प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
विकास

मुआवजा घोटाला: सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण पर कसा शिकंजा

एसआईटी रिपोर्ट में गंभीर खामियों का खुलासा, पर्यावरण आकलन और जनता की भागीदारी को प्राथमिकता देने का आदेश

Susan Chacko, Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी की कार्यशैली में गंभीर खामियों को उजागर करने वाली एसआईटी रिपोर्ट के आधार पर नोएडा परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के सख्त निर्देश दिए हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की बेंच ने पर्यावरण प्रभाव आंकलन (ईआईए) को प्राथमिकता देने पर जोर दिया है। पीठ ने उत्तर प्रदेश के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रमुख सचिव और नोएडा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जब तक परियोजना को पर्यावरणीय स्वीकृति और ग्रीन बेंच की मंजूरी न मिल जाए, तब तक कोई भी विकास कार्य शुरू नहीं होना चाहिए।

नोएडा की कार्यप्रणाली में नागरिक-केन्द्रित दृष्टिकोण लाने के लिए कोर्ट ने कहा कि एसआईटी रिपोर्ट की प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को सौंपी जाए, जो इसे मंत्रिपरिषद के सामने पेश करें ताकि उचित निर्णय लिया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि नोएडा में एक मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) की नियुक्ति की जाए। यह अधिकारी या तो आईपीएस कैडर से हो या फिर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) कार्यालय से प्रतिनियुक्ति पर आया हो।

इसी तरह, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे यह मामला संबंधित सक्षम प्राधिकरण के सामने रखें और सुनिश्चित करें कि चार सप्ताह के भीतर एक नागरिक सलाहकार बोर्ड गठित किया जाए।

अदालत ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया है कि दो आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित की जाए। यह टीम जांच करेगी कि क्या नोएडा अधिकारियों और लाभ पाने वालों के बीच कोई मिलीभगत थी और नोएडा प्राधिकरण के काम करने के तरीके में किसी प्रकार की गड़बड़ी थी। यदि शुरुआती जांच में किसी अपराध के होने के संकेत मिलते हैं, तो एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई शुरू की जाए। एसआईटी प्रमुख को स्थिति रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश करनी होगी।

मुआवजे में घोटाले और अधिकारियों की भूमिका पर खुलासा

विशेष जांच दल (एसआईटी) ने सुप्रीम कोर्ट में सौंपी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 1,198 मामलों में जमीन के मालिकों को तय मानकों से अधिक मुआवजा दिया गया, जबकि कोर्ट ने ऐसी अनुमति केवल 1,167 मामलों में दी थी।

मतलब की 20 मामलों में जरूरत से कहीं ज्यादा मुआवजा दिया गया। रिपोर्ट में यह भी बता गया है कि एसआईटी ने इन मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान भी कर ली है।

इसके अलावा, एसआईटी ने सुझाव दिया कि अधिकारियों, उनके परिजनों और जमीन मालिकों के बैंक खातों और उस समय खरीदी गई संपत्तियों की जांच आवश्यक है। साथ ही एसआईटी ने बताया कि इसके लिए 10 साल पुराने दस्तावेज एकत्र कर जांचने की आवश्यकता होगी।

एसआईटी ने नोएडा में पारदर्शिता की कमी को किया उजागर

एसआईटी ने माना कि नोएडा प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पारदर्शी नहीं है और सार्वजनिक हित की अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरी नहीं उतरती। एसआईटी ने कहा हालांकि वर्तमान प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन ये ज्यादातर समस्याओं के बाद की गई प्रतिक्रियाएं हैं, न कि पहले से योजना बनाकर उठाए गए कदम।

एसआईटी ने साफ तौर पर माना कि नोएडा के निवासी शिकायतों के जवाब में देरी और ठीक से समाधान न होने की शिकायत करते हैं। साथ ही, प्रशासनिक व्यवस्था भी कुछ चुनिंदा लोगों के हाथों में केंद्रित है। एसआईटी ने यह भी बताया कि नोएडा में निर्णय लेने की प्रक्रिया में अक्सर पारदर्शिता का अभाव होता है। महत्वपूर्ण निर्णय पर्याप्त सार्वजनिक जांच या जनता की राय के बिना लिए जाते हैं। साथ ही, परियोजनाओं की प्रगति की नियमित जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की जाती।

भूमि आवंटन समिति पर भी उठे सवाल

एसआईटी ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि भूमि आवंटन समिति की संरचना ऐसी है, जिसमें नीतियां ज्यादातर बिल्डरों के हित में बनती हैं। अधिकारियों को भी अत्यधिक विवेकाधिकार मिला हुआ है। साथ ही, अब स्थिति यह हो गई है कि नोएडा में भविष्य के विकास के लिए जमीन करीब-करीब खत्म होने के कगार पर है।

एसआईटी ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कुछ अहम सिफारिशें कीं हैं, जिनमें मौजूदा नोएडा अथॉरिटी की जगह एक मेट्रोपॉलिटन कॉर्पोरेशन का गठन शामिल है।

इसी तरह एसआईटी ने कुछ अन्य सिफारिशें भी की हैं, जिनमें नोएडा में एक मुख्य सतर्कता अधिकारी की नियुक्ति, हाई कोर्ट की निगरानी में एक समिति का गठन जो अधिकारियों के विवेकाधिकार को सीमित और स्पष्ट करे ताकि उनका दुरुपयोग न हो।

वित्तीय लेन-देन की पारदर्शिता के लिए नियमित थर्ड पार्टी ऑडिट, जनता से संवाद के लिए नियमित सार्वजनिक बैठकों का आयोजन, नागरिक सलाहकार बोर्ड का गठन और पर्यावरण प्रभाव आकलन को प्राथमिकता देना शामिल है।