पर्यावरण

विश्व ओजोन दिवस: भरने लगी झीनी - झीनी ओजोन की चदरिया!

ओजोन परत के लिए बेहद हानिकारक हेलोकार्बन ऐसे रसायन हैं जिनमें एक या अधिक कार्बन परमाणु एक या अधिक हैलोजन परमाणुओं से जुड़े होते हैं

Dr. Subhash Chandra Yadav, Dr. Babita

बीते 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस को इस वर्ष की थीम "मांट्रियल प्रोटोकॉल: जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाना" के साथ मनाया गया। इस ओजोन दिवस पर अब तक की उपलब्धियों के जश्न के साथ भविष्य में गहरी और तेज कार्रवाई की आशा प्रकट की गई।

पृथ्वी की सतह से लगभग 15 से 50 किलोमीटर की ऊंचाई वाली वायुमंडलीय परत समताप मंडल (स्ट्रैटोस्फीयर) कहलाती है। इसी समताप मंडल में ओजोन गैस का लगभग 95% हिस्सा पाया जाता है। ओजोन की यही परत पृथ्वी के प्राणियों व वनस्पतियों को सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों के प्रभावों से बचाती है।

विडंबना यह है कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) तथा इससे मिलते- जुलते रसायन ओजोन परत में हुए विनाश के प्रमुख कारण हैं। ओजोन क्षय के लिए क्लोरीन और ब्रोमीन प्रदान करने वाले मानव निर्मित रसायनों में मुख्यतः मिथाइल ब्रोमाइड, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (एचसीएफसी) हैं। ओजोन परत के लिए बेहद हानिकारक हेलोकार्बन ऐसे रसायन हैं जिनमें एक या अधिक कार्बन परमाणु एक या अधिक हैलोजन परमाणुओं (फ्लोरिन, क्लोरीन, ब्रोमीन व आयोडीन) से जुड़े होते हैं।

क्लोरीन युक्त हेलोकार्बन की तुलना में ब्रोमीन युक्त हेलोकार्बन में ओजोन क्षयकारी क्षमता बहुत अधिक होती है।  यद्यपि ये पदार्थ पृथ्वी की सतह पर उत्सर्जित होते हैं, परंतु 2 से 5 वर्ष की लंबी अवधि में एक प्रक्रिया के अंतर्गत यें पदार्थ समताप मंडल में पहुंच जाते हैं।

इन रसायनों का उपयोग रेफ्रिजरेटरों व एयर कंडीशनरों में शीतलन के साथ - साथ प्लास्टिक को फुलाने, स्प्रे करने के यंत्रों में प्रोपोलेंट व इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट की सफाई जैसे विविध कार्यों में होता हैं। 

ओजोन बनती है ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से। सूर्य के पैराबैंगनी विकिरण के कारण समताप मंडल में ओजोन ऑक्सीजन के अणु यानी O2 और ऑक्सीजन के एक परमाणु यानी O में टूटती है। समताप मंडल में सामान्य स्थिति में तो यह होता है कि ऑक्सीजन का एक अणु ऑक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर पुनः ओजोन यानी O3 बनाता है। इस प्रकार ओजोन के बनने और टूटने की प्रक्रिया चलती रहती है।

लेकिन सीएफसी जैसे रसायनों के समताप मंडल में पहुंचने पर यह चक्कर गड़बड़ा जाता है। होता यह है कि पराबैंगनी विकिरण से सीएफसी अपघटित हो जाते हैं और इसे क्लोरीन अलग हो जाती है। यह क्लोरीन अब ओजोन से अभिक्रिया करके ऑक्सीजन और क्लोरीन मोनोऑक्साइड बनाती है।

अब एक दूसरी अभिक्रिया में क्लोरीन मोनोऑक्साइड ऑक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर क्लोरीन और ऑक्सीजन बनाता है। इस चक्र में ओजोन का एक अणु तो नष्ट हो गया, ऑक्सीजन के दो अणु और क्लोरीन के एक अणु बन गया। अब क्लोरीन पुनः ओजोन को तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है। इस तरह क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के एक लाख अणुओं को तोड़ने का काम कर सकता है। यहीं से प्राकृतिक रुप से बनी समताप मंडलीय ओजोन के नष्ट होने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

सूर्य से आने वाला पराबैंगनी विकिरण तीन प्रकार का होता है - ए,  बी और सी। इनमे पृथ्वी सतह पर पहुंचने वाला पराबैंगनी- ए विकिरण कोई ज्यादा हानिकारक नहीं है।

पराबैंगनी -  सी विकिरण सबसे हानिकारक है लेकिन खुशकिस्मती है कि इसे ओजोन परत द्वारा पूर्णतया सोख लिया जाता है। इसी तरह सामान्य स्थिति में लगभग 95% पराबैंगनी -  बी विकिरण को भी ओजोन परत द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। पैराबैंगनी -  बी विकिरण पृथ्वी की जैविक प्रणालियों (मानव व वनस्पति) को क्षतिग्रस्त करता है।

इस विकिरण से मनुष्य को त्वचा का कैंसर और मोतियाबिंद जैसी बीमारियां हो सकती है। इससे जीवों की रोगों से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता न्यून हो जाती है। यह विकिरण पेड़ - पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को धीमा कर उनकी वृद्धि रोक देता है।

वर्ष 1985 में ब्रिटेन के अंटार्कटिका सर्वे के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में विशाल छिद्र होने की रिपोर्ट सार्वजनिक की। इसके बाद ओजोन परत को बचाने के प्रयास शुरू हुए। वायुमंडल में ओजोन की मात्रा को डॉब्सन यूनिट में मापा जाता है। सामान्य अवस्था में समतापमंडल में ओजोन की सांद्रता 300 डॉब्सन होती है। अगर अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में होने वाले छिद्र की बात करें तो वह ऐसी अवस्था है जिसमें समताप मंडल में ओजोन की सांद्रता 100 डॉब्सन या इससे कम हो जाती है।

वर्ष 1987 में कनाडा के मांट्रियल शहर में ओजोन परत को बचाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि हुई जिसे अब मांट्रियल प्रोटोकॉल कहते है। यह विश्व की सबसे सफल संधियों में मानी जाती है। 16 सितंबर, 1987 को स्वीकृत मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के उपलक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1994 में 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस घोषित किया।

मांट्रियल प्रोटोकॉल का मुख्य उद्देश्य ओजोन परत को नष्ट करने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसे ओजोन डिप्लेटिंग सबस्टेंस के वैश्विक उत्पादन और इस्तेमाल को नियंत्रित व चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर ओजोन परत की रक्षा करना है। विकसित देशों में वर्ष 2000 से और भारत जैसे विकासशील देश में वर्ष 2010 से इन रसायनों का उत्पादन और इस्तेमाल बंद हो गया।

क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) की जगह हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (एचसीएफसी) जैसे रसायनों का इस्तेमाल होने लगा जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने के मामले में पूर्णतया सुरक्षित तो नहीं है पर कम खतरनाक है।

इसलिए, मांट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों ने 15 अक्टूबर 2016 को किगाली, रवांडा की बैठक में हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से 2040 तक समाप्त करना प्रस्तावित किया।

वैज्ञानिकों के अनुसार मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के फलस्वरूप अंटार्कटिका का ओजोन छिद्र भर रहा है तथा ऐसे अनुमान है कि 2040 तक ओजोन परत अपने 1980 के स्तर पर पुनः आ जाएगी।

रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर व अन्य कूलिंग उपकरणों का यथोचित इस्तेमाल तथा वैज्ञानिक व तकनीकी ज्ञान से हेलोकार्बन मुक्त ओजोन फ्रेंडली उत्पाद विकसित कर ओजोन परत की रक्षा में अपना योगदान देना होगा।

ऊपर ओजोन का सुरक्षा कवच है तो नीचे यहां धरती पर जीवन है। इसलिए, जीवन को बचाना है तो ओजोन परत को बचाना है।