हर साल 15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस मनाया जाता है। यह दिन युवाओं को उन कौशलों से सशक्त बनाने के महत्व पर प्रकाश डालता है जिनकी उन्हें लगातार बदलती दुनिया में आगे बढ़ने के लिए जरूरत है। साल 2014 में शुरुआत के बाद से, संयुक्त राष्ट्र समर्थित यह पहल रोजगार, उद्यमिता और व्यक्तिगत विकास के बारे में बातचीत को आगे बढ़ा रही है।
साल 2025 की थीम 'कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल कौशल के माध्यम से युवा सशक्तिकरण' के साथ, अगली पीढ़ी को तकनीक और नवाचार वाले भविष्य के लिए तैयार करने पर आधारित है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा 11 नवंबर, 2014 को श्रीलंका द्वारा प्रस्तुत तथा कई देशों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव के माध्यम से 15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस घोषित किया गया। पहला उत्सव 15 जुलाई, 2015 को सतत विकास के 2030 एजेंडा के शुभारंभ के साथ मनाया गया, जो सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और रोजगार पर जोर देता है।
यह पहल इस मान्यता से प्रेरित थी कि युवा बेरोजगारी और अल्प-रोजगार दुनिया भर की चुनौतियां हैं। यह विशेष रूप से विकासशील देशों में है जहां शिक्षा और प्रशिक्षण की पहुंच सीमित है।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के द्वारा कहा गया है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीक और व्यावसायिक प्रशिक्षण में तेजी से बदलाव ला रहा है।
बुद्धिमान शिक्षण प्रणालियों के माध्यम से सीखने को व्यक्तिगत बनाकर, आभासी वास्तविकता (वीआर) का उपयोग करके गहन प्रशिक्षण को बढ़ावा देकर, प्रमाणन और करियर मार्गदर्शन को सुव्यवस्थित करके, पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण करके तथा प्रशिक्षण को श्रम बाजार की जरूरतों के अनुरूप बनाकर। हालांकि इन सुधारों के साथ, डिजिटल विभाजन भी बढ़ेगा, खासकर हाशिए पर रहने वाले युवाओं के लिए।
यह विश्वव्यापी दिवस युवाओं की क्षमता को सामने लाने के लिए कार्रवाई का आह्वान है, जो दुनिया की जनसंख्या का एक अहम हिस्सा हैं। भारत जैसे देशों में, जहां 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है, युवा आर्थिक और सामाजिक प्रगति की प्रेरक शक्ति हैं।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, श्रम बाजार में सफल होने के लिए पर्याप्त कौशल की कमी के कारण लगभग 45 करोड़ युवा (10 में से 7) आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं। 86 फीसदी छात्र एआई-सक्षम कार्यस्थल के लिए अपने आपको पर्याप्त रूप से तैयार महसूस नहीं करते हैं।
2022 में 40 फीसदी से अधिक युवा रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण (एनईईटी) में नहीं थे। जहां 40.3 फीसदी युवा पुरुषों के रोजगार में होने का अनुमान था, वहीं केवल 27.4 फीसदी युवतियों को ही रोजगार के अवसर हासिल हुए।
कम आय वाले देशों में 90 फीसदी किशोरियों और युवतियों के पास इंटरनेट तथा इससे संबंधित उपकरणों की कमी है, यानी वे आज भी ऑफलाइन हैं।
दुनिया के सबसे अमीर देशों में भी, पंद्रह साल की उम्र के दस में से केवल एक बच्चा ही सप्ताह में एक घंटे से अधिक सीखने के लिए डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करता है।
दुनिया भर में केवल 16 फीसदी देशों ने शिक्षा में साइबरबुलिंग से निपटने के लिए कानून अपनाए हैं, जिनमें से 38 फीसदी कानून कोविड-19 महामारी के बाद से लागू किए गए हैं।