2024 में दुनिया भर में रिकॉर्ड 740 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई, जो अब तक की सबसे बड़ी वार्षिक वृद्धि है। हालांकि, पेरिस स्थित थिंक टैंक आरईएन21 की रिपोर्ट के अनुसार यह रिकॉर्ड प्रगति भी अक्षय ऊर्जा के लिए निर्धारित वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए काफी नहीं।
गौरतलब है कि कॉप28 जलवायु सम्मेलन में 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का वैश्विक लक्ष्य रखा गया। इसका मकसद सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखना है। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया इस रास्ते पर नहीं चल रही और अब 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य भी खतरे में दिख रहा है।
यह जानकारी उनकी नवीनतम रिपोर्ट ‘रिन्यूएबल्स 2025 ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट’ में सामने आई है। रिपोर्ट से पता चला है कि जिस रफ्तार से हम इस दिशा में बढ़ रहे हैं, उसके चलते अक्षय ऊर्जा में 6.2 टेरावाट की कमी रह जाएगी।
यह कमी कितनी बड़ी है इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि अब तक जितनी भी अक्षय ऊर्जा बनाई गई है, यह उससे भी अधिक है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि अक्षय ऊर्जा के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बावजूद प्रगति धीमी पड़ गई है। इसके पीछे अस्पष्ट नीतियां, बढ़ते व्यापारिक प्रतिबंध और वैश्विक ऊर्जा मांग में बढ़ोतरी के बीच बाजार की अस्थिरता जिम्मेदार हैं।
देखा जाए तो पूरी ऊर्जा व्यवस्था में जिस सुधार और जरूरी बदलाव की जरूरत है, उसकी गति धीमी पड़ गई है। यह बेहद चिंता का विषय है क्योंकि इस बदलाव के बिना जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना मुमकिन नहीं है।
अकेले सौर ऊर्जा ने संभाला है मोर्चा
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सौर ऊर्जा ही एक मात्र तकनीक है जो लक्ष्यों के अनुरूप बढ़ रही है। 2024 में अक्षय ऊर्जा क्षमता में हुई बढ़ोतरी का तीन-चौथाई से अधिक हिस्सा (81 फीसदी) सोलर पैनल से आया, जो इनकी बढ़ती मांग और घटती लागत को दर्शाता है।
इस दौरान विकासशील देशों में छतों पर लगे सोलर पैनलों में 22 फीसदी का इजाफा हुआ है, जो ऊर्जा के विकेंद्रीकरण की ओर बढ़ते कदम को दर्शाता है।
2024 में देखें तो ऊर्जा की मांग में 2.2 फीसदी का उछाल आया है। खासकर तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं और चीन में मांग तेजी से बढ़ रही है। साथ ही 2024 में बिजली की खपत 4.3 फीसदी बढ़ी है, जिसका बड़ा कारण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कूलिंग और ट्रांसपोर्ट में ऊर्जा की बढ़ती मांग है। इससे जीवाश्म ईंधन का उपयोग भी बढ़ा है और कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन 0.8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
वादों से पीछे हटते देश
2024 और 2025 की शुरुआत में कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अपने जलवायु और साफ ऊर्जा को लेकर किए वादों से पीछे हटने लगे हैं।
उदाहरण के लिए जहां अमेरिका ने अपने आप को पेरिस समझौते से अलग कर लिया। वहीं न्यूजीलैंड ने समुद्र में तेल और गैस को खोजने पर लगी रोक हटा ली है। इसी तरह ब्रिटेन ने 2035 तक नए गैस बॉयलर पर रोक लगाने की योजना को टाल दिया है। केवल 13 देशों ने ही समय पर 2025 से 2035 के लिए अपने नए जलवायु लक्ष्य साझा किए हैं।
यह दर्शाता है कि राजनीतिक बदलाव, आर्थिक दबाव और जल्दबाजी में लिए फैसलों की वजह से दुनिया की पर्यावरण और जलवायु से जुड़ी महत्वाकांक्षाएं कमजोर पड़ रही हैं।
चिंता की बात है कि अक्षय ऊर्जा और उससे जुड़ी तकनीकों पर व्यापार प्रतिबंधों की जो संख्या 2015 में सिर्फ नौ थी, वो 2024 तक बढ़कर 212 हो गई। इनमें 51 सौर ऊर्जा, 32 पवन ऊर्जा और 51 बैटरियों से संबंधित हैं। ये प्रतिबंध घरेलू उद्योगों को मजबूत करने के लिए बनाए गए, लेकिन इनके कारण सप्लाई में असुरक्षा बढ़ रही है और कई परियोजनाओं की शुरुआत में देरी हो रही है।
इसी तरह तेल कंपनियां और बैंक भी अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हट रहे हैं और ऊर्जा बदलाव में निवेश रोक रहे हैं, जिससे इस बदलाव के लिए दिए गए स्वैच्छिक योगदानों पर भरोसा डगमगा रहा है।
आरईएन21 की कार्यकारी निदेशक राना अदीब का कहना है, “हम रिकॉर्ड स्तर पर अक्षय ऊर्जा स्थापित कर रहे हैं, लेकिन ऐसी व्यवस्था नहीं बना रहे, जो पूरी अर्थव्यवस्था को बदल सके। अगर स्पष्ट नीतियां, समन्वित योजना और मजबूत ग्रिड व स्टोरेज जैसी बुनियादी संरचनाएं नहीं होंगी, तो यह विकास स्थाई नहीं हो पाएगा।“
हालांकि 2024 में कॉर्पोरेट पावर परचेज एग्रीमेंट्स 69 गीगावाट तक पहुंच गया, जो 2023 के मुकाबले 35 फीसदी अधिक है। इस दौरान खासकर टेक्नोलॉजी और उद्योग क्षेत्र ने अक्षय ऊर्जा की खरीद पर जोर दिया। यह दर्शाता है कि अक्षय ऊर्जा एक मजबूत आर्थिक विकल्प बनती जा रही है।
पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में छतों पर सोलर पैनल लगाने की मांग बढ़ रही है। साथ ही दुनियाभर में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। 2024 में हर 5 कारों में से एक कार इलेक्ट्रिक थी।
जरूरी है जीवाश्म ईंधन से दूरी
वहीं यूरोप के कुछ हिस्सों में सब्सिडी कम होने से इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री धीमी पड़ गई, और कई बाजारों में पवन ऊर्जा और हीट पंप की बढ़ोतरी भी थम सी गई है।
साल 2024 में अक्षय ऊर्जा पर किया जा रहा निवेश 728 अरब डॉलर तक पहुंच गया, लेकिन इसका ज्यादातर हिस्सा कुछ बड़े बाजारों जैसे चीन, यूरोप और अमेरिका में ही केंद्रित था। वहीं कमजोर देशों में पूंजी लागत दोगुनी होने के कारण उनके लिए अक्षय ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं को बढ़ाना मुश्किल हो रहा है।
अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में जो निवेश हो रहा है, वह लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं है। लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए हर साल अक्षय ऊर्जा में 1.5 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता है। लेकिन अभी के समय में, इस निवेश में करीब 772 अरब डॉलर की कमी है।
ऐसे में संगठन ने सरकार, निवेशकों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अपील की है कि वे केवल आंकड़ों पर नहीं, पूरी ऊर्जा प्रणाली में सुधार पर ध्यान दें। इसके तहत दीर्घकालिक योजनाएं बनाना, ग्रिड और स्टोरेज में निवेश करना शामिल है। साथ ही रिपोर्ट में ऊर्जा खपत में कटौती और वित्तीय बाधाओं को दूर करने की भी बात कही गई है। सबसे जरूरी चीज बड़े बदलाव के लिए जीवाश्म ईंधनों से तेजी से दूरी बनाना अब अनिवार्य हो चुका है।