जलवायु परिवर्तन के कारण जूनोटिक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
तापमान में वृद्धि से जानवरों और इंसानों के बीच संपर्क बढ़ सकता है, जिससे प्लेग, रेबीज, निपाह, कोविड-19 जैसी बीमारियों का प्रसार हो सकता है।
अध्ययन के मुताबिक इंसानों को प्रभावित करने वाली 816 जूनोटिक बीमारियों में से महज छह फीसदी पर ही अब तक यह परखा गया है कि बदलती जलवायु में उनका जोखिम कैसे बदल रहा है।
जूनोटिक बीमारियों और तापमान का रिश्ता इस बात पर भी निर्भर करता है कि बीमारी किस जानवर से फैलती है। गर्म मौसम में मच्छरों की संख्या बढ़ती है, जिससे बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। लेकिन चमगादड़ों और चूहों पर गर्मी का असर कैसे पड़ेगा, इसे लेकर समझ अभी साफ नहीं है, क्योंकि इनके प्रसार के कारण ज्यादा जटिल हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस खतरे को समझने के लिए और गहन शोध की आवश्यकता है।
बढ़ते तापमान के साथ दुनिया तेजी से गर्म हो रही है। ऐसे में खतरा सिर्फ समुद्रों के बढ़ते जलस्तर और चरम मौसम तक सीमित नहीं है। अब एक और बड़ा सवाल सामने है, क्या जलवायु परिवर्तन जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों के खतरे को बढ़ा देगा?
वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस की ओर बढ़ रहा है उसका असर सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं, बल्कि हमारी सेहत पर भी पड़ रहा है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि वैज्ञानिक खुद मानते हैं, हम अभी भी ठीक से नहीं जानते कि यह खतरा कितना बड़ा है।
बीमारियों पर अधूरी समझ
गौरतलब है कि जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों को ‘जूनोटिक डिजीज’ कहा जाता है। इनमें प्लेग, रेबीज, निपाह, कोविड-19 जैसी बीमारियां शामिल हैं। अध्ययन दर्शाते हैं कि जैसे-जैसे दुनिया गर्म होगी, मौसम-बारिश के पैटर्न बदलेंगे, जंगली जीवों के आवास भी बदलेंगे और कई जानवरों का प्रसार भी नई दिशाओं में होगा।
इससे इंसान और जंगली जानवर एक-दूसरे के और करीब आएंगे, नतीजतन जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। लेकिन सैकड़ों वैज्ञानिक अध्ययनों पर किए नए विश्लेषण से पता चला है कि इसके असली असर को समझना अब भी बेहद मुश्किल है।
इस नए अध्ययन के मुताबिक इंसानों को प्रभावित करने वाली 816 जूनोटिक बीमारियों में से महज छह फीसदी पर ही अब तक यह परखा गया है कि बदलती जलवायु में उनका जोखिम कैसे बदल रहा है। यानि, भविष्य की बीमारियों को लेकर अब भी हमारी तैयारी बेहद कमजोर है।
जिन बीमारियों पर जलवायु के खतरे को लेकर अध्ययन हुआ है, उनमें भी नतीजे काफी अलग-अलग मिले हैं। कई मामलों में बढ़ते तापमान से बीमारी का खतरा बढ़ता दिखा, लेकिन यह हर बार सच नहीं होता। वहीं, बारिश और नमी के असर को लेकर तस्वीर और भी ज्यादा धुंधली है।
हालांकि, रिसर्च में पाया गया है कि जूनोटिक बीमारियां आम तौर पर मौसम के प्रति संवेदनशील होती हैं, लेकिन संक्रमण बदलाव पर कई अलग-अलग तरीकों से प्रतिक्रिया करते हैं। सबसे ज्यादा मजबूत संबंध जानवरों से होने वाली बीमारियों और तापमान के बीच था। ज्यादातर मामलों में, तापमान बढ़ने से संक्रमण का खतरा कम होने की जगह, उसके बढ़ने की आशंका करीब-करीब दोगुनी होती है। लेकिन कहानी इतनी सीधी भी नहीं है।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता आर्तुर ट्रेब्स्की का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “अक्सर कहा जाता है कि जलवायु परिवर्तन से जानवरों से फैलने वाली बीमारियां बढ़ेंगी, लेकिन असलियत इससे कहीं ज्यादा जटिल है।” ऐसे में उनके मुताबिक जलवायु और बीमारी के रिश्ते को समझने के लिए हमें कहीं बेहतर और गहन शोध की जरूरत है।
प्लेग से समझिए जटिल रिश्ता
अध्ययन में प्लेग, जोकि चूहों और उन पर पलने वाले पिस्सुओं से फैलता है, उसका उदाहरण देते हुए बताया है कि इस बीमारी पर तापमान का गहरा असर पड़ता है। गर्म मौसम कुछ इलाकों में चूहों की संख्या बढ़ा सकता है और पिस्सुओं के विकास को तेज कर देता है, जिससे संक्रमण के फैलने के मौके बढ़ जाते हैं।
लेकिन बहुत ज्यादा गर्मी में यही प्रक्रिया टूट जाती है और प्लेग का प्रसार कम भी हो सकता है। इसका मतलब है कि एक सीमा के बाद गर्मी बीमारी को बढ़ाने के बजाय घटा भी सकती है।
जूनोटिक बीमारियों और तापमान का रिश्ता इस बात पर भी निर्भर करता है कि बीमारी किस जानवर से फैलती है। गर्म मौसम में मच्छरों की संख्या बढ़ती है, जिससे बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। लेकिन चमगादड़ों और चूहों पर गर्मी का असर कैसे पड़ेगा, इसे लेकर समझ अभी साफ नहीं है, क्योंकि इनके प्रसार के कारण ज्यादा जटिल हैं।
इस अध्ययन के नतीजे जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं।
बारिश और नमी: उलझा हुआ असर
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि तापमान के मुकाबले बारिश और नमी का असर और भी ज्यादा अनिश्चित है। शोधकर्ताओं के मुताबिक बारिश और नमी जीवों पर कई तरह से असर डालती हैं। एक तरफ तेज बारिश से पानी भर जाता है, जो मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल माहौल तैयार करता है। लेकिन यही बारिश उनके मौजूदा प्रजनन स्थलों को बहा भी सकती है।
इसी तरह चूहों के मामले में बारिश से खाने की उपलब्धता बढ़ सकती है, जिससे उनकी संख्या बढ़ती है। लेकिन बहुत ज्यादा बारिश उनके बिलों को नुकसान पहुंचा सकती है या नष्ट कर सकती है। देखा जाए तो बारिश और नमी जंगली जीवों को इतने अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती हैं कि कोई एक साफ पैटर्न पकड़ना मुश्किल हो जाता है।
डॉक्टर डेविड रेडिंग का कहना है, “जलवायु परिवर्तन हर जीव को प्रभावित करेगा, लेकिन हैरानी की बात है कि हम अब तक यह समझने का कोई साझा तरीका नहीं बना पाए हैं कि इसका असर जानवरों और उनकी बीमारियों पर कैसे पड़ता है।”
वैज्ञानिकों का मानना है कि अब ‘सब पर एक जैसा नियम’ लागू करने की सोच से बाहर निकलना होगा। हर बीमारी, हर जानवर और हर इलाका अलग है। ऐसे में जब हम इन जटिल रिश्तों को बेहतर समझेंगे, तभी हम इन्हें नियंत्रित करने के प्रभावी उपाय खोज पाएंगे।
इस अध्ययन के नतीजे स्पष्ट हैं, जलवायु परिवर्तन और बीमारियों के रिश्ते पर हमारी समझ अब भी बेहद अधूरी है, और इसे जल्द भरना जरूरी है।
जैसे-जैसे गर्म होती धरती इंसानों और जंगली जानवरों को पहले से ज्यादा करीब ला रही है। आवास बदलेंगे, रास्ते टकराएंगे और वहीं से नई बीमारियों का खतरा पैदा होगा। लेकिन फिलहाल, हम बस इतना जानते हैं कि आने वाला भविष्य शायद ज्यादा बीमार हो सकता है, पर कितना, यह अभी समझना बाकी है।