कल्पना कीजिए, जब आपकी पसंदीदा आइसक्रीम या केक में वनीला की मिठास और खुशबू खो जाए। वह जादू जो हर स्वाद को खास बना देता है, अचानक गायब हो जाए। अगर हमने जलवायु परिवर्तन की गति को नहीं रोका, तो यह कल्पना बहुत जल्द हकीकत में बदल सकती है।
आइसक्रीम, केक, चॉकलेट, दवाओं और कॉस्मेटिक्स में इस्तेमाल होने वाला वनीला फ्लेवर आज रसोई और उद्योग की जरूरत बन चुका है। लेकिन इसकी मिठास और सुगंध पर जलवायु परिवर्तन का साया मंडराने लगा है, जो इसकी खेती और भविष्य को खतरे में डाल रहा है।
बढ़ते तापमान से खेती पर संकट
वनीला, केसर के बाद दुनिया का दूसरा सबसे महंगा मसाला है। इसे वनीला ऑर्किड नामक पौधे की फलियों से बनाया जाता है। इस पौधे में हाथ से परागण किया जाता है, जो बेहद श्रमसाध्य और नाजुक प्रक्रिया है।
इसकी उपज पहले ही सूखा, गर्मी और बीमारियों की मार झेल रही है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि आने वाले वर्षों में ये समस्याएं और गंभीर होती जाएगी। हर गुजरते दिन के साथ जलवायु और अधिक अस्थिर होती जा रही है, ऐसे में इसकी खेती के साथ-साथ उन किसानों पर भी संकट गहराता जा रहा है, जो अपनी जीविका के लिए इससे जुड़े हैं।
अध्ययन के मुताबिक दुनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली जंगली वनीला की प्रजातियां इस संकट से निपटने की कुंजी हो सकती हैं। ये प्रजातियां समय के साथ प्राकृतिक रूप से ऐसे गुण विकसित कर चुकी हैं जो सूखा और गर्मी सहने में मदद करते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर अब इन जंगली पौधों और उनके परागणकर्ता कीटों जैसे मधुमक्खियों पर भी पड़ रहा है।
इस अध्ययन के नतीजे जर्नल फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस में प्रकाशित हुए हैं।
परागणकर्ताओं पर भी असर
वनीला की अधिकतर प्रजातियां प्राकृतिक रूप से मधुमक्खियों और अन्य कीटों की मदद से परागित होती हैं। लेकिन जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है और पर्यावरण में बदलाव आ रहे हैं, वैसे-वैसे इन कीटों के आवास घट रहे हैं। नतीजन यह प्रजातियां जलवायु परिवर्तन और परागणकर्ताओं की कमी से जूझ रही हैं।
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता शार्लोट वाट्टेइन का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "जलवायु परिवर्तन की वजह से वनीला और उनके परागणकर्ताओं के बीच का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे जंगली वनीला की प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।"
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वनीला की 11 प्रजातियों और 7 प्रमुख परागणकर्ताओं के आवास और आपसी संबंधों का विश्लेषण दो जलवायु परिदृश्यों (एसएसपी2-4.5 और एसएसपी3-7.0) के तहत किया है।
इस विश्लेषण के नतीजे दर्शाते हैं कि वनीला की कुछ प्रजातियां 2050 तक अपने आवास क्षेत्रों का 140 फीसदी तक विस्तार कर सकती हैं। वहीं दूसरी प्रजातियां अपनी 53 फीसदी तक अनुकूल जगह खो सकती हैं। परागणकर्ताओं की स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक है, आशंका है कि खासकर छोटे आकार की मधुमक्खियों की, जिनके आवास तेजी से घट सकते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक भले ही वनीला की कुछ प्रजातियों को नई जगह मिल जाए लेकिन अगर उनके परागणकर्ता वहां न पहुंचे, तो उनके अस्तित्व का बनाए रहना मुश्किल होगा।
संरक्षण की जरूरत
ऐसे में वैज्ञानिकों ने वनीला की खेती और प्राकृतिक विविधता को बचाए रखने के लिए प्राकृतिक आवास में संरक्षण और बीज बैंक, बॉटनिकल गार्डन आदि दोनों तरीकों को अपनाने की सलाह दी है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि यदि अभी से प्रभावी कदम न उठाए गए, तो 2050 तक वनीला और परागणकर्ताओं के साझा संरक्षित क्षेत्र 42 फीसदी से घटकर महज 17 फीसदी रह जाएंगे।
अध्ययन के मुताबिक जंगली वनीला पर मौसम के साथ-साथ जंगलों के हो रहे विनाश अवैध दोहन, और पारिस्थितिक असंतुलन जैसे और भी कई खतरे मंडरा रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों ने बीज बैंक, वनस्पति उद्यान और स्थानीय संरक्षण की रणनीतियों को तुरंत लागू करने की मांग की है।
वनीला सिर्फ स्वाद या खुशबू नहीं, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जो दुनिया भर में छोटे किसानों की आजीविका का आधार बनी हुई है। इसका संरक्षण केवल जैव विविधता की रक्षा भर नहीं, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने से भी जुड़ा है।
आज जब जलवायु संकट दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले रहा है, वनीला जैसी दुर्लभ और संवेदनशील फसलें सबसे पहले इसकी चपेट में आ रही हैं। यह सिर्फ स्वाद के खोने की बात नहीं है — यह हमारी जलवायु स्थिरता, पारिस्थितिकी तंत्र और किसानों के भविष्य से जुड़ा गंभीर सवाल है।