प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

सावधान! हेयर स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स से निकल रहे करोड़ों जहरीले कण, फेफड़ों में घुल रहा धीमा जहर

अध्ययन में पाया गया है कि महज 10 से 20 मिनट की हेयर स्टाइलिंग से शरीर में उतने नैनोपार्टिकल्स पहुंच सकते हैं, जितने कि भीड़भाड़ वाली सड़क पर खड़े रहने से हमारे शरीर में पहुंचते हैं

Lalit Maurya

अगर आप अपने बालों को संवारने के लिए रोजाना हेयर स्ट्रेटनर, कर्लर और दूसरे हेयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं, तो यह खबर आपके लिए है। अमेरिका की पर्ड्यू यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपने एक नए अध्ययन में पाया है कि महज 10 से 20 मिनट की हेयर स्टाइलिंग से शरीर में उतने नैनोपार्टिकल्स पहुंच सकते हैं, जितने कि भीड़भाड़ वाली सड़क पर खड़े रहने से हमारे शरीर में पहुंचते हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि महज 10 से 20 मिनट की हेयर स्टाइलिंग के दौरान ही 1000 करोड़ से ज्यादा सूक्ष्म कण (नैनो-पार्टिकल्स) हवा में फैल जाते हैं। ये कण आकार में इतने छोटे होते हैं कि सीधा हमारे फेफड़ों के सबसे अंदरूनी हिस्सों तक पहुंच सकते हैं।

इनकी वजह से सांस में तकलीफ, फेफड़ों में सूजन और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। इस अध्ययन के नतीजे अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

गर्मी और प्रोडक्ट्स का खतरनाक मेल

इस अध्ययन का नेतृत्व पर्ड्यू यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर नुसरत जंग और उनकी पीएचडी छात्रा जिआंगहुई लियू ने किया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक हेयर स्ट्रेटनर, कर्लिंग आयरन जैसे गर्म होने वाले उपकरणों के उपयोग से ये खतरनाक कण सबसे ज्यादा निकलते हैं।

उन्होंने पाया कि जब बालों में लगाए जाने वाले प्रोडक्ट्स को 150 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्मी मिलती है, तो उनमें मौजूद केमिकल तेजी से वाष्पित होकर हवा में जहरीले कणों का गुबार बना देते हैं। ये कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें बिना किसी मदद के आंखों से नहीं देखा जा सकता, लेकिन ये कण सांस के जरिए फेफड़ों के सबसे अंदरूनी हिस्सों तक पहुंच जाते हैं।

उदाहरण के लिए 182 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान पर निकले कणों में से 95 फीसदी से ज्यादा कण 100 नैनोमीटर से छोटे थे।

जंग और उनके सहयोगियों द्वारा 2023 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया कि गर्मी के कारण बालों की देखभाल में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों से वाष्पशील रसायनों का उत्सर्जन काफी बढ़ जाता है। इनमें से डी5 सिलोक्सेन नामक केमिकल खास तौर पर चिंता का विषय है, क्योंकि इसका सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। यह केमिकल आमतौर पर हेयर स्प्रे, क्रीम, सीरम और अन्य "लीव-ऑन" प्रोडक्ट्स में पाया जाता है।

इसे बालों को मुलायम बनाने और गर्मी सहने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह केमिकल पर्यावरण में बेहद देर तक बना रहता है। साथ ही शरीर में जमा हो सकता है। जानवरों पर किए परीक्षणों से पता चला है कि यह रसायन फेफड़ों, लीवर और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है।

यूरोपियन यूनियन ने इसे कई उत्पादों में प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन दुनिया के अन्य हिस्सों में यह अब भी इस्तेमाल में है।

जंग के मुताबिक डी5 सिलोक्सेन एक ऑर्गेनो-सिलिकॉन यौगिक है, जो अक्सर बालों की देखभाल से जुड़े उत्पादों में प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है। यह केमिकल पिछले कुछ दशकों में सौंदर्य और देखभाल से जुड़े उत्पादों में आम तौर पर इस्तेमाल होने लगा है, क्योंकि इसकी सतह का तनाव कम होता है, यह रासायनिक रूप से निष्क्रिय होता है, ज्यादा गर्मी सह सकता है।

छोटे कण, बड़ा खतरा

यूरोपियन केमिकल एजेंसी के अनुसार, डी5 सिलोक्सेन को "अत्यधिक स्थाई और शरीर में जमा होने वाला रसायन" माना गया है। जंग के मुताबिक हालांकि जानवरों पर किए परीक्षणों के नतीजे पहले से ही चिंताजनक हैं, लेकिन इंसानों पर इसके प्रभाव को लेकर अभी भी ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। यही वजह है कि यूरोपियन यूनियन ने इसे वॉश-ऑफ कॉस्मेटिक उत्पादों (जैसे शैंपू आदि) में काफी हद तक प्रतिबंधित कर दिया है।

स्टडी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि एक बार की हेयर स्टाइलिंग के दौरान 10 अरब से ज्यादा नैनोकण हमारे श्वसन तंत्र में जमा हो सकते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा कण फेफड़ों के सबसे अंदरूनी हिस्से में पहुंच सकते हैं।

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि गर्मी पर आधारित हेयर स्टाइलिंग घर के अंदर हवा में घुलने वाले खतरनाक कणों का एक बड़ा स्रोत है, और इनका सांस के जरिए एक्सपोजर पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है, जिसे अब तक कम आंका गया था।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि बिना गर्मी के भी कुछ कण बनते हैं खासकर तब जब बालों के उत्पादों में मौजूद खुशबू वाले रसायन (जैसे टरपीन्स) कमरे की ओजोन गैस से रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं।

चूंकि हेयर स्टाइलिंग आमतौर पर चेहरे के पास की जाती है, ऐसे में प्रदूषण के यह कण सीधे हमारी सांसों में पहुंच जाते हैं। इसके साथ ही यह कण फेफड़ों के सबसे अंदरूनी हिस्सों में जाकर जमा होते हैं, जिससे सांस संबंधी समस्याएं, सूजन और मानसिक स्वास्थ्य पर असर हो सकता है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इन प्रदूषित कणों पर स्टाइलिंग टूल और बालों की लंबाई भी असर डालती है। हालांकि रिसर्च से पता चला है कि तापमान का असर प्रोडक्ट से ज्यादा होता है। तापमान जितना ज्यादा होता है, उतने ज्यादा कण मुक्त होते हैं। उदाहरण के लिए अध्ययन के दौरान जब तापमान करीब 149 डिग्री सेल्सियस था, तब इन कणों की संख्या एक अरब से कम थी। वहीं 210 डिग्री सेल्सियस पर इनकी संख्या कई गुणा बढ़ गई।

क्या करें? कैसे बचें?

इसके अलावा, लंबे बालों की स्टाइलिंग में ज्यादा समय लगता है, जिससे जहरीले कणों का उत्सर्जन भी ज्यादा होता है और शरीर में इनकी मात्रा बढ़ जाती है। रिसर्च के अनुसार, 20 मिनट की हेयर स्टाइलिंग से शरीर में उतने ही नैनो-पार्टिकल्स जमा हो सकते हैं, जितने की 20 से 200 मिनट ट्रैफिक में खड़े रहने से शरीर में पहुंचते हैं।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि अगर आप हेयर स्टाइलिंग से पूरी तरह बच नहीं सकते तो, बालों को स्टाइल करते वक्त खिड़कियां खुली रखें या एग्जॉस्ट फैन चालू रखें। इसके साथ ही एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें, संभव हो तो कम तापमान पर स्टाइल करें और गर्म उपकरण और हेयर प्रोडक्ट्स का एक साथ कम से कम प्रयोग करें।

देखा जाए तो अध्ययन के नतीजे स्पष्ट तौर पर दर्शाते हैं कि खूबसूरत बालों की चाह में हम अनजाने में ही सही लेकिन अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे में सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि सुंदरता से ज्यादा आपका स्वास्थ्य कीमती है।