की कमी, नाटेपन, घटते वजन जैसी समस्याओं से जूझ रहे थे, वहीं धीरे-धीरे इसकी जगह मोटापे और बढ़ते वजन ने ले ली है, जोकि बड़े खतरे की ओर इशारा है।

यूनिसेफ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि आज दुनिया का हर दसवां बच्चा (5 से 19 वर्ष) मोटापे से जूझ रहा है। यानी करीब 18.8 करोड़ बच्चे बढ़ते मोटापे से त्रस्त हैं। यह स्थिति उन्हें गंभीर और जानलेवा बीमारियों के खतरे में डाल रही है। इन बच्चों में मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।

यूनिसेफ द्वारा जारी 'फीडिंग प्रॉफिट: हाउ फूड एनवायरमेन्टस आर फेलिंग चिल्ड्रन' नामक यह वर्ल्ड न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2025, 190 से अधिक देशों के आंकड़ों पर आधारित है, जो बच्चों में पोषण की स्थिति में आ रहे एक बड़े बदलाव को उजागर करती है।

देखा जाए तो यह बड़ी हैरानी की बात है कि एक तरफ जहां दुनिया में करोड़ों बच्चों को स्वस्थ जीवन जीने के लिए पर्याप्त भोजन भी उपलब्ध नहीं है, वहीं दूसरी तरफ बच्चों की बड़ी आबादी ऐसी भी है जो भोजन की अधिकता और खराब खानपान की वजह से मोटापे का शिकार बन रही है।

रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया है कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब दुनिया भर में बच्चों और किशोरों में मोटापे का स्तर कुपोषण के सबसे आम रूप यानी कम वजन से जूझ रहे बच्चों से ज्यादा हो गया है।

यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “आज कुपोषण की परिभाषा सिर्फ दुबले कम वजन वाले बच्चों तक सीमित नहीं। मोटापा भी एक बढ़ती समस्या है, जो बच्चों की सेहत और मानसिक एवं शारीरिक विकास को खतरे में डाल रहा है।"

देखा जाए तो आज फलों, सब्जियों, दूध, दही जैसे पौष्टिक भोजन की जगह अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और जंक फूड ने ले ली है।

कुपोषण का बदलता रूप

रिपोर्ट में इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि 2000 से अब तक उन बच्चों (पांच से 19 वर्ष) की संख्या घटी है जो कम वजन से जूझ रहे थे। इन बच्चों का आंकड़ा 13 फीसदी से घटकर 9.2 फीसदी रह गया है। वहीं दूसरी तरफ मोटापे से पीड़ित बच्चों की संख्या में तीन गुणा इजाफा हुआ है और उनकी संख्या तीन फीसदी से बढ़कर 9.4 फीसदी पर पहुंच गई है।

इसक मतलब है कि यदि उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया को छोड़ दें तो अब दुनिया के सभी हिस्सों में मोटापे से जूझ रहे बच्चों की गिनती, कम वजन वाले बच्चों की संख्या से आगे निकल गई है। देखा जाए तो प्रशान्त द्वीप समूह में यह स्थिति विशेष रूप से गंभीर है, जहां पारम्परिक आहार की जगह सस्ते, ऊर्जा-सघन आयातित खाद्य पदार्थों ने ले ली है।

आंकड़ों के मुताबिक जहां नियू में 38 फीसदी बच्चे मोटापे का शिकार हैं। वहीं कुक आइलैंड्स में यह आंकड़ा 37 फीसदी जबकि नाउरू में 33 फीसदी दर्ज किया गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक बच्चों को तब अधिक वजन वाला माना जाता है जब उनका वजन अपनी उम्र, लिंग और ऊंचाई के हिसाब से, स्वस्थ वजन वाले बच्चों से काफी अधिक होता है। देखा जाए तो मोटापा अधिक वजन से जुड़ी अवस्था का ही एक गम्भीर रूप है और इससे शरीर में इंसुलिन रेसिस्टेन्स और उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है।

अमीर देशों में भी स्थिति कोई खास अच्छी नहीं, चिली में जहां 27 फीसदी बच्चे मोटापे से जूझ रहे हैं। वहीं अमेरिका और यूएई में 21 फीसदी बच्चे मोटापे का शिकार हैं।

जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक ने बच्चों की सेहत पर कसा शिकंजा

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि दुनिया में पांच से 19 वर्ष के करीब 39.1 करोड़ बच्चे बढ़ते वजन से जूझ रहे हैं। मतलब की हर पांचवां बच्चा इस समस्या से पीड़ित है। इनमें से करीब आधे बच्चे मोटापे की चपेट में हैं। देखा जाए तो यह समस्या आगे चलकर बच्चों में मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी घातक बीमारियों की वजह बन सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों की सेहत पर बाजार की ताकतें हावी हो रही हैं। चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा से भरे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और फास्ट फूड उनके खाने पर काबिज हो रहे हैं। इनका आक्रामक प्रचार बच्चों को और भी ज्यादा अपनी ओर खींच रहा है।

यूनीसेफ ने, 170 देशों के 64 हजार से ज्यादा युवाओं पर एक सर्वेक्षण किया था। सर्वे में 75 फीसदी युवाओं ने माना कि उन्होंने पिछले हफ्ते जंक फूड और सॉफ्ट ड्रिंक के विज्ञापन देखे थे। वहीं 60 फीसदी का कहना था कि इन विज्ञापनों से उन्हें इन खाद्य पदार्थों को खाने की इच्छा और बढ़ गई थी। संघर्ष या टकराव से प्रभावित देशों में भी, 68 फीसदी युवाओं ने कहा कि वे इन विज्ञापनों के सम्पर्क में आए थे।

रिपोर्ट में चेताया गया है कि यदि तुरंत कदम न उठाए गए तो मोटापे से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं गंभीर रूप ले सकती हैं। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2035 तक सालाना 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान होगा।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी अपनी रिपोर्ट में भारत में जंक फ़ूड से जुड़े खतरों के बारे में चेताया है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में बेचे जा रहे अधिकांश पैकेज्ड और फास्ट फूड आइटम में खतरनाक रूप से नमक और वसा की उच्च मात्रा मौजूद है, जो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा निर्धारित तय सीमा से बहुत ज्यादा है।

सीएसई ने इस खतरे से लोगों को आगाह करने के साथ ही लेबलिंग से जुड़े कानूनों को तत्काल लागु करने की मांग की थी। साथ ही जो खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं उनपर अलग से लाल चेतावनी लेबल लगाने की मांग की थी।

भारत सहित कई देशों ने शुरू की है पहल

अच्छी खबर यह है कि कुछ देशों ने इस दिशा में सुधार की पहल की है। उदाहरण के लिए, मेक्सिको ने स्कूलों में जंक फूड और मीठे पेय पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे 3.4 करोड़ बच्चों के खानपान में सुधार हुआ है। मैक्सिको में मीठे पेय और अल्ट्रा प्रोसेस फ़ूड बच्चों द्वारा ली जा रही दैनिक कैलोरी का करीब 40 फीसदी हिस्सा हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने भी इस दिशा में प्रयास किए हैं, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने खाद्य पदार्थों में ट्रांस-फैट की मात्रा धीरे-धीरे घटाई है और 2022 में इसे अनिवार्य रूप से अधिकतम 2 फीसदी पर सीमित कर दिया है। यह नियम खाने के तेल, वसा और उनसे बने उत्पादों पर लागू है।

इस तरह भारत, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाई इस नीति को अपनाने वाला पहला निम्न-मध्य आय वाला देश बन गया है। सरकार के इस कदम से करीब 140 करोड़ लोगों को ट्रांस-फैट के खतरनाक असर से सुरक्षा मिली है।

यूनिसेफ ने सरकारों से अपील की है कि बच्चों के लिए स्वस्थ खानपान का माहौल तैयार करने के लिए कड़े कदम उठाने की जरुरत है। इनमें स्कूलों में जंक फूड पर रोक, फूड लेबलिंग और टैक्स नीति के साथ-साथ विज्ञापनों पर प्रतिबंध और गरीब परिवारों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना जैसे उपाय किए जा सकते हैं।

दुनिया में बच्चों के सामने अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या उनका बचपन पौष्टिक आहार से मजबूत होगा या जंक फूड और मोटापे की गिरफ्त में फंस जाएगा? यूनिसेफ का संदेश साफ है, अगर अभी कदम न उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियां कुपोषण और मोटापे की दोहरी मार झेल रही होंगी। ऐसे में बच्चों के स्वस्थ भविष्य के लिए सरकारों, समाज और परिवारों को मिलकर प्रयास करना होगा।