दूषित पानी इसके तेजी से फैलने का मुख्य कारण है। इतना ही नहीं संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, आबादी का पलायन और पानी व स्वच्छता से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं की कमी इस बीमारी को और बढ़ा रही हैं। फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

हैजा: एक साल में सामने आए 5.6 लाख मरीज, मौतों में 50 फीसदी का उछाल: डब्ल्यूएचओ

2024 में हैजे से 6,000 से अधिक लोगों की गई जान, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन से बिगड़े हालात, डब्ल्यूएचओ ने वैक्सीन उत्पादन और सामुदायिक भागीदारी पर दिया जोर

Lalit Maurya

  • ,विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में हैजे के 5,60,823 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 5 फीसदी अधिक हैं।

  • मौतों में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है।

  • आंकड़ों से पता चला है कि जहां 2023 में दुनिया भर में हैजे के 5,35,000 से ज्यादा मामले सामने आए थे, वहीं मरने वालों की 4,000 दर्ज की गई थी। 

  • यह बीमारी दूषित पानी से फैलती है और अब 60 देशों में फैल चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक संख्या इससे अधिक हो सकती है।

  • दूषित पानी इसके तेजी से फैलने का मुख्य कारण है। इतना ही नहीं संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, आबादी का पलायन और पानी व स्वच्छता से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं की कमी इस बीमारी को और बढ़ा रही हैं

विडंबना देखिए दुनिया में एक ऐसी बीमारी जिसकी रोकथाम मुमकिन है लेकिन इसके बावजूद वो हर साल हजारों लोगों की जान ले रही है। यह बीमारी है हैजा (कॉलरा), जिसकी वजह से 2024 में 6,000 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस बारे में जारी अपनी नई रिपोर्ट में जानकारी दी है कि 2024 में हैजे के 5,60,823 मामले सामने आए थे, जो पिछले साल 2023 की तुलना में पांच फीसदी अधिक हैं। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इनकी वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।

इतना ही नहीं इसकी वजह से होने वाली मातों में भी गत एक साल में 50 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। आंकड़ों से पता चला है कि जहां 2023 में दुनिया भर में हैजे के 5,35,000 से ज्यादा मामले सामने आए थे, वहीं मरने वालों की संख्या 4,000 दर्ज की गई थी। 

चिंता की बात है कि 2023 में जहां 45 देशों और क्षेत्रों में हैजे के प्रसार की जानकारी सामने आई थी। वहीं 2024 में इन देशों की गिनती बढ़कर 60 पर पहुंच गई है। देखा जाए तो दूषित पानी से फैलने वाला यह रोग अब नए इलाकों में अपने पैर पसार रहा है, यहां तक कि 15 साल बाद कोमोरोस में भी इसके मामलों में उछाल आया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी साफ तौर पर चेताया है कि हैजे का वैश्विक खतरा अब ‘बड़े’ स्तर पर पहुंच चुका है। यह स्थिति काफी हैरान करने वाली है क्योंकि न केवल पहले के मुकाबले हैजे के कहीं ज्यादा प्रकोप देख रहे हैं, बल्कि यह प्रकोप पिछले वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक और घातक भी हुए हैं।

इससे पहले पिछले कई वर्षों में हैजे के मामलों और उससे होने वाली मौतों में कमी आ रही थी। लेकिन अब हैजे का प्रकोप दोबारा पैर पसारने लगा है।

क्यों दुनिया में पैर पसार रही यह बीमारी

हैजा, जिसे एशियाई महामारी के रूप में भी जाना जाता है। विब्रियो कॉलेरी नामक बैक्टीरिया से फैलने वाली बीमारी है। यह बीमारी दूषित पानी या भोजन के जरिए फैलती है। इस बीमारी में दस्त (डायरिया) की समस्या गंभीर रूप ले लेती है। इसकी वजह से पीड़ित के शरीर में पानी की कमी होने लगती है। यहां तक कि यह बीमारी कुछ घंटों में ही शरीर का सारा पानी सोख लेती है।

डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट में पुष्टि की है कि दूषित पानी इसके तेजी से फैलने का मुख्य कारण है। इतना ही नहीं संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, आबादी का पलायन और पानी व स्वच्छता से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं की कमी इस बीमारी को और बढ़ा रही हैं।

गौतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले भी चेता चुका है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते दुनिया भर में हैजे का प्रकोप बढ़ सकता है।

स्थिति की गंभीरता इसी से समझी जा सकती है कि जहां 2023 में 45 देशों में इसके मामले दर्ज किए गए थे। वहीं 2024 में यह बीमारी 60 देशों में फैल चुकी थी। 2024 में सामने आए कुल मामलों में से 98 फीसदी अफ्रीका, मध्य-पूर्व और एशिया में सामने आए।

वहीं 12 देशों (बांग्लादेश, कोमोरोस, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, नाइजीरिया, सोमालिया, दक्षिण सूडान, सूडान, तंजानिया, यमन, जाम्बिया और जिम्बाब्वे) ने 10,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए और 7 देशों में पहली बार बड़े स्तर पर प्रकोप देखा गया। 15 साल बाद कोमोरोस में हैजा के वापसी ने वैश्विक संक्रमण के खतरे को और स्पष्ट कर दिया है।

भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 2024 में 1851 मामले सामने आए जबकि किसी की भी जान इस बीमारी से नहीं गई। वहीं दूसरी तरफ अफ्रीका में मौत की दर (केस फैटैलिटी रेशियो) 2023 में 1.4 फीसदी से बढ़कर 2024 में 1.9 फीसदी पर पहुंच गया।

यह दिखाता है आज भी अफ्रीकी देशों में जीवनरक्षक दवाओं और इलाज की समय पर उपलब्धता की गंभीर कमी है। चौंकाने वाली बात यह है कि हर चार मौतों में से एक स्वास्थ्य केंद्र से बाहर, यानी समुदाय स्तर पर दर्ज की गई। यह दिखाता है कि लोगों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा और समुदायों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत और बढ़ गई है।

क्या है समाधान?

स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हैजा पर काबू पाने के लिए लोगों की साफ-सुरक्षित पानी तक पहुंच बेहद जरूरी है। साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं मौजूद हैं। इसके साथ ही सही जानकारी, और समय पर इलाज व टीकाकरण तक पहुंच बेहद जरूरी है।

इसके साथ ही पर्याप्त निगरानी और तेज जांच व्यवस्था इन प्रयासों को दिशा दे सकती है। साथ ही, वैक्सीन उत्पादन में निवेश करने की भी जरूरत है।

2024 में इस बीमारी की रोकथाम के लिए एक नई ओरल वैक्सीन Euvichol-S® को मंजूरी दी गई थी और इसे वैश्विक भंडार में शामिल किया गया। इससे अस्थाई तौर पर 2025 के पहले छह महीनों तक वैक्सीन का स्टॉक 50 लाख डोज से ऊपर बना रहा। लेकिन मांग इतनी अधिक है कि अभी भी दो खुराक के बजाय एक खुराक वाले अभियान ही चलाए जा रहे हैं। पिछले साल 6.1 करोड़ डोज की मांग की गई थी, जिनमें से महज 4 करोड़ डोज ही 16 देशों में आपातकालीन उपयोग के लिए स्वीकृत किए गए। इसके बावजूद आपूर्ति की कमी बनी रही और मांग पूरी नहीं हो सकी।

2025 की शुरुआत से देखें तो अब तक 31 देशों में हैजा का प्रकोप दर्ज किया गया है। डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि इस समय दुनिया में हैजे का खतरा “बहुत ज्यादा” है और इस पर तुरंत नियंत्रण की जरूरत है।