एक नए अध्ययन के अनुसार, इंसानों की हलचल अब धरती पर मौजूद सभी जंगली जीवों की कुल हलचल से 40 गुणा अधिक हो गई है।
औद्योगिक क्रांति के बाद से इंसानी गतिविधियों में 4,000 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि जंगली जीवों की हलचल में 70 फीसदी की कमी आई है।
यह अध्ययन प्रकृति पर बढ़ते इंसानी दबाव को दर्शाता है।
इंसान रोजाना औसतन 30 किलोमीटर का सफर करते हैं, जो जंगलों में रहने वाले सभी स्तनधारी जीवों से आठ गुणा अधिक है।
1850 के बाद से धरती पर जीवों का संतुलन तेजी से बदल गया है। एक तरह इस दौरान जहां जंगलों में रहने वाले स्तनधारी जीवों का भार 70 फीसदी घटा है। वहीं इंसानी वजन 700 फीसदी बढ़ गया है।
इंसानों के साथ ही मवेशियों की आबादी भी बढ़ी है। अनुमान है कि 170 वर्षों में पशुधन का वजन 400 फीसदी बढ़ गया है।
पृथ्वी पर जीवन हमेशा गतिमान रहा है, चाहे इंसान हो या दूसरे जीव हमेशा एक जगह से दूसरी जगह आवागमन करते रहते हैं। उदाहरण के लिए भेड़िए हर साल मंगोलिया के मैदानों में 7,000 किलोमीटर तक विचरण करते हैं, इसी तरह आर्कटिक में टर्न पक्षी अपने सालाना प्रवास के दौरान ध्रुव के एक छोर से दूसरे छोर तक लम्बी यात्रा करते हैं।
हालांकि नए अध्ययन में स्पष्ट हो गया है कि धरती पर अब सबसे ज्यादा चलने-फिरने और हलचल करने वाला जीव इंसान है।
वाइजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए इस नए अध्ययन से पता चला है कि इंसानों की कुल आवाजाही अब धरती पर मौजूद सभी जंगली जानवरों, पक्षियों, स्तनधारियों और कीटों की कुल हलचल से करीब 40 गुणा ज्यादा हो चुकी है।
यानी कहीं न कहीं इंसानी कदमों के साथ गाड़ियों, जहाजों की हलचल से धरती थरथरा रही है, दूसरी तरफ जंगली जीवों की हरकतें थमती जा रही हैं।
अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित इस अध्ययन ने खुलासा किया है कि औद्योगिक क्रांति के बाद यानी पिछले करीब 170 सालों में इंसानों की हलचल 4,000 फीसदी बढ़ गई है, जबकि इसी दौरान समुद्री जीवों की हलचल करीब 60 फीसदी तक घट गई है।
इंसान बनाम जानवर, किसकी कितनी हलचल
जीवों की गतिशीलता जीवन का अहम हिस्सा है। जीव भोजन खोजने, खतरे से बचने और पारिस्थितिक तंत्रों को जोड़ने के लिए यात्राएं करते हैं। लेकिन अब यह स्वाभाविक गति धीमी पड़ रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह गिरावट बताती है कि प्रकृति पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
उदाहरण के लिए, पक्षी बहुत लंबी दूरी तय करते हैं, लेकिन उनका कुल वजन बहुत कम होता है। इसके विपरीत, गहरे समुद्र में रहने वाली मछलियां भले ही कम दूरी तय करें, लेकिन उनका कुल वजन सभी पक्षियों से करीब हजार गुणा ज्यादा है।
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इंसानों और जानवरों की तुलना के लिए एक नया पैमाना बनाया है, जिसे ‘बायोमास मूवमेंट इंडेक्स’ नाम दिया है। यह सूचकांक किसी प्रजाति के कुल वजन को उस दूरी से गुणा करता है जो वह सालभर में तय करती है।
हर दिन औसतन 30 किलोमीटर चलता है एक इंसान
इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं वे बेहद चौंकाने वाले हैं। इस सूचकांक से पता चला कि इंसान रोजाना औसतन 30 किलोमीटर का सफर करते हैं, जो जंगलों में रहने वाले सभी स्तनधारी जीवों से आठ गुणा अधिक है। वहीं यदि इनमें पक्षियों और कीटों को भी जोड़ दें तो यह छह गुणा अधिक है।
अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि इंसानों की 65 फीसदी हलचल कार या मोटरसाइकिल से, 10 फीसदी हवाई जहाज से, पांच फीसदी ट्रेन से, और 20 फीसदी पैदल या साइकिल से होती है।
दिलचस्प बात यह है कि इंसानों के सिर्फ पैदल चलने की कुल हलचल ही सभी जंगली जानवरों, पक्षियों और कीटों की संयुक्त हलचल से छह गुणा अधिक है। औसतन, हर इंसान रोजाना करीब 30 किलोमीटर चलता-फिरता है, जो जंगलों में रहने वाले पक्षियों से थोड़ा अधिक है। इसके मुकाबले, जंगली स्थलीय जानवर (चमगादड़ों को छोड़कर) रोज महज चार किलोमीटर तक चलते हैं।
देखा जाए तो दुनिया में 130 करोड़ कारों की हलचल धरती और समुद्र के सभी जीवों की कुल हलचल के बराबर है।
हवाई सफर के मामले में भी इंसान आगे हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि हवाई जहाजों से होने वाली इंसानी हलचल सभी उड़ने वाले जीवों से 10 गुणा अधिक है। विज्ञानियों ने यह भी जानकारी दी है कि एक अकेली एयरलाइन उतनी ऊर्जा खर्च करती है जितनी सभी जंगली पक्षी मिलकर अपनी उड़ान पर खर्च करते हैं।
आपको यह जानकार हैरानी होगी कि दो गीगावॉट का पावर प्लांट उतनी ही ऊर्जा खर्च करता है, जितना जंगलों में रहने वाली सभी स्तनधारी जीव करते हैं। इसी तरह खाद्य परिवहन से जुड़ी हलचल इंसानों की कुल हलचल से दो गुणा है। वहीं कंटेनर जहाजों की ऊर्जा खपत करीब-करीब उतनी ही है जितनी पूरी मानवता चलने में करती है।
देखा जाए तो इंसान कुशलता से पैदल चलता है, लेकिन उसकी मशीनें भारी मात्रा में ऊर्जा की खपत कर रही हैं। कारों, ट्रेनों और हवाई जहाजों के साथ यह ऊर्जा खर्च अरबों गुना बढ़ जाता है और इसी से धरती का संतुलन बिगड़ रहा है।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर रॉन मिलो के मुताबिक, “हम अक्सर प्रकृति की ताकत देखकर हैरान हो जाते हैं और खुद को छोटा महसूस करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अफ्रीका में दिखने वाले पशुओं का विशाल प्रवास, जो धरती के सबसे बड़े प्राकृतिक प्रवास माना जाता है, वो भी उस इंसानी हलचल के सामने बहुत छोटा हैं, जो सिर्फ एक वर्ल्ड कप के दौरान दुनिया भर के लोगों के जुटने से होती है।
उनका यह भी कहना है कि, “जानवर अपनी ऊर्जा का बड़ा हिस्सा चलने-फिरने में खर्च करते हैं। शायद यह समझना मुश्किल हो कि इंसान प्रकृति पर कितना असर डालता है, लेकिन ‘बायोमास मूवमेंट’ यह दिखाता है कि धरती पर असली ताकत का संतुलन अब इंसानों के पक्ष में है।"
अध्ययन के मुताबिक पृथ्वी पर ताकत का यह संतुलन तेजी से बदल रहा है। इंसान लगातार रहा है और पहले से ज्यादा विकसित हो रहा है, जबकि प्राकृतिक जीवन लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है। ज्यादातर बायोमास मूवमेंट महासागरों में होता है, लेकिन वहां तक भी इंसानी गतिविधियों का गहरा असर पहुंच चुका है।
देखा जाए अध्ययन एक बार फिर इस बात को स्पष्ट करता है कि यह मानव युग (एंथ्रोपोसीन) है, जो धरती पर मानव के दबदबे का सबसे बड़ा संकेत है।
दो सदियों में हुआ बड़ा उलटफेर
जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में इस बात की पुष्टि की है कि 1850 के बाद से धरती पर जीवों का संतुलन तेजी से बदल गया है। एक तरह इस दौरान जहां जंगलों में रहने वाले स्तनधारी जीवों का भार 70 फीसदी घटा है। वहीं इंसानी वजन 700 फीसदी बढ़ गया है।
इंसानों के साथ ही मवेशियों की आबादी भी बढ़ी है। अनुमान है कि इन 170 वर्षों में पशुधन का वजन 400 फीसदी बढ़ गया है। मतलब की कहीं न कहीं अब इंसान और उसके पालतू जानवर धरती के बायोमास पर काबिज होते जा रहे हैं। वहीं, जंगली जानवर धीरे-धीरे किनारे होते जा रहे हैं।
सोचकर देखिए! 1850 में सिर्फ अफ्रीकी हाथियों का कुल वजन आज धरती पर मौजूद लगभग 5,000 तरह के जंगली जानवरों (जैसे शेर, हिरन, बंदर आदि) के कुल वजन के बराबर था। आज इंसान और उसके मवेशियों का कुल वजन करीब 110 करोड़ टन है, जबकि सभी जंगली स्तनधारी जीवों का कुल भार घटकर महज 6 करोड़ टन रह गया है, जो कभी करीब 20 करोड़ टन था।
अध्ययन के मुताबिक 1850 में समुद्रों में रहने वाले स्तनधारी जीवों (जैसे व्हेल, डॉल्फिन) का कुल वजन 13 करोड़ टन था, जो अब घटकर महज 4 करोड़ टन रह गया है। हालांकि व्हेल का शिकार बंद हुए दशकों बीत गए हैं, लेकिन इनकी आबादी अब भी पूरी तरह नहीं संभल पाई है।
प्रकृति की धीमी पड़ती चाल
अध्ययन के मुताबिक जानवर सिर्फ चलते नहीं वे अपने साथ बीज, पोषक तत्व और जीवन की ऊर्जा भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते हैं। जब यह आवाजाही घटती है, तो मिट्टी, नदियों और पारिस्थितिकी तंत्रों की सेहत बिगड़ने लगती है।
कहीं न कहीं इंसानी गतिविधियों ने इस स्वाभाविक प्रवाह को तोड़ दिया है। दुनिया भर में पक्षियों, स्तनधारियों, मछलियों, सरीसृपों और कीटों की हलचल कम हो रही है, जिससे उनकी आबादी और सीमाएं सिकुड़ रही हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह अध्ययन दर्शाते हैं कि इंसान ने धरती की प्राकृतिक चाल को पीछे छोड़ दिया है। जहां कभी जानवरों की प्रवास यात्राएं धरती के पारिस्थितिक तंत्र को जोड़ती थीं, अब इंसानी गतिविधियां उसी ऊर्जा, उसी दूरी और उससे कहीं ज्यादा संसाधनों का उपभोग कर रही हैं। कहीं न कहीं धरती अब इंसानी कदमों से गूंज रही है, और प्रकृति की चाल धीमी पड़ चुकी है।
यह अध्ययन केवल आंकड़े नहीं, बल्कि एक चेतावनी है, अगर इंसान अपनी बढ़ती रफ्तार और ऊर्जा की भूख पर लगाम नहीं लगाएगा, तो धरती की यह जीवन-लय एक दिन पूरी तरह टूट सकती है।