दुनिया के करीब आधे बच्चे तम्बाकू से दूषित हुई हवा में सांस लेने को मजबूर हैं; फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

तम्बाकू पर प्रतिबन्ध से बचाई जा सकती हैं फेफड़ों के कैंसर से हर साल जाने वाली 12 लाख जानें

यदि हम युवा पीढ़ी को तम्बाकू के जहर से बचा पाने में सफल होते हैं तो फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 40 फीसदी से ज्यादा मौतों को टाल सकते हैं

Lalit Maurya

तम्बाकू एक ऐसा धीमा जहर है जो न केवल बुजुर्गों बल्कि युवा पीढ़ी को भी अपना शिकार बना रहा है। इसकी लत शरीर को अन्दर ही अंदर खोखला बना देती है। इतना ही नहीं तम्बाकू के सेवन और धूम्रपान से कैंसर का खतरा और मृत्यु की आशंका भी बढ़ जाती है। ऐसे में तम्बाकू के हानिकारक प्रभावों और उसपर प्रतिबन्ध के फायदों को उजागर करते हुए एक नया अध्ययन जारी किया गया है।

इस अध्ययन के मुताबिक तम्बाकू पर प्रतिबन्ध की मदद से फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 11,86,500 मौतों को रोका जा सकता है। इतना ही नहीं इसकी मदद से एक धूम्रपान मुक्त पीढ़ी की नींव रखी जा सकती है।

जर्नल द लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं "तंबाकू मुक्त पीढ़ी" की मदद से भविष्य में फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मौतों को काफी हद तक सीमित किया जा सकता है। यह अध्ययन सैंटियागो डे कम्पोस्टेला यूनिवर्सिटी और अंतर्राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (आईएआरसी) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में अंतराष्ट्रीय विशेषज्ञों के दल द्वारा किया गया है।

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर पर तम्बाकू उत्पादों पर लगाए प्रतिबन्ध की मदद से 2006 से 2010 के बीच जन्में लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का विश्लेषण किया है। निष्कर्ष दर्शाते हैं कि तम्बाकू पर प्रतिबन्ध से युवाओं को इस जहर से बचाया जा सकता है। साथ ही 2095 तक फेफड़े के कैंसर से होने वाली मौतों में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।

इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि यदि पिछले 15 वर्षों के दौरान देखी गई प्रवृत्ति जारी रहती है तो वैश्विक स्तर पर 2006 से 2010 के बीच जन्मे करीब 29.5 लाख लोगों की मौत फेफड़ों के कैंसर से हो सकती है। इनमें से करीब 62.4 फीसदी यानी 18.4 लाख मौतों पुरुषों में जबकि करीब 38 फीसदी मौतें महिलाओं में होने की आशंका है।

ऐसे में यदि हम इस युवा पीढ़ी को तम्बाकू के जहर से बचा पाने में सफल होते हैं तो फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 40 फीसदी से ज्यादा मौतों को टाल सकते हैं, यानी करीब 12 लाख जिंदगियों को बचाया जा सकता है।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मृत्यु दर डेटाबेस में 82 देशों के ऐतिहासिक आंकड़ों का विश्लेषण किया है। साथ ही ग्लोबोकैन 2022 डेटाबेस का भी अध्ययन किया है ताकि इस समय के दौरान पैदा हुए लोगों में भविष्य के दौरान फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मृत्यु दर का अनुमान लगाया जा सके।

लाखों जीवन बचाने की कुंजी है तम्बाकू मुक्त पीढ़ी

रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि इसकी मदद से पुरुषों में फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 1,842,900 मौतों में से 844,200 मौतों को रोका जा सकता है, यानी करीब 46 फीसदी जिंदगियां बचाई जा सकती है। वहीं यदि महिलाओं से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर से होने वाली कुल 1,108,500 में से 342,400 मौतों (30.9 फीसदी) को टाला जा सकता है।

इतना ही नहीं अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि 2050 तक धूम्रपान की मौजूदा दर को पांच फीसदी तक करने से पुरुषों की जीवन प्रत्याशा में एक वर्ष  का इजाफा हो सकता है। वहीं इसकी वजह से महिलाओं के जीवन के दो महीने बढ़ जाएंगे।

शोधकर्ताओं का यह भी अनुमान है कि यदि मौजूदा रुझान जारी रहते हैं तो 2050 तक पुरुषों में धूम्रपान की दर 21 फीसदी और महिलाओं में चार फीसदी तक गिर सकती है।

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) से जुड़े शोधकर्ताओं के मुताबिक धूम्रपान को रोकने के प्रयासों में तेजी लाने से जीवन के 87.6 करोड़ वर्षों को बचाया जा सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक धूम्रपान दुनिया भर में टाली जा सकने वाली मौतों का प्रमुख कारण है, जो सालाना फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 18 लाख में से दो-तिहाई से अधिक मौतों के लिए जिम्मेवार है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता जूलिया रे ब्रांडारिज ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहना है कि इससे न केवल बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई जा सकेगी, बल्कि धूम्रपान के कारण बीमार लोगों के उपचार और देखभाल के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों पर पड़ने वाले दबाव को भी काफी हद तक कम किया जा सकेगा।

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी रिपोर्ट “ग्लोबल रिपोर्ट ऑन ट्रेंड्स इन प्रीवलेंस ऑफ टोबैको यूज 2000-2030” में जानकारी दी है कि तमाम बाधाओं के बावजूद भारत सहित दुनिया भर में तम्बाकू का सेवन करने वालों की संख्या में कमी आई है। हालांकि इसके बावजूद भारत में अभी भी 25.1 करोड़ से ज्यादा लोग इसका सेवन कर रहे हैं।

इनमें से 79 फीसदी पुरुष जबकि 21 फीसदी महिलाएं शामिल हैं, यह वो लोग हैं जिनकी आयु 15 वर्ष या उससे अधिक है। मतलब कि भारत में अभी भी 19.8 करोड़ से ज्यादा पुरुष और 5.3 करोड़ महिलाएं तम्बाकू का सेवन करती हैं। ऐसे में एक तम्बाकू मुक्त पीढ़ी तैयार करना अभी भी बड़ी चुनौती है, जिसपर गंभीरता से गौर करना जरूरी है।

गौरतलब है कि 2010 में जहां 38 फीसदी भारतीय तम्बाकू का उपभोग कर रहे थे, वहीं अनुमान है कि 2025 में यह आंकड़ा 43 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 21.8 फीसदी रह जाएगा। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि तम्बाकू उपयोग में 2025 तक 30 फीसदी की गिरावट का जो लक्ष्य तय किया गया था, भारत उस दिशा में सही राह पर है।

रिपोर्ट के मुताबिक 150 देशों में, 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों के बीच, तंबाकू के उपयोग में सफलतापूर्वक कमी आ रही है। वहीं ज्यादातर देशों में धूम्रपान की दर में भी गिरावट देखने को मिली है। यह तब है कि जब तम्बाकू उद्योग सिगरेट और अन्य उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है।

हालांकि इस कमी के बावजूद स्वास्थ्य संगठन ने चेताया है कि "तम्बाकू महामारी" दुनिया के सामने खड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े सबसे बड़े खतरों में से एक है, जो अब भी हर साल 80 लाख से ज्यादा जिंदगियों को लील रही है। इनमें से 70 लाख वो हैं जो सीधे तौर पर इसका सेवन करने के कारण शिकार बन रहे हैं।

वहीं विडम्बना देखिए कि 13 लाख लोगों की मौत इसलिए हो रही है क्योंकि वो अन्य लोगों द्वारा किए जा रहे धूम्रपान के दौरान निकले धुंए के संपर्क में आते हैं। डब्ल्यूएचओ ने आगाह किया है कि आने वाले वर्षों में तंबाकू से कहीं ज्यादा मौते हो सकती हैं।