पानी की लगातार बढ़ती किल्लत; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रहा ‘डे जीरो’ का खतरा, अगले 15 वर्षों में 35 फीसदी इलाके होंगे प्रभावित

डे जीरो अब कोई भविष्य की समस्या नहीं, यह केप टाउन, चेन्नई जैसे दुनिया के कई हिस्सों में पहले ही दस्तक दे चुका है

Lalit Maurya

  • ग्लोबल वार्मिंग के चलते 'डे जीरो' का खतरा बढ़ रहा है, जिससे अगले 15 वर्षों में 35 फीसदी इलाके प्रभावित हो सकते हैं।

  • अध्ययन के अनुसार, 75 करोड़ लोग सदी के अंत तक जल संकट का सामना करेंगे।

  • यह संकट शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करेगा, जिससे जल प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ेगी।

  • ‘डे जीरो’ ड्राउट वह समय है जब किसी क्षेत्र में पानी की मांग बारिश, नदियों और जलाशयों से मिलने वाली आपूर्ति से अधिक हो जाती है।

  • गौरतलब है कि 2018 में दक्षिण अफ्रीका का केप टाउन और 2019 में भारत का चेन्नई शहर पहले ही इस स्थिति के करीब पहुंच चुके हैं, जो इन शहरों में पीने के पानी और कृषि के लिए जल आपूर्ति प्रणालियों की बढ़ती संवेदनशीलता को दर्शाता है।

जल संकट की घड़ी करीब है और यह खतरा अब सिर्फ भविष्य की कहानी नहीं, बल्कि आज की सच्चाई बन चुका है। इसका जीता जागता सबूत है दुनिया के कई हिस्सों में ‘डे जीरो’ यानी उस दिन की दस्तक का सुनाई देना जब पानी पूरी तरह खत्म होने लगेगा।

इस बारे में एक नए अध्ययन ने चेताया है कि अगर हालात ऐसे ही रहे, तो सदी के अंत तक करीब 75 करोड़ लोग इस अभूतपूर्व जल संकट का सामना कर रहे होंगे।

सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह संकट केवल शहरी इलाकों तक सीमित नहीं रहेगा, ग्रामीण क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। अध्ययन में आगाह किया गया है कि आने वाले 15 साल में ग्लोबल वार्मिंग के असर से दुनिया के एक-तिहाई से अधिक संवेदनशील इलाके ‘डे जीरो’ जैसी घातक सूखे की स्थिति में आ सकते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान दुनिया भर में लम्बे समय तक पड़ने वाले सूखे के खतरे को तेजी से बढ़ा रहा है। यह सूखा “डे जीरो ड्राउट" कहलाता है। ‘डे जीरो’ ड्राउट वह समय है जब किसी क्षेत्र में पानी की मांग बारिश, नदियों और जलाशयों से मिलने वाली आपूर्ति से अधिक हो जाती है।

यह अध्ययन कोरिया की पुसान नेशनल यूनिवर्सिटी के आईबीएस सेंटर फॉर क्लाइमेट फिजिक्स से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।

इस अध्ययन में साझा किए आंकड़ों के मुताबिक, अगले 15 वर्षों में दुनिया के 35 फीसदी संवेदनशील इलाके डे जीरो जैसी स्थिति का सामना करने को मजबूर होंगे। वहीं सदी के अंत तक करीब 75 करोड़ पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे होंगे।

ऐसा नहीं है कि यह किल्लत केवल शहरी क्षेत्रों पर ही हावी होगी। अनुमान है कि जहां 47 करोड़ शहरी पानी की इस कमी से जूझ रहे होंगे। वहीं ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 29 करोड़ लोग भी इससे प्रभावित होंगें।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जलवायु के नवीनतम मॉडल का उपयोग किया है। इसकी मदद से उन्होंने यह अनुमान लगाया है कि कब किसी क्षेत्र में पानी की मांग बारिश, नदियों और जलाशयों से मिलने वाले पानी से अधिक हो जाएगी।

शोधकर्ताओं ने अपने क्लाइमेट मॉडल में एसएसपी3-7.0 और एसएसपी2-4.5 ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन परिदृश्यों को शामिल किया है। इस शोध में लंबी अवधि तक बारिश की कमी, नदियों का कम बहाव और बढ़ती जल खपत जैसे चरम परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। हालांकि इसमें भूजल भंडार शामिल नहीं हैं।

सावधान! करीब है जल संकट की घड़ी

परिणामों दर्शाते हैं कि भूमध्यसागरीय क्षेत्र, दक्षिण अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और एशिया के कुछ हिस्सों में ‘डे जीरो ड्राउट’ के मजबूत हॉटस्पॉट बन रहे हैं। शहरी क्षेत्र विशेष रूप से सबसे अधिक संवेदनशील हैं। अनुमान है कि भूमध्यसागरीय क्षेत्र के शहरी क्षेत्रों में पानी किल्लत सबसे ज्यादा होगी, जबकि उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका तथा एशिया के कुछ हिस्सों में ग्रामीण क्षेत्रों पर इसका सबसे गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

गौरतलब है कि 2018 में दक्षिण अफ्रीका का केप टाउन और 2019 में भारत का चेन्नई शहर पहले ही इस स्थिति के करीब पहुंच चुके हैं, जो इन शहरों में पीने के पानी और कृषि के लिए जल आपूर्ति प्रणालियों की बढ़ती संवेदनशीलता को दर्शाता है।

ऐसा ही कुछ बैंगलोर में भी देखने को मिला जब हालात डे जीरो जैसे बन गए। दिल्ली में भी पानी की किल्लत लगातार बढ़ रही है।

देखा जाए तो यह समझना कि ये स्थिति कब, कहां पैदा होगी, ग्रामीण और शहरी इलाकों के लिए प्रभावी जल प्रबंधन रणनीतियां बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि आने वाले दशकों में ‘डे जीरो ड्राउट’ की घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी और यह पहले की अपेक्षा बहुत जल्द होगा।

अध्ययन के प्रमुख लेखक रवींद्रनद्रसाना का कहना है, "अध्ययन से स्पष्ट है कि ग्लोबल वार्मिंग डे जीरो ड्राउट की स्थितियों को तेज कर रही है।" उनके मुताबिक यदि डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल भी कर लिया जाए तो भी करोड़ों लोग गंभीर जल संकट का सामना करने को मजबूर होंगें।

वैज्ञानिकों के मुताबिक जल आपूर्ति पर दबाव इतना बढ़ गया है कि दुनिया के 14 फीसदी प्रमुख जलाशयों में पहला डे जीरो ड्राउट आते ही पानी समाप्त हो सकता है। इससे लोगों के जीवन और जीविका पर गंभीर असर पड़ेगा।

शोधकर्ताओं का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, ‘डे जीरो ड्राउट’ अब दूर की कौड़ी नहीं रह गया, यह पहले ही हो रहा है। ऐसे में यदि तुरंत अनुकूलन और सतत जल प्रबंधन पर ध्यान न दिया गया, तो करोड़ों लोग भविष्य में अभूतपूर्व जल संकट का सामना कर रहे होंगे।"