वर्तमान में जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग हमारी धरती पर बहुत सारे नकरात्मक प्रभाव डाल रहा है। जीवाश्म ईंधन, जैसे कोयला, तेल (पेट्रोलियम) और प्राकृतिक गैस, जब जलाए जाते हैं, तो ये वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें छोड़ते हैं, जो जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण बनती हैं।
मानव गतिविधियों के कारण जैसे कि अधिक पैमाने पर खनन, उद्योगों का विस्तार, और जंगलों की कटाई, पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति और प्रदूषकों को अवशोषित करने की क्षमता में भारी गिरावट आ रही है। इसके कारण धरती के पारिस्थितिकी तंत्र पर नकरात्मक असर हो रहा है, जिससे पूरी पृथ्वी का पर्यावरण अस्थिर हो रहा है।
अब, एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि मध्य एशिया ने अपनी पर्यावरणीय सुरक्षा सीमाएं पार कर ली हैं, खासकर भूमि के उपयोग और जैवमंडल (पारिस्थितिकी तंत्र) की अस्थिरता के मामले में। इसका मतलब है कि इस क्षेत्र का पर्यावरण अब ऐसी स्थिति में है, जहां उसे सही तरीके से नियंत्रित किया जाना जरूरी है, ताकि यह और अधिक नुकसान से बच सके।
जैवमंडल या पारिस्थितिकी तंत्र वह वातावरण है, जहां पृथ्वी पर जीवन पनप सकता है। यह पूरे ग्रह के पारिस्थितिक तंत्रों से मिलकर बना है। पारिस्थितिकी तंत्र का अस्थिर होना यानी जीवन के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों की कमी और प्रदूषण का बढ़ना।
चीनी विज्ञान अकादमी के झिंजियांग पारिस्थितिकी और भूगोल संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में कजाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देशों में पर्यावरणीय अस्थिरता का विश्लेषण किया गया। ये इलाके विशेष रूप से उन क्षेत्रों के रूप में पहचाने गए हैं, जहां पर्यावरण प्रबंधन की सख्त जरूरत है। अगर इन देशों में पर्यावरणीय स्थिति को ठीक नहीं किया गया, तो इससे बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है।
दरअसल, दुनिया के सबसे बड़े शुष्क क्षेत्रों में से एक, मध्य एशिया बढ़ते पारिस्थितिक तनाव का सामना कर रहा है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण पानी और ऊर्जा की मांग बढ़ रही है, जिससे यह क्षेत्र अपनी पूर्ण पर्यावरणीय स्थिरता (एईएस) के बहुत करीब या उससे भी आगे निकल गया है।
इन दबावों को मापने के लिए, शोधकर्ताओं ने 2000 से 2020 की अवधि के लिए पर्यावरणीय पदचिह्नों को डाउनस्केल्ड प्लैनेटरी सीमाओं (पीवीएस) के साथ जोड़ने वाला एक ढांचा विकसित किया। उन्होंने छह पीवी के संकेतकों का मूल्यांकन किया जिसमें जल पदचिह्न, कार्बन पदचिह्न, नाइट्रोजन पदचिह्न, फॉस्फोरस पदचिह्न और भूमि पदचिह्न शामिल हैं।
अर्थ फ्यूचर में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि इस क्षेत्र का भूमि पदचिह्न अपनी संबंधित सीमाओं को गंभीर रूप से पार कर गया है। उन्होंने इसे चरम निरपेक्ष अस्थिरता की स्थिति के रूप में शामिल किया है, जो स्पष्ट संकेत है कि भूमि और पारिस्थितिक उपभोग के वर्तमान पैटर्न खतरनाक रूप से अस्थिर हैं।
अध्ययन में अध्ययनकर्ता के हवाले से कहा गया है कि मध्य एशिया का पर्यावरणीय दबाव मुख्य रूप से उसके घरेलू उपभोग से उत्पन्न होता है। यह सिंचाई में सुधार और वैज्ञानिक तौर पर भूमि प्रबंधन को अपनाने जैसी तय नीतियों की तत्काल जरूरत को सामने लाता है, ताकि सुरक्षित इलाकों में विकास किया जा सके।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से सुझाव दिया गया है कि संसाधनों के सही से उपयोग को बढ़ाना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना प्रभावी रणनीतियों में शामिल हैं।
इसके अलावा उन्नत ड्रिप इरीगेशन जैसी तकनीकों को अपनाना और वैज्ञानिक तौर पर जारी चराई नीतियों को लागू करना पर्यावरण क्षरण को काफी हद तक कम कर सकता है। यह अध्ययन मध्य एशिया को अधिक लचीले और टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ने के लिए वैज्ञानिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।