साल-दर-साल देश में मानसून के दौरान बाढ़, तूफान, बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। शायद ही कोई ऐसा साल हो जब देश ने जलवायु से जुड़ी त्रासदी का सामना न किया हो। 2025 में भी उत्तराखंड में उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने के बाद अचानक आई बाढ़ ने एक झटके में पूरे गांव को उजाड़ दिया।
ऐसा ही कुछ हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले के सराज में भी देखने को मिला, जहां 30 जून 2025 की रात हुई भारी बारिश के बाद आई बाढ़, भूस्खलन ने कई जिंदगियों को निगल लिया। हिमालय नीति अभियान (एचएनए) द्वारा जारी अनुमान के मुताबिक इस आपदा में सराज घाटी के करीब दो दर्जन गांव बाढ़-भूस्खलन से प्रभावित हुए हैं। ऐसा ही कुछ 2024 में केरल के वायनाड में देखने को मिला था, जब मानसून ने भारी तबाही मचाई थी।
इन आपदाओं के बारे में 06 अगस्त 2025 को गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में जानकारी दी है कि पिछले साथ महीनों में बारिश, तूफान, सूखा जैसी जलवायु से जुड़ी आपदाओं ने देश में 1,626 लोगों की जान ली है।
उत्तराखंड में 71, हिमाचल में 195 ने गंवाई जान
आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि कई राज्यों में मौसम से जुड़ी आपदाओं के कारण होने वाली मौतों की संख्या चौंकाने वाली रही है। आंकड़ों के मुताबिक इन आपदाओं में जहां जनवरी 2025 से जुलाई 2025 के बीच आंध्र प्रदेश में 343 लोगों की जान गई है। वहीं मध्य प्रदेश में यह गिनती 243 रिकॉर्ड की गई।
इसी तरह हिमाचल प्रदेश में 195 लोग जलवायु से मौसम-पानी से जुड़ी आपदाओं में जान गंवा चुके हैं। इसी तरह कर्नाटक (102) और बिहार (101) में भी मरने वालों का आंकड़ा 100 से अधिक है। वहीं केरल में अब तक 97 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है।
उत्तराखंड जिसने हाल ही में भारी तबाही का सामना किया है, वहां भी पिछले सात महीनों में 71 लोगों की मौत हो चुकी है।
आंकड़ों के मुताबिक, केरल में 97, महाराष्ट्र में 90, राजस्थान में 79, उत्तराखंड में 71, गुजरात में 70, जम्मू कश्मीर में 37, जबकि असम में 32 और उत्तर प्रदेश में 23 लोगों की जान गई है। देखा जाए तो देश भर में चरम मौसमी घटनाओं में हुए 60 फीसदी से ज्यादा मौतें आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और बिहार में रिकॉर्ड की गई हैं।
किसानों को हुआ भारी नुकसान
ऐसा नहीं है कि इन आपदाओं में सिर्फ इंसानों ने अपनी जान गंवाई है। इसका किसानों और कृषि क्षेत्र पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है मंत्रालय के मुताबिक देश में पिछले सात महीनों में इन आपदाओं में 52,367 मवेशी भी मारे गए हैं। इसके साथ ही करीब 157,818 हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों को नुकसान हुआ है।
यदि सिर्फ उत्तराखंड की बात करें तो पिछले सात महीनों में आई जलवायु आपदओं मे 9.47 हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों को नुकसान पहुंचा है, जबकि 67 मवेशी भी मारे गए हैं।
देश में फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान महाराष्ट्र में हुआ है, जहां 91,429 हेक्टेयर में फसलों को नुकसान पहुंचा है। इसी तरह असम में यह आंकड़ा 30474.89, कर्नाटक में 20245, मेघालय में 6372.30 और पंजाब 3569.11 रिकॉर्ड किया गया है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा 23,992 पशुधन मारे गए हैं। वहीं असम में 14,269, जम्मू-कश्मीर में 11,067, मध्य प्रदेश में 1,625 और गुजरात 698 जैसे राज्यों में भी बड़ी संख्या में मवेशी मारे गए हैं। यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि इससे किसानों पर गहरा असर पड़ा है।
हालांकि मंत्रालय ने इस बात की भी पुष्टि की है कि यह आंकड़े अस्थाई हैं। लेकिन देखा जाए तो यह आंकड़े साफ तौर पर दर्शाते हैं कि जलवायु से जुड़ी आपदाओं के प्रति भारत में स्थिति लगातार नाजुक होती जा रही है।
मंत्रालय ने अपने जवाब में यह भी स्पष्ट कहा कि वह आपदाओं से जुड़े आंकड़े खुद इकट्ठे नहीं करता, बल्कि उसके लिए राज्यों पर निर्भर रहता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति (एनपीडीएम) का जिक्र करते हुए मंत्रालय ने जानकारी दी है कि जमीनी स्तर पर राहत सामग्री के वितरण सहित आपदा प्रबंधन की प्रमुख जिम्मेवारी संबंधित राज्य सरकारों की होती है। वहीं केंद्र, राज्य सरकारों के प्रयासों में सहायता करती है।
इस सवाल के जवाब में कि क्या लोगों को वज्रपात और तूफान की सही चेतावनी मिल रही है, सरकार ने बताया कि, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने आंधी-तूफान और आकाशीय बिजली जैसे खतरों की निगरानी, पूर्वानुमान और चेतावनी के लिए एक अत्याधुनिक प्रणाली बनाई है। यह प्रणाली सैटेलाइट, रडार, जमीनी उपकरणों और आकाशीय बिजली को पकड़ने वाले नेटवर्क के जरिए जिला और शहरी स्तर पर सटीक जानकारी देती है।
वहीं देशभर में 102 सेंसर वाले ग्राउंड-बेस्ड लाइटनिंग नेटवर्क के जरिए आईएमडी अब 5 दिन पहले तक तूफान और बिजली गिरने की चेतावनी जारी कर सकता है।
इसके साथ ही पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम संस्थान ने देशभर में 112 सेंसर का एक व्यापक वज्रपात निगरानी नेटवर्क तैयार किया है, जो पूरे भारत को कवर करता है। इस नेटवर्क के आधार पर 'दामिनी' नामक मोबाइल ऐप भी बनाया है, जो 20 से 40 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बिजली गिरने की सटीक जानकारी पहले ही दे देता है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 28 फरवरी 2025 को आंधी, बिजली, ओलावृष्टि, धूलभरी आंधी और तेज हवाओं से निपटने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं, जिससे लोगों की जान बचाई जा सके और समय रहते आपदा के लिए तैयार रहा जा सके।