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खान-पान

आवरण कथा: नशे का नया चेहरा बने चिप्स-कुकीज, मूक महामारी का लिया रूप

पिछले कुछ दशकों में बड़ी-बड़ी खाद्य कंपनियों ने स्वाद, भूख और आनंद जैसी हमारी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का फायदा उठाकर ऐसे अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद बनाए हैं, जिनके लिए हम बेकाबू हो जाते हैं। ये उत्पाद हमारे दिमाग पर इतना गहरा असर डालते हैं कि हमें बार-बार इन्हें खाने की इच्छा होती है। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो ये हमारे दिमाग के रिवार्ड सिस्टम को प्रभावित करते हैं। इससे हमें मादक पदार्थों की ही तरह इन खाद्य पदार्थों की लत लग जाती है। यह लत मोटापा, डायबिटीज और अन्य दीर्घकालिक बीमारियों को बढ़ावा दे रही है। अब वक्त आ गया है कि सरकारें और नीति-निर्माता इस पर सख्त कदम उठाएं ताकि हम अपने खाद्य तंत्र पर दोबारा नियंत्रण हासिल कर सकें। शगुन की रिपोर्ट

Shagun

  • चिप्स और कुकीज जैसे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स अब नशे की नई लत बन गए हैं।

  • नेचर मेडिसिन के अध्ययन में पाया गया है कि ये खाद्य पदार्थ दिमाग पर नशीले पदार्थों जैसा प्रभाव डालते हैं।

  • यूपीएफ का अधिक सेवन मोटापा, अवसाद और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा है।

  • यह लत युवाओं में तेजी से बढ़ रही है और इसे नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है।

दुनिया यह लंबे समय से जानती है कि सिगरेट किस तरह से दिलो-दिमाग पर कब्जा कर लेती है। एक सिगरेट जलाओ और कश लेते ही निकोटिन का असर तुरंत शुरू हो जाता है। कुछ ही सेकंड में यह रासायनिक तत्व दिमाग पर असर डालने लगता है और एक आनंद का एहसास कराता है। कुछ लोगों को इससे बेहद खुशी महसूस होती है और कुछ अत्यधिक चौकन्ने हो जाते हैं। वहीं, कुछ लोगों को शांति या संतुष्टि का अहसास होता है। समय के साथ दिमाग इस तरह के एहसास की आदत डाल लेता है, जिससे निकोटिन पर निर्भरता बढ़ती जाती है। भले ही इससे सेहत पर खराब असर पड़ने या जोखिम के पुख्ता सबूत मौजूद हैं लेकिन लोग अक्सर इस आदत से बाहर निकलने में असफल रहते हैं।

अब सिगरेट की जगह चिप्स या कुकीज का एक पैकेट रखिए। आप उसे खोलते हैं, एक उठाते हैं और कुछ ही सेकंड में आपका हाथ फिर से उसी पैकेट में चला जाता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसा प्रिंगल्स की मशहूर टैगलाइन कहती है, “वंस यू पॉप, यू कांट स्टॉप” यानी एक बार चखा तो खुद को रोकना मुश्किल होगा। यह जानना दिलचस्प है कि यह इच्छा शायद ही कभी भूख से प्रेरित होती है।

लगातार हो रहे शोध यह दिखा रहे हैं कि दिमाग इन अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों (यूपीएफ) यानी अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की और ज्यादा मांग ठीक वैसे ही करता है, जैसे वह निकोटिन या दूसरी नशे की चीजों की लालसा करता है। 36 देशों में किए गए करीब 300 अध्ययनों ने दर्ज किया है कि प्रोसेस्ड जंक फूड नशीले पदार्थों जैसी लत पैदा करते हैं।

यह निष्कर्ष अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक समूह ने 25 जुलाई को नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में साझा किया। “नाऊ इज द टाइम टू रिकॉगनाइज एंड रिस्पांड टू एडिक्शन टू अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड्स” शीर्षक से प्रकाशित इस लेख में कहा गया है कि कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे व्यवहार को ट्रिगर कर सकते हैं जो नशीले पदार्थों की लत जैसी ही आदतों से मेल खाते हैं।

नशे पर काम करने वाले कई विज्ञानियों ने इसे स्वीकार कर लिया है और इसके पीछे ऐसे न्यूरोबायोलॉजिकल प्रमाण भी हैं, जो पारंपरिक नशे के मामलों में दिमाग के मूल तंत्रों और सर्किट की समानता दिखाते हैं। 2022 की एक मेटा-विश्लेषण रिपोर्ट बताती है कि यूपीएफ की लत का वैश्विक स्तर पर प्रसार 14 से 20 प्रतिशत के बीच है, जो शराब पीने की लत के समान है।

फिर भी, भोजन की लत को अभी तक औपचारिक रूप से किसी चिकित्सा वर्गीकरण प्रणाली में शामिल नहीं किया गया है, जिनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर्स भी शामिल है। नेचर मेडिसिन का लेख चेतावनी देता है कि यह अनदेखी सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकती है।

सच्चाई यह है कि पैक्ड स्नैक्स और रेडी मील्स आमतौर पर चीनी, नमक, परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट और संतृप्त वसा से भरपूर होते हैं। उन्हें जटिल औद्योगिक प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है ताकि उनकी शेल्फ लाइफ यानी जीवन बढ़े और स्वाद बेहतर बने लेकिन इस प्रक्रिया में वे पोषक तत्वों के मामले में फिसड्डी और कृत्रिम रसायनों के मामले में समृद्ध हो जाते हैं। अब तक पर्याप्त सबूत सामने आ चुके हैं कि कैलोरी से भरपूर लेकिन पोषण में कमजोर यह यूपीएफ कई गंभीर स्वास्थ्य परिणामों से जुड़े हैं।

नवंबर 2023 में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलाइना एट चैपल हिल के ग्लोबल फूड रिसर्च प्रोग्राम द्वारा जारी एक फैक्टशीट बताती है कि यूपीएफ का अधिक सेवन न केवल मोटापा और मधुमेह को बढ़ाता है, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में यह हृदय रोग, डिमेंशिया, अवसाद और कैंसर जैसे रोगों से भी जुड़ा हुआ है। नेचर मेडिसिन का लेख भी उन शोधों का हवाला देता है जो यूपीएफ की लत को मोटापा, अवसाद और पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से जोड़ते हैं।

यूपीएफ सस्ते हैं और हर जगह उपलब्ध हैं। यह स्थिति को और खराब बनाता है। खाद्य कंपनियों की आक्रामक मार्केटिंग के चलते यह खतरनाक खाद्य पदार्थ चाय की दुकानों से लेकर सुपरमार्केट की गलियों और स्कूल की कैंटीनों तक पहुंच चुके हैं। इन पर चेतावनी लेबल दुर्लभ हैं। ऐसे माहौल में यूपीएफ की लत एक मूक महामारी की तरह फैल रही है।

मिसाल के तौर पर हरियाणा के फरीदाबाद की 12 साल की छात्रा सुहानी ज्यादातर स्कूल के दिनों में लंच के समय कैंटीन में जाती है और 10 रुपए का “पंजाबी तड़का” नामक मसालेदार तले हुए नमकीन का पैकेट खरीदती है।

वह कहती है, “मसाला सबसे बड़ा आकर्षण है।” उसका दूसरा पसंदीदा है तले हुए कॉर्नमील से बना एक और पैक्ड स्नैक पफ कॉर्न्स जो मसालों से लबालब होता है। इन दोनों में से किसी न किसी का सेवन वह हफ्ते में दो से तीन बार जरूर करती है। घर पर भी उसका खानपान कुछ ऐसा ही है। वह हफ्ते में दो बार बर्गर खाती है। हर 15 दिन पर अतिरिक्त मसाले वाला मैगी नूडल्स उसके खान-पान का अहम हिस्सा हैं। उसे आम फ्लेवर वाली आइसक्रीम भी बहुत पसंद है और कभी-कभी वह दिन में चार स्कूप तक खा जाती है। खास बात यह है कि उसके आहार में फल और सब्जियां लगभग गायब हैं। उसके पिता भागीरथ कहते हैं कि परिवार ने घर में जंक फूड की उपलब्धता कम करने की कोशिश की, लेकिन सुहानी स्वस्थ विकल्पों को ठुकरा देती है और कहती है वे “फीके” हैं।

कक्षा की चर्चाओं से उसे पता है कि जंक फूड सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। वह कहती है, “मैं सोचती हूं कि इसे छोड़ दूं लेकिन अगले दिन फिर से खाने की तलब लग जाती है।” शायद कोई कहे कि यह तो एक अस्थायी अवस्था है लेकिन मिशिगन विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर ऐशली गियरहार्ट चेतावनी देती हैं, “लोगों ने निकोटिन के बारे में भी दशकों तक यही कहा था।”

गियरहार्ट नेचर मेडिसिन लेख की सह-लेखिका भी हैं। वह डाउन टू अर्थ से कहती हैं कि अन्य नशे की तरह भोजन भी तलब, नियंत्रण खोने और लगातार सेवन की प्रवृत्ति पैदा कर सकता है। गियरहार्ट मिशिगन विश्वविद्यालय के फूड एंड एडीक्शन साइंस एंड ट्रीटमेंट लैबरोट्री का संचालन करती हैं और उनका शोध बताता है कि वयस्क भी यूपीएफ की लत के शिकार हो सकते हैं।

2023 में स्विट्जरलैंड स्थित बीमा कंपनी स्विस री और ब्रिटिश मेडिकल जर्नल द्वारा आयोजित मोटापा और मधुमेह सम्मेलन में गियरहार्ट ने एक वयस्क स्वयंसेवक का उदाहरण दिया जो डोनट्स (यूपीएफ श्रेणी में आने वाला उत्पाद) का शौकीन था। टाइप 2 मधुमेह होने और यह जानते हुए भी कि एक डोनट भी नुकसानदेह है, वह एक बार में दर्जन भर खा जाता था। वह खुद को रोक नहीं पाता था।

गियरहार्ट कहती हैं, लोग सोचते हैं यह सिर्फ इच्छाशक्ति की बात है लेकिन जिस तरह से इन खाद्य पदार्थों को तैयार किया जाता है, किसी का भी नियंत्रण खोना लगभग तय है। वह आगे कहती हैं, “अब साक्ष्य बहुत मजबूत हैं। कुछ खाद्य पदार्थ दिमाग पर वैसा ही कब्जा करते हैं जैसा अन्य नशे करते हैं। इसे नजरअंदाज करना समाधान में देरी करता है।”

यह रिपोर्ट मासिक पत्रिका डाउन टू अर्थ, हिंदी के नवंबर 2025 अंक की आवरण कथा का एक हिस्सा है। पत्रिका सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें