इंडियाना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि दुर्लभ ब्लड कैंसर 'मल्टीपल मायलोमा' पुरुषों और महिलाओं में जैविक रूप से अलग-अलग तरीके से विकसित होता है।
अध्ययन से पता चला है कि 'एक्सोसोम', यानी कोशिकाओं से निकलने वाले बेहद छोटे कण, जो शरीर में संदेश ले जाते हैं, उनके भीतर मौजूद नॉन-कोडिंग आरएनए पुरुषों और महिलाओं में अलग होते हैं।
ये नॉन-कोडिंग आरएनए एक्सोसोम के जरिए दूसरी कोशिकाओं तक संदेश भेजते हैं। यह मल्टीपल मायलोमा कोशिकाओं में भी होता है। स्टडी से पता चला है कि पुरुष और महिला मरीजों के एक्सोसोम बिल्कुल अलग तरह के संदेश लेकर चलते हैं, हालांकि कुछ समानताएं भी हैं। ये संदेश बीमारी की पहचान और उसकी गंभीरता समझने में मदद कर सकते हैं।
अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी के मेल्विन और ब्रेन साइमन कैंसर सेंटर के वैज्ञानिकों ने एक अहम खोज की है। उन्होंने पाया है कि दुर्लभ ब्लड कैंसर 'मल्टीपल मायलोमा' पुरुषों और महिलाओं में जैविक रूप से अलग-अलग तरीके से विकसित होता और बढ़ता है।
यह दुर्लभ ब्लड कैंसर महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में अधिक पाया जाता है, और यही जैविक अंतर अब इसके कारणों को समझने की नई राह खोल रहा है। अध्ययन डॉक्टर रेजा शाहबाजी के नेतृत्व में किया गया है, जो इंडियाना यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन में सहायक प्रोफेसर हैं। इस अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित ब्लड कैंसर जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
यह अध्ययन मेयो क्लिनिक के सहयोग से किया गया। वैज्ञानिकों ने 24 मरीजों के बोन मैरो से लिए गए कैंसर सेल्स और प्रयोगशाला में तैयार मल्टीपल मायलोमा सेल लाइन्स का भी अध्ययन किया है।
अध्ययन पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर शाहबाजी ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित पुरुष और महिला मरीजों को आज एक जैसा इलाज दिया जाता है, लेकिन हम जानते हैं कि यह बीमारी पुरुषों में अधिक होती है। हमारे अध्ययन से पता चला है कि कुछ खास नॉन-कोडिंग आरएनए पुरुषों और महिलाओं में अलग होते हैं। यही अंतर भविष्य में मरीज के हिसाब से इलाज तय करने में मदद कर सकता है।"
आरएनए और ‘एक्सोसोम’ से मिली अहम जानकारी
वैज्ञानिको ने इन सेल्स का इस्तेमाल पुरुष और महिला मरीजों में आणविक स्तर पर अंतर पता करने के लिए किया है। शोध में पता चला कि एक्सोसोम, यानी कोशिकाओं से निकलने वाले बेहद छोटे कण, जो शरीर में संदेश ले जाते हैं, उनके भीतर मौजूद नॉन-कोडिंग आरएनए पुरुषों और महिलाओं में अलग होते हैं।
ये एक्सोसोम पूरे शरीर में घूमते हैं, इसलिए ये बीमारी के संकेत ज्यादा साफ तरीके से दिखाते हैं।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने न केवल बोन मैरो, बल्कि पूरे शरीर में घूमने वाले एक्सोसोम का विश्लेषण किया है, जिससे बीमारी के सूक्ष्म आणविक अंतर का भी पता चल सके, जो आम तरीकों से अक्सर छूट जाते हैं।
इस बारे में जानकरी साझा करते हुए डॉक्टर शाहबाजी का कहना है, “ये नॉन-कोडिंग आरएनए एक्सोसोम के जरिए दूसरी कोशिकाओं तक संदेश भेजते हैं। यह मल्टीपल मायलोमा कोशिकाओं में भी होता है। हमने पाया कि पुरुष और महिला मरीजों के एक्सोसोम बिल्कुल अलग तरह के संदेश लेकर चलते हैं, हालांकि कुछ समानताएं भी हैं। ये संदेश बीमारी की पहचान और उसकी गंभीरता समझने में मदद कर सकते हैं।”
जल्द पहचान की उम्मीद
शोधकर्ताओं ने पाया कि ये नॉन-कोडिंग आरएनए प्रतिरक्षा प्रणाली, कोशिकाओं की बढ़त और दवाओं के असर से जुड़े जीन को नियंत्रित करते हैं। इसका मतलब है कि ये भविष्य में बायोमार्कर बन सकते हैं, यानी ऐसे संकेत, जिनसे बीमारी को जल्दी पकड़ा जा सके।
मल्टीपल मायलोमा में समय पर पहचान बेहद जरूरी होती है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह खोज आगे चलकर बीमारी की जल्द जांच, उसकी गंभीरता का अंदाजा लगाने और मरीज के लिंग के अनुसार बेहतर इलाज तय करने में मदद करेगी।
अब शोधकर्ता इस अध्ययन को ज्यादा मरीजों पर दोहराकर इन नतीजों की पुष्टि करने की तैयारी कर रहे हैं। यह अध्ययन न केवल मल्टीपल मायलोमा के पुरुष और महिलाओं में अलग बढ़ने के कारण को उजागर करता है, बल्कि भविष्य में विशिष्ट उपचार और जल्द पहचान के नए रास्ते भी खोलता है।