हेक्टोरिया ग्लेशियर ने 2023 की शुरुआत में मात्र दो महीनों में अपनी बर्फ का लगभग आधा हिस्सा खो दिया।
शोध के अनुसार नीचे की समतल चट्टानी सतह के कारण ग्लेशियर अचानक तैरने लगा और तेजी से टूटकर बिखर गया।
उपग्रह डेटा ने साबित किया कि ग्लेशियर की बर्फ आठ किलोमीटर तक तेजी से पीछे हट गई, जो आधुनिक समय में रिकॉर्ड घटना है।
वैज्ञानिकों ने इस दौरान कई "ग्लेशियर भूकंप" दर्ज किए, जिनसे पता चला कि बर्फ का नुकसान सीधे समुद्र-स्तर बढ़ाने में योगदान देता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इसी प्रकार के अन्य ग्लेशियर भी खतरे में हैं, जिससे भविष्य में समुद्र-स्तर वृद्धि तेज हो सकती है।
अंटार्कटिका में स्थित हेक्टोरिया ग्लेशियर ने हाल ही में ऐसे बदलावों का सामना किया है, जिसने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। यह ग्लेशियर महाद्वीप के पूर्वी हिस्से में स्थित है और एक नए अध्ययन के अनुसार, इसने मात्र दो महीनों में अपनी बर्फ का लगभग आधा हिस्सा खो दिया।
यह आधुनिक समय में किसी भी ग्लेशियर में दर्ज की गई सबसे तेज और अचानक होने वाली बर्फीली गिरावट है। यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया गया और हाल ही में नेचर जियोसाइंस नामक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
ग्लेशियर से अचानक बड़ी मात्रा में बर्फ क्यों टूटी?
शोधकर्ताओं के अनुसार, यह गिरावट किसी एक कारण से नहीं, बल्कि भूगर्भीय संरचना और जलवायु से जुड़े कई कारणों के एक साथ जुड़ने से हुई। हेक्टोरिया ग्लेशियर समुद्र से जुड़ा एक टाइडवॉटर ग्लेशियर है, जिसका एक हिस्सा समुद्र की सतह से नीचे स्थित चट्टानी आधार (बेडरॉक) पर टिका होता है।
सामान्य रूप से ये ग्लेशियर धीरे-धीरे बर्फ छोड़ते हैं, जिसे कैल्विंग कहा जाता है। लेकिन हेक्टोरिया ग्लेशियर के नीचे की चट्टानी सतह अपेक्षाकृत समतल (फ्लैट) है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता गया और बर्फ की मोटाई कम होती गई, ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा समुद्र की सतह पर तैरने लगा।
ग्लेशियर के तैरने की यह स्थिति एक निर्णायक मोड़ बन गई। जब एक विशाल बर्फ-खण्ड तैरने लगता है, तो वह समुद्री लहरों और धाराओं के असर में ज्यादा कमजोर हो जाता है। इससे बर्फ के भीतर दरारें ऊपर और नीचे दोनों दिशाओं से फैलने लगीं। जब ये दरारें एक दूसरे से मिलने लगीं, तो ग्लेशियर अचानक टूटकर बिखर गया। वैज्ञानिकों ने इस घटना को एक असामान्य और तेज कैल्विंग इवेंट के रूप में दर्ज किया।
दो महीनों में आठ किलोमीटर बर्फ का नुकसान
शोध के अनुसार, हेक्टोरिया ग्लेशियर ने 2023 की शुरुआत में लगभग आठ किलोमीटर बर्फ खो दी, जो लगभग 115 वर्ग मील क्षेत्रफल के बराबर है, यानी लगभग फिलाडेल्फिया शहर के आकार जितना। यह बर्फ सामान्य समय में कई वर्षों में टूटती, लेकिन इस बार यह केवल दो महीनों में गायब हो गई।
वैज्ञानिकों ने इस घटना को उपग्रहों की मदद से दर्ज किया। अलग-अलग प्रकार के उपग्रहों के डेटा को मिलाकर शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया कि बर्फ ने कितनी तेजी से आगे बढ़कर टूटना शुरू किया था। अगर उपग्रहों की तस्वीरें केवल तीन-तीन महीने के अंतराल पर ली गई होती, तो यह तेज पतन दिखाई नहीं दे पाता।
वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया: "दृश्य देखकर विश्वास करना कठिन था"
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि 2024 की शुरुआत में उस स्थान का निरीक्षण किया, तो वे इस बदलाव को सामने देखकर स्तब्ध रह गए।
उन्होंने कहा कि उपग्रह चित्रों में जो देखा था, उससे अंदाजा था कि ग्लेशियर का आकार काफी बदल चुका है। लेकिन जब हमने इसे सामने से देखा, तो यह दृश्य हमारी कल्पना से भी कहीं अधिक था।
इस शोध में सीआइआरईएस के शोधकर्ता का कहना है कि यह घटना केवल हेक्टोरिया ग्लेशियर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्य बड़े ग्लेशियरों के भविष्य के लिए एक चेतावनी संकेत है। यदि अंटार्कटिका में ऐसे ही हालात अन्य क्षेत्रों में भी बन जाते हैं, तो यह वैश्विक समुद्र-स्तर वृद्धि को बहुत तेजी से बढ़ा सकता है।
समुद्र-स्तर पर संभावित प्रभाव
हेक्टोरिया ग्लेशियर स्वयं बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन इसका महत्व इसकी स्थिति और संरचना में है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे फ्लैट-बेड वाले ग्लेशियर अंटार्कटिका में और भी मौजूद हैं। यदि उनमें भी इसी तरह तैरने और टूटने की स्थिति बन गई, तो इससे समुद्री सतह में खतरनाक स्तर तक वृद्धि हो सकती है। दुनिया भर के कई तटीय शहर और द्वीप समुद्र-स्तर बढ़ने से सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
आगे क्या होगा?
यह अध्ययन जलवायु विज्ञान, ध्रुवीय क्षेत्रों के अध्ययन और भविष्य के समुद्री खतरों को समझने में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। वैज्ञानिक अब इसी तरह के अन्य ग्लेशियरों की भी पहचान कर रहे हैं, ताकि समय रहते संभावित खतरों का मूल्यांकन किया जा सके।
हेक्टोरिया ग्लेशियर का दो महीनों में लगभग आधे हिस्से का टूटना, पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में हो रहे तेज बदलावों का स्पष्ट संकेत है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन केवल तापमान बढ़ने का मामला नहीं है।
यह हमारी पृथ्वी के विशाल बर्फीले भंडारों को भी अस्थिर कर रहा है। यदि ऐसे परिवर्तन बड़े ग्लेशियरों में भी होने लगे, तो वैश्विक स्तर पर समुद्र-स्तर वृद्धि गंभीर रूप ले सकती है, जिसके कारण दुनिया के करोड़ों लोगों पर प्रभाव पड़ेगा।