मौजूदा दवाएं अस्थमा के लक्षण रोकती हैं, नई खोज भविष्य में बीमारी के मूल कारण को निशाना बना सकती है। फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

अस्थमा और सूजन संबंधी बीमारियों के असली कारण हो सकते हैं ‘प्सूडो ल्यूकोट्राइन’

नई खोज से अस्थमा, सूजन और तंत्रिका संबंधी बीमारियों के इलाज में नए विकल्प खुल सकते हैं, पारंपरिक उपचार पद्धतियां बदल सकती हैं।

Dayanidhi

  • वैज्ञानिकों ने अस्थमा में सूजन के नए संभावित कारक ‘प्सूडो ल्यूकोट्राइन’ की खोज की।

  • ये अणु फ्री रेडिकल्स द्वारा लिपिड ऑक्सीडेशन से बनते हैं, न कि एंजाइम प्रक्रिया से।

  • मौजूदा दवाएं लक्षण रोकती हैं, नई खोज भविष्य में बीमारी के मूल कारण को निशाना बना सकती है।

  • यह खोज पार्किंसन और अल्जाइमर जैसी बीमारियों के इलाज में नए रास्ते खोल सकती है।

  • प्सूडो ल्यूकोट्राइन अस्थमा की गंभीरता का संभावित बायोमार्कर बन सकता है।

कई वर्षों से वैज्ञानिक इस बात को लेकर सहमत रहे हैं कि अस्थमा और उससे जुड़ी सांस की समस्याओं का मुख्य कारण ‘ल्यूकोट्राइन’ नामक सूजन पैदा करने वाले अणु हैं। यह अणु शरीर की सफेद रक्त कोशिकाओं द्वारा तब छोड़े जाते हैं जब वायु मार्ग में कोई एलर्जी, धूल, प्रदूषण या संक्रमण जैसी उत्तेजना पहुंचती है।

ये अणु फेफड़ों की श्वसन नलियों को संकुचित कर देते हैं, जिसके कारण व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होती है। इसी प्रक्रिया को रोकने के लिए ‘सिंगुलैर’ जैसे दवाएं बनाई गई हैं, जो ल्यूकोट्राइन की क्रिया को अवरुद्ध करके राहत देती हैं।

लेकिन हाल ही में केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि अस्थमा और अन्य सूजन संबंधी बीमारियों का वास्तविक कारण शायद बिल्कुल अलग प्रकार के अणु हो सकते हैं। इन्हें उन्होंने ‘प्सूडो ल्यूकोट्राइन’ नाम दिया है। वैज्ञानिक हैं, बताते हैं कि ये नए अणु संरचना में तो ल्यूकोट्राइन जैसे ही दिखते हैं, लेकिन शरीर में बनने की प्रक्रिया पूरी तरह अलग है।

यह नया तत्व कहां से आता है?

जहां परंपरागत ल्यूकोट्राइन शरीर की एंजाइमिक प्रक्रिया द्वारा बनते हैं, वहीं प्सूडो ल्यूकोट्राइन फ्री रेडिकल्स द्वारा लिपिड्स (वसायुक्त अणुओं) में ऑक्सीजन जोड़ने से बनते हैं। फ्री रेडिकल्स शरीर में ‘ऑक्सीडेशन’ नामक प्रक्रिया चलते समय बनते हैं, और यह प्रक्रिया कभी-कभी बेकाबू होकर ऊतकों को नुकसान भी पहुंचा सकती है।

एलर्जी और क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह प्रक्रिया बिल्कुल आग लगने जैसी है जहां ऑक्सीजन ईंधन के साथ मिलकर तेज रासायनिक प्रतिक्रिया पैदा करती है। अगर इसे नियंत्रित न किया जाए, तो यह आसानी से नुकसान पहुंचा सकती है।

शोध यह भी संकेत देता है कि अस्थमा से पीड़ित लोगों में एंजाइम्स और एंटीऑक्सीडेंट्स की कमी होती है, जो सामान्यतः फ्री रेडिकल्स को रोकने और निष्क्रिय करने का काम करते हैं। इसलिए उनके शरीर में प्सूडो ल्यूकोट्राइन अधिक मात्रा में बनने लगते हैं।

इलाज की दिशा में बड़ा बदलाव संभव

यदि सूजन पैदा करने में मुख्य भूमिका असली ल्यूकोट्राइन की न होकर प्सूडो ल्यूकोट्राइन की होती है, तो वर्तमान में इस्तेमाल हो रही दवाएं केवल लक्षणों को दबा रही हैं, कारण को नहीं।

वर्तमान दवाएं ल्यूकोट्राइन रिसेप्टर ब्लॉकर हैं, यानी सूजन की ‘चाबी’ को ताले में फिट होने से रोकती हैं। लेकिन नई खोज के अनुसार अधिक प्रभावी तरीका यह हो सकता है कि फ्री रेडिकल्स की प्रक्रिया को ही नियंत्रित किया जाए, ताकि प्सूडो ल्यूकोट्राइन का निर्माण प्रारंभ से ही कम हो जाए।

इसके दो बड़े फायदे हो सकते हैं

  • अस्थमा जैसी बीमारियां अधिक कुशलता से नियंत्रित हो सकती हैं।

  • ल्यूकोट्राइन के फायदेमंद कार्य (जैसे याददाश्त का निर्माण और चोट भरना) प्रभावित नहीं होंगे।

  • सिर्फ अस्थमा ही नहीं, अन्य बीमारियों में भी संभावनाएं

शोधकर्ताओं का मानना है कि यह खोज अस्थमा तक सीमित नहीं है। यह सूजन आधारित तंत्रिका संबंधी बीमारियों जैसे पार्किंसन और अल्जाइमर के इलाज को समझने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

शोध कैसे किया गया?

टीम ने पहले प्रयोगशाला में प्सूडो ल्यूकोट्राइन निर्मित किए, ताकि उन्हें पहचानने की विधि विकसित की जा सके। इसके बाद शोधकर्ताओं ने सामान्य लोगों के मूत्र नमूने, हल्के अस्थमा रोगियों के नमूने और गंभीर अस्थमा रोगियों के नमूने की तुलना की।

परिणाम चौंकाने वाले थे,अस्थमा रोगियों में प्सूडो ल्यूकोट्राइन की मात्रा सामान्य लोगों की तुलना में चार से पांच गुना अधिक थी और बीमारी की गंभीरता के साथ यह मात्रा सीधे बढ़ती गई। इससे यह भी संभावना बनती है कि यह एक नया बायोमार्कर बन सकता है, जिससे अस्थमा की गंभीरता की आसानी से जांच की जा सके।