कोविड-19 के अलग-अलग वेरिएंट शरीर पर किस तरह बुरा प्रभाव डालते हैं, विशेष रूप से डेल्टा वेरिएंट, जिसने चयापचय और हार्मोनल मार्गों में बड़ी रुकावट पैदा की।  प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

दावा: आईआईटी-इंदौर के अध्ययन से कोविड-19 के सटीक जांच व उपचार में मिलेगी नई दिशा

कोविड-19 के लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभावों को समझना बेहतर स्वास्थ्य देखभाल की तैयारी और तय उपचारों को डिजाइन करने के लिए जरूरी है।

Dayanidhi

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), इंदौर के शोधकर्ताओं के द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 के अलग-अलग तरह के वायरस ने मनुष्य के शरीर को कैसे प्रभावित किया और रोग की गंभीरता के विभिन्न स्तर किस तरह पैदा हुए।

शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि कोविड-19 के अलग-अलग वेरिएंट शरीर को कैसे प्रभावित करते हैं, जिससे चयापचय और हार्मोनल मार्गों में बड़ी रुकावट आती है। इस शोध की अगुवाई आईआईटी, इंदौर और भुवनेश्वर के केआईएमएस के शोधकर्ताओं के साथ भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के सहयोग से किया गया।

जर्नल ऑफ प्रोटिओम रिसर्च में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि आणविक स्तर पर कोविड-19 के लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभावों को समझना स्वास्थ्य देखभाल की बेहतर तैयारी और तय उपचारों को डिजाइन करने के लिए जरूरी है।

भारत में पहली और दूसरी लहर के 3,134 कोविड-19 के रोगियों के क्लीनिकल या नैदानिक आंकड़ों का उपयोग किया गया। इसकी मदद से शोधकर्ताओं ने बीमारी की गंभीरता से संबंधित नौ महत्वपूर्ण मापदंडों की पहचान करने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग किया, जैसे कि सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी), डी-डिमर, फेरिटिन, न्यूट्रोफिल, श्वेत रक्त कोशिका (डब्ल्यूबीसी) की गिनती, लिम्फोसाइट्स, यूरिया, क्रिएटिन और लैक्टेट डिहाइड्रोजनेज (एलडीएच) आदि।

मरीजों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के अलावा शोधकर्ताओं ने फेफड़े और कोलन कोशिकाओं का अध्ययन किया जो इन वायरस वेरिएंट से अलग-अलग स्पाइक प्रोटीन के संपर्क में थे।

शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि कोविड-19 के अलग-अलग वेरिएंट शरीर पर किस तरह बुरा प्रभाव डालते हैं, विशेष रूप से डेल्टा वेरिएंट, जिसने चयापचय और हार्मोनल मार्गों में बड़ी रुकावट पैदा की। यह शोध लंबे समय तक रहने वाले कोविड-19 लक्षणों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए सटीक जांच और उपचार विकसित करने में मदद कर सकता है।

शोध में कहा गया है कि डेल्टा वैरिएंट ने शरीर के रासायनिक संतुलन में सबसे बड़ी रुकावट डाली। इसने कैटेकोलामाइन और थायरॉयड हार्मोन उत्पादन से संबंधित रास्तों को प्रभावित किया, जिससे साइलेंट हार्ट फेलियर और थायरॉयड डिसफंक्शन सहित जटिलताएं पैदा हुईं। इन निष्कर्षों की एक मेटा-विश्लेषण द्वारा और भी पुष्टि की गई, जिसने यूरिया और अमीनो एसिड चयापचय में व्यवधान की ओर इशारा किया।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इस शोध में मल्टी-ओमिक्स और रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी उन्नत तकनीकें भी शामिल थीं, जिनका उपयोग आईआईटी-इंदौर के शोधकर्ताओं की टीम ने इन बाधाओं को मापने के लिए किया।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इस तरह के शोध से न केवल वैज्ञानिक समझ बढ़ती है बल्कि बेहतर स्वास्थ्य रणनीतियों और उपचारों को आकार देने में भी मदद मिलती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस अध्ययन के निष्कर्षों से कोविड जैसी महामारी के लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभावों के लिए बेहतर उपचार में मदद मिलेगी।