साल 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा, जिससे हर 6 में से 1 प्रजाति को अभूतपूर्व तापमान झेलना पड़ा।
2023 और 2024 दोनों साल में 80 फीसदी वही प्रजातियां प्रभावित हुई, यानी संकट लगातार उन्हीं पर केंद्रित है।
यूकॉन शोधकर्ताओं ने तेज बायोअसेसमेंट उपकरण विकसित किया, जिससे 33,000 से अधिक कशेरुकी प्रजातियों का विश्लेषण किया गया।
सबसे ज्यादा खतरे में दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के भूमध्य रेखीय क्षेत्र पाए गए, जहां बार-बार गर्मी का दबाव देखा गया।
शोधकर्ता अब पौधों और कीटों को भी इस आकलन में शामिल करेंगे।
साल 2024 धरती के लिए एक ऐतिहासिक और चिंताजनक मोड़ साबित हुआ। यह साल अब तक का सबसे गर्म साल रहा और यह पिछले दशक का भी सबसे गर्म वर्ष था। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह पिछले एक लाख सालों में सबसे गर्म साल भी हो सकता है। इस अभूतपूर्व तापमान ने केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं बल्कि धरती पर मौजूद लाखों प्रजातियों के अस्तित्व पर भी गंभीर खतरा पैदा कर दिया है।
इसी सवाल का उत्तर खोजने के लिए अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट (यूकॉन) के शोधकर्ताओं ने एक नई विधि विकसित की है, जिससे यह आकलन किया जा सकेगा कि कौन-सी प्रजातियां इस बढ़ती गर्मी की चपेट में हैं और भविष्य में किनके विलुप्त होने का खतरा सबसे अधिक है।
नई बायोअसेसमेंट तकनीक
यूकॉन के इकोलॉजी और इवोल्यूशनरी बायोलॉजी विभाग के शोधकर्ता ने एक ऐसा उपकरण या टूल तैयार किया है, जिसे वे रैपिड क्लाइमेट बायोअसेसमेंट कहते हैं। इसका उद्देश्य पारंपरिक, धीमी और दशकों पीछे चल रही विधियों की जगह लेना है।
यह उपकरण किसी भी प्रजाति के जलवायु चरम स्थितियों के संपर्क और उसके असर का तेजी से आकलन करता है। इस तकनीक को 2023 में विकसित किया गया और 2024 में इसका उपयोग दुनियाभर की 33,000 से अधिक कशेरुकी प्रजातियों पर किया गया।
शोध के चौंकाने वाले निष्कर्ष
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित अध्ययन से कई गंभीर तथ्य सामने आए, 2024 में हर छह में से एक प्रजाति ऐसे तापमान से गुजरी जो उसने अपने इतिहास में पहले कभी नहीं झेला था। 2023 में जिन प्रजातियों पर गर्मी का असर हुआ था, उनमें से 80 फीसदी प्रजातियां 2024 में भी प्रभावित हुई।
शोधकर्ताओं को उम्मीद थी कि यह असर कभी यादृच्छिक या रैंडम होगा, यानी एक साल एक क्षेत्र प्रभावित होगा और अगले साल कोई दूसरा। लेकिन अध्ययन से पता चला कि बार-बार वही क्षेत्र और वही प्रजातियां गर्मी की मार झेल रही हैं।
यह असर समान रूप से पूरे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नहीं दिखा, बल्कि खासकर दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका के भूमध्य रेखीय इलाकों में ज्यादा देखने को मिला।
शोधकर्ता ने इसकी 'बुरे बंधक' से तुलना करते हुए कहा कि जब लगातार एक ही प्रजाति और क्षेत्र को गर्मी झेलनी पड़ती है, तो यह दबाव समय के साथ बढ़ता चला जाता है। जैसे बैंक का ब्याज जुड़ता रहता है, वैसे ही हर गर्म साल प्रजातियों की सहनशक्ति पर नया बोझ डाल देता है। प्रजातियों को आराम या उबरने का समय नहीं मिल पाता और उनकी लचीलापन कम होता चला जाता है। नतीजतन विलुप्ति का खतरा और बढ़ जाता है।
क्यों है यह और भी खतरनाक?
आज का जलवायु परिवर्तन इतिहास के किसी भी दौर से तेज हो रहा है। पहले प्रजातियां धीरे-धीरे अनुकूलन करके नई परिस्थितियों में टिक पाती थीं। लेकिन अब लगातार और तेजी से आ रही गर्मी प्रजातियों को उस समय का मौका ही नहीं दे रही। यदि किसी प्रजाति की आबादी बार-बार गिरती है और वह शून्य के करीब पहुंचती है, तो फिर उसका भविष्य बचाना असंभव हो जाता है।
शोध में कहा गया है कि यह उपकरण केवल कशेरुकी प्रजातियों तक सीमित नहीं रहेगा। भविष्य में इसमें कीट-पतंगे और पौधे भी शामिल किए जाएंगे। शोधकर्ता हर साल की तरह एक सालाना रिपोर्ट जारी करने का लक्ष्य रखते हैं, जिसमें प्रजातियों की मौजूदा स्थिति और खतरे का आकलन होगा। उनका उद्देश्य यह है कि इस आंकड़े के आधार पर जमीनी स्तर पर कदम उठाए जा सकें, जैसे: चरम गर्मी के समय प्रजातियों को पानी और आश्रय उपलब्ध कराना। खाद्य संसाधन देना ताकि वे भूख से न मरें। संवेदनशील इलाकों में पहले से निगरानी और तैयारी करना।
2024 का साल स्पष्ट चेतावनी है कि अब समय हमारे हाथ से निकल रहा है। यह केवल एक साल की घटना नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि लगातार बढ़ती गर्मी कैसे धरती की जैव विविधता को कमजोर कर रही है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह स्थिति बिल्कुल बैंक खाते जैसी है, अगर खाता शून्य हो गया तो फिर ब्याज दर का कोई मतलब नहीं रह जाता। उसी तरह, अगर प्रजातियां लगातार संकट झेलती रहीं और उनकी आबादी खत्म हो गई, तो उन्हें बचाना संभव नहीं होगा।
इसलिए यह नई बायोअसेसमेंट तकनीक हमें न सिर्फ चेतावनी देती है, बल्कि हमें मौका भी देती है कि समय रहते कदम उठाएं और उन प्रजातियों को बचाएं जो इस धरती की प्राकृतिक धरोहर हैं।