शाम ढलने वाली ही थी कि 26 अगस्त को माछीवाल पर बाढ़ कहर बनकर टूट पड़ी। पंजाब के अमृतसर जिले का यह गांव रावी नदी से बस चार किलोमीटर ही दूर बसा है। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे सरकारी अफसर घबराए हुए गांव पहुंचे और लोगों को चेताया कि बाढ़ आने वाली है। लेकिन आधे घंटे में ही उफनती रावी ने पूरे माछीवाल गांव को ऐसे घेर लिया जैसा लोगों ने पहले कभी नहीं देखा था।
किसान कर्म सिंह कांपती हुई आवाज में बताते हैं, “मेरे पड़ोसी परमजीत सिंह मेरी आंखों के सामने ही बह गए।” उनका शव दो दिन बाद गांव से कई किलोमीटर दूर मिला। वह कहते हैं, “हम महज 30 मिनट में ऐसी आफत के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं?” उनकी बातें उस पृष्ठभूमि में गूंजती हैं जहां चारों ओर फैला बाढ़ का पानी नजर आ रहा था।
बाढ़ के दस दिन बाद भी माछीवाल पानी में डूबा रहा। बाढ़ ने गांव के हर आदमी को अपनी जद में लिया। इस आपदा ने परमहंस सिंह के पड़ोसी महिंदर सिंह को बेघर कर दिया और उनकी आजीविका छीन ली। वह बताते हैं, “हमने घर की बाउंड्री बनाने और दर्जन भर बकरियां खरीदने के लिए तीन लाख रुपए का कर्ज लिया था। सब बह गया, केवल दो बकरियां बची।”
गांव में फैली दुख की भावना ने निवासियों के बीच एकता पैदा कर दी। वह आगे कहते हैं, “हमारे पड़ोसी तरसेम सिंह ने हमसे ज्यादा नुकसान झेला है। उसका पूरा घर बह गया।” तरसेम सिंह का परिवार फिलहाल कर्म सिंह के घर में शरण ले चुका है।
माछीवाल जैसे गांव बाढ़ से सुरक्षित माने जाते थे क्योंकि यह गांव रावी नदी पर रणजीत सागर बांध के नीचे स्थित हैं। आमतौर पर बांध की सुरक्षा और नदी से कुछ किलोमीटर की दूरी के कारण बड़ी बाढ़ की संभावना नहीं होती। लेकिन इस बार स्थिति अलग थी।
अगस्त के तीसरे सप्ताह में जलग्रहण क्षेत्र में लगातार बारिश से भारी जल प्रवाह के कारण रावी का जलस्तर 527 मीटर की अधिकतम क्षमता के करीब पहुंच गया 26-27 अगस्त को अधिकारियों ने रणजीत सागर बांध से ओवरफ्लो रोकने और बांध की सुरक्षा बनाए रखने के लिए लगभग 56.6 लाख लीटर प्रति सेकंड से अधिक पानी छोड़ा।
27 अगस्त को बाढ़ का पानी माधोपुर बैराज तक पहुंचा, जहां पुरानी संरचना और रखरखाव की कमी ने स्थिति को और खराब कर दिया। दोपहर के आसपास बैराज टूट गया और गुरदासपुर, पठानकोट और अमृतसर जिलों के गांव पानी में डूब गए।
गांव को नदी से बचाने वाला दो किलोमीटर लंबा धूसी बांध कई जगहों पर टूट गया और बाढ़ दूर-दराज के क्षेत्रों तक फैल गई। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पानी पहुंच गया। उफनती रावी ने भारत-पाक सीमा पर करीब 30 किलोमीटर लंबी लोहे की बाड़ बहा दी और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को कई चेकपोस्ट खाली करने पड़े। बीएसएफ पंजाब फ्रंटियर के उपमहानिरीक्षक एके विद्यार्थी ने कहा, “गुरदासपुर में हमारे करीब 30 से 40 बॉर्डर चौकियां डूब गईं।”
गांवों में पुलिया या बांध की चोटी जैसे ऊंचे स्थान लोगों के लिए शरण स्थल बन गए। कई निवासियों ने अपने पास बची हुई चीजें ट्रैक्टर-ट्रॉली में रखी हैं। माछीवाल के पास शहजादा गांव में बाढ़ से विस्थापित हुए सुच्चा सिंह कहते हैं, “हम जैसे गरीबों के पंद्रह घर पूरी तरह डूब गए। हमारे दोस्तों ने हमें यह ट्रॉलियां दी हैं ताकि हम अपना सामान रख सकें।”
शायद यह पहली बार हुआ है जब पंजाब की सारी नदियां एक साथ बाढ़ में उफनाईं। डाउन टू अर्थ के सैटेलाइट आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि पंजाब के कुल 50,362 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से करीब 7,000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा बाढ़ की चपेट में आ गया, जिसमें सबसे ज्यादा असर ब्यास, रावी, सतलुज और घग्गर नदियों के किनारे देखा गया।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) पटना के असिस्टेंट प्रोफेसर अक्षर त्रिपाठी कहते हैं, “अगर आप कुल कवरेज या असर की व्यापकता देखें तो 2025 काफी बड़ा नजर आता है।” उनका कहना है कि इस बार पानी का फैलाव सितंबर 1988 और जुलाई 1993 की बाढ़ से भी ज्यादा दिख रहा है। यह दोनों बाढ़ें अब तक राज्य में सबसे बड़ी बाढ़ के तौर पर दर्ज थीं।
अब यह समझते हैं कि आखिर हालात क्यों और कैसे बिगड़े? 25 अगस्त को सतलुज पर बने भाखड़ा बांध का जलस्तर 508.6 मीटर तक पहुंच गया जो खतरे के निशान 512 मीटर से केवल 3.4 मीटर कम था। 26 अगस्त को प्रशासन को बांध के गेट खोलने पड़े। इसका पानी फाजिल्का जिले के 77 गांवों, फिरोजपुर के 102 गांवों और रूपनगर के 44 गांवों में घुस गया। इसी तरह ब्यास पर बने पोंग बांध का जलस्तर भी 25-26 अगस्त को 424.6 मीटर तक पहुंच गया जो उसकी क्षमता से ज्यादा था। बांध से छोड़े गए पानी ने कपूरथला जिले के 123, होशियारपुर के 125, जालंधर के 64 और तरनतारन के 70 गांवों को बुरी तरह प्रभावित किया।
ब्यास नदी का बहाव उसकी सामान्य क्षमता 80,000 क्यूसेक से कहीं ज्यादा हो गया, जिसने खेतों और बस्तियों को डुबा दिया। सतलुज और ब्यास का संगम तरनतारन के हरिके बैराज कस्बे के पास है। चूंकि दोनों नदियों में बाढ़ का उफान एक साथ था ऐसे में संगम के ठीक नीचे बने हरिके बैराज से भी पानी छोड़ना पड़ा, जिससे तरनतारन और फिरोजपुर के 30 गांवों की हजारों हेक्टेयर फसलें जलमग्न हो गईं। इन जगहों पर पानी का स्तर तीन मीटर तक पहुंच गया।
पिछले कई दिनों से हरिके बैराज के पास फतेहगढ़ गांव के किसान सुखविंदर सिंह नाव से अपने गांव तक आ-जा रहे हैं। वह कहते हैं, “अब तो हर दो साल में बाढ़ आ रही है। हमारा गांव 2019 और 2023 में भी डूबा था। 2023 की बाढ़ में मेरी पूरी फसल बर्बाद हो गई थी। मैंने दो लाख रुपए का कर्ज लेकर फिर से खेती शुरू की और पिछले साल वह कर्ज चुका दिया। लेकिन इस बार की बाढ़ ने मेरी खेती फिर पूरी तरह चौपट कर दी।”
पंजाब स्थित गैर-लाभकारी संस्था मिसल सतलुज से जुड़े दविंदर सिंह सेखों कहते हैं,“यह बाढ़ जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक बारिश से आई है। इंसानों की वजह ने इसे और बिगाड़ दिया।” वह आगे जोड़ते हैं, “बांध का गलत प्रबंधन, बांधों की मरम्मत में देरी, नदियों की अनदेखी और कमजोर निकासी व्यवस्था ने पानी के बहाव को रोक दिया।” भारतीय किसान यूनियन (शहीद भगत सिंह) के प्रवक्ता तेजवीर सिंह कहते हैं कि भाखड़ा और रणजीत सागर बांध से पानी पहले ही छोड़ देना चाहिए था। उनके मुताबिक राजस्थान भी अपने हिस्से का पानी मांग रहा था क्योंकि वहां की नदियां और नाले सूख गए थे और लोगों ने प्रदर्शन भी किया था लेकिन उन्हें पानी नहीं दिया गया। वह सवाल उठाते हैं, “सबसे बड़ी बात यह है कि भाखड़ा, रणजीत सागर और पोंग बांध पहले कभी सितंबर के बाद ही भरते थे तो इस बार इन्हें पहले क्यों भर दिया गया?” पानी तभी छोड़ा गया जब बांध भर चुके थे और यह भारी बारिश के साथ मेल खा गया जिससे समस्या और गंभीर हो गई।
पांच सितंबर तक करीब 1,655 गांव पानी में डूबे हुए थे। 40 लोगों की मौत हो चुकी थी, 3.5 लाख लोग प्रभावित थे और लगभग 20,000 लोगों को बाढ़ के पानी से बचाया गया। राज्य सरकार के 5 सितंबर के बुलेटिन के अनुसार 1,75,216 हेक्टेयर से ज्यादा खड़ी फसलें बर्बाद हो गईं। इनमें मुख्य रूप से धान, कपास और गन्ना की फसलें थीं। यह बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र राज्य की औसत बाढ़-प्रवण भूमि यानी अक्सर बाढ़ प्रभावित होने वाले क्षेत्र 1,42,692 हेक्टेयर से भी ज्यादा है। जैसा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा 2023 में प्रकाशित “फ्लड अफेक्टेड एरिया एटलस फॉर इंडिया” में दर्ज है। अनुमान है कि फसल का नुकसान करीब 10,000 करोड़ रुपए का है और यह देश की खरीफ फसल उत्पादन को प्रभावित कर सकता है।
पंजाब आपदा प्रबंधन विभाग की प्रारंभिक सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि 1,20,000 मकान क्षतिग्रस्त हुए या गिर गए, जो कि राज्य में पिछली बाढ़ों की तुलना में लगभग दोगुना है। जालंधर और कपूरथला के पोल्ट्री फार्मों में दस लाख से ज्यादा पक्षियों की मौत का नुकसान हुआ है।
डेयरी सहकारी समितियां बंद हो गई हैं और सैकड़ों मवेशियों के मरने की आशंका है। इस आपदा ने क्षेत्र में दूध की कमी पैदा कर दी है और औद्योगिक इलाकों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। लुधियाना की होजरी बेल्ट में फैक्ट्री बंद हो गईं, जबकि फगवाड़ा और अमृतसर के फूड-प्रोसेसिंग हब जलभराव से जूझ रहे हैं।
दरअसल घटनाओं की कड़ी में यह बाढ़ तय मानी जा रही थी। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के चंडीगढ़ केंद्र के निदेशक सुरेंद्र पाल कहते हैं, “पंजाब ने पिछले 27 सालों का सारा रिकॉर्ड तोड़ दिया है, जब बात अतिरिक्त बारिश की आती है।”
अगस्त में 24 दिन राज्य में भारी बारिश के दिन रहे, जिसे आईएमडी 24 घंटे में 115 मिलीमीटर (मिमी) या उससे ज्यादा मानता है। कुल मिलाकर अगस्त में राज्य को 253.7 मिमी बारिश मिली, जो सामान्य 146.2 मिमी से 74 फीसदी ज्यादा थी।
यह पहला मौका है जब अगस्त में मासिक बारिश का आंकड़ा 160 मिमी से ऊपर गया। अगस्त के आखिरी पखवाड़े में पंजाब में सामान्य से औसतन 400 फीसदी ज्यादा बारिश दर्ज हुई। दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के सहायक प्राध्यापक गगनदीप सिंह बताते हैं, “इस छोटे से समय में उत्तर-पश्चिम भारत ने 205 मिमी बारिश देखी, जो अपेक्षित 75 मिमी से लगभग तीन गुना ज्यादा थी।”
गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन प्रभाग के आंकड़ों के अनुसार 23 से 30 अगस्त तक कई जिलों में लगातार भारी बारिश हुई। 27 अगस्त से पंजाब की नदियां उफान पर आ गईं, तटबंध टूट गए और राज्य का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया। 30 अगस्त को राज्य के 23 में से 12 जिलों को बाढ़ग्रस्त घोषित कर दिया गया। दो दिन बाद सरकार ने सभी जिलों को बाढ़ प्रभावित घोषित किया। पांच सितंबर तक कुल 167 राहत शिविरों में करीब 6,000 विस्थापित लोग रह रहे थे। राष्ट्रीय आपदा राहत बल की 23 टीमें कुल 117 नावों के साथ तैनात थीं और सेना व वायुसेना ने 35 हेलिकॉप्टर भेजकर बाढ़ में फंसे हुए लोगों को बचाया।
पंजाब की सबसे भीषण बाढ़ को हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में हुई भारी बारिश ने और भयानक बना दिया क्योंकि इन्हीं राज्यों से होकर पंजाब की तीन मुख्य नदियां रावी, ब्यास और सतलुज बहती हैं। यह नदियां और इनसे जुड़ा नहरों का जाल निचले इलाकों को उपजाऊ बनाता है और दोआब की जमीन को सींचता है। लेकिन हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के ऊपरी हिस्सों में आई बाढ़ ने पंजाब के साथ मिलकर तबाही को और बढ़ा दिया।
त्रिपाठी बताते हैं कि बारिश के अलावा हालात बिगाड़ने वाले और भी कारण हो सकते हैं। उनके मुताबिक, “पंजाब से होकर बहने वाली ज्यादातर नदियों का पैटर्न हिमालय बनने से पहले तय हुआ था। यह नदियां अपना बड़ा जलभार हिमालयी ग्लेशियरों से लाती हैं।”
वह बताते हैं कि ऊपरी हिमालय में बादल फटने से बहुत अधिक पानी आ सकता है और नदियां भारी मात्रा में पानी पंजाब की तराई में ले आती हैं। यह समतल भूभाग पंजाब को और संवेदनशील बना देता है। वह कहते हैं, “जैसे ही जमीन सपाट होती है, हिमालय से आने वाली नदियों की जल ढोने की क्षमता घट जाती है। ज्यादातर नदियां गाद से भरी रहती हैं। दूसरी समस्या यह है कि तटबंध टूट जाते हैं।”
इस बार की बारिश कई मौसम प्रणालियों के एक साथ सक्रिय होने की वजह से हुई। मुख्य मॉनसूनी ट्रफ से बारिश के साथ पांच पश्चिमी विक्षोभ, ऊपरी और निचली वायुमंडलीय परतों में बने पांच चक्रवाती परिसंचरण और पांच निम्न दबाव की रेखाएं भी सक्रिय रहीं, जिन्होंने 20 अगस्त से 4 सितंबर के बीच हवा और बारिश को और बढ़ाया।
इसके अलावा, अरब सागर से आई असामान्य हवाओं ने नमी लेकर उत्तर भारत की ओर बढ़ते हुए बंगाल की खाड़ी में बने कुछ निम्न दबाव क्षेत्रों को धकेला। इससे क्षेत्र में चक्रवाती परिसंचरण बने और बारिश हुई। 21 से 27 अगस्त के बीच पंजाब के सभी 21 जिलों में सामान्य से अधिक या बहुत अधिक बारिश हुई यानी 20 फीसदी से ज्यादा अतिरिक्त बारिश दर्ज की गई। इसी दौरान हिमाचल प्रदेश के सभी 12 जिलों में भी सामान्य से अधिक या बहुत अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई।
जम्मू और कश्मीर के 20 जिलों में से 19 जिलों में भी सामान्य से अधिक या बहुत अधिक बारिश हुई। 28 अगस्त से 3 सितंबर के बीच तीनों राज्यों में स्थिति समान रही। इस दौरान पंजाब के 22, हिमाचल प्रदेश के 12 और जम्मू और कश्मीर के 18 जिलों में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई।
वहीं, 20 अगस्त को जब उत्तर-पश्चिम भारत में भारी बारिश शुरू हुई, पंजाब में कुल वर्षा में छह प्रतिशत की कमी थी जबकि हिमाचल प्रदेश को एक जून से 20 अगस्त के बीच औसत वर्षा मिली लेकिन यह औसत से 18 फीसदी अधिक थी। वहीं, जून से सात हफ्तों में हिमाचल प्रदेश के दो-तिहाई या अधिक जिलों में सामान्य से अधिक या बहुत अधिक वर्षा दर्ज की गई। इनमें से पांच हफ्ते 20 अगस्त से पहले के थे, जिससे राज्य के लिए सामान्य वर्षा का आंकड़ा बन गया। जम्मू और कश्मीर को 20 अगस्त तक सामान्य से पांच प्रतिशत कम वर्षा मिली थी। लेकिन 21 अगस्त को पंजाब में 200 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई। इस समय हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में ज्यादा बारिश नहीं हुई थी। मॉनसून ट्रफ का पश्चिमी छोर सामान्य स्थिति से दक्षिण में था, जहां आमतौर पर मध्य और दक्षिण भारत में बारिश होती है। 20 अगस्त को जम्मू डिविजन में एक पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय था, जिससे बारिश हो सकती थी। 22 अगस्त को आईएमडी ने तीनों राज्यों में ज्यादा बारिश दर्ज नहीं की।
24 अगस्त तक हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश शुरू हो गई, जिससे हिमाचल में 132 प्रतिशत और जम्मू-कश्मीर में 442 प्रतिशत अतिरिक्त वर्षा हुई। हिमाचल प्रदेश में रावी घाटी का चंबा जिला 177 प्रतिशत अधिक वर्षा से प्रभावित हुआ। ब्यास घाटी के कुल्लू और मंडी जिलों में बारिश औसत से 399 और 605 प्रतिशत ज्यादा हुई। सतलुज घाटी के शिमला और सोलन जिलों में 306 और 543 प्रतिशत अतिरिक्त वर्षा हुई। जम्मू-कश्मीर में रावी क्षेत्र के काठुआ जिले में 79 प्रतिशत और उधमपुर जिले में 363 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई।
27 अगस्त को समाप्त हुए हफ्ते में हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के सभी जिलों में सामान्य से अधिक या बहुत अधिक वर्षा हुई जहां से मुख्य नदियां या उनकी सहायक नदियां पंजाब में बहती हैं। हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में से 11 जिलों में कम से कम एक नदी या उसकी सहायक नदी बहती है। चंबा से रावी, कुल्लू, मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा से ब्यास और शिमला, सोलन, बिलासपुर, किन्नौर, लाहौल और स्पीति और ऊना से सतलुज बहती है।
21 से 27 अगस्त के बीच चंबा में 396 प्रतिशत अतिरिक्त वर्षा हुई। कुल्लू में 334 प्रतिशत, मंडी में 144 प्रतिशत, हमीरपुर में 158 प्रतिशत और कांगड़ा में 70 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई। वहीं, शिमला में 124 प्रतिशत, सोलन में 180 प्रतिशत, बिलासपुर में 258 प्रतिशत, किन्नौर में 64 प्रतिशत, लाहौल-स्पीति में 240 प्रतिशत और ऊना में 281 प्रतिशत अतिरिक्त वर्षा हुई। सप्ताह के अंत तक हिमाचल प्रदेश में कुल अतिरिक्त वर्षा 175 प्रतिशत रही। जम्मू और कश्मीर में रावी नदी कठुआ और उधमपुर जिलों से बहती है, जहां कठुआ में 265 प्रतिशत और उधमपुर में 146 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई।
इस हफ्ते यानी 21 से 27 अगस्त के दौरान पंजाब में बारिश और बढ़ गई। राज्य के 21 जिलों में बहुत अधिक बारिश और एक जिले में सामान्य से ज्यादा बारिश दर्ज की गई। पंजाब के ज्यादातर जिलों से कोई न कोई नदी बहती है या फिर नहर के जरिए किसी बड़ी नदी का पानी पहुंचता है। कई जिलों से एक से अधिक नदियां गुजरती हैं। मिसाल के तौर पर ब्यास और रावी नदियां गुरदासपुर, पठानकोट और तरनतारन से होकर गुजरती हैं। गुरदासपुर में इस अवधि में 738 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई, पठानकोट में 415 प्रतिशत और तरनतारन में 822 प्रतिशत ज्यादा, जो उस सप्ताह राज्य में दूसरा सबसे बड़ा इजाफा था। होशियारपुर और कपूरथला (जिनसे होकर ब्यास और सतलुज बहती हैं) में 220 और 285 प्रतिशत ज्यादा बारिश दर्ज की। ब्यास के नजदीक जालंधर में 432 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई। रावी से होकर गुजरने वाले अमृतसर में 367 प्रतिशत और सतलुज से गुजरने वाले सातों जिलों में सामान्य से बहुत अधिक बारिश दर्ज की गई। इनमें फिरोजपुर और लुधियाना में क्रमशः 683 और 436 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई। बड़ी नदियों के अलावा, मौसमी नदियां जैसे घग्गर भी पटियाला और संगरूर जिलों से गुजरती हैं और अत्यधिक बारिश होने पर बाढ़ का कारण बन सकती हैं। इस दौरान पटियाला में 118 प्रतिशत और संगरूर में 608 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई।
इस हफ्ते क्षेत्र में कई मौसम तंत्र सक्रिय रहे, जिन्होंने भारी वर्षा को जन्म दिया। तीन चक्रवातीय घुमावदार क्षेत्र बने। इनमें पहला 23 अगस्त को उत्तर मध्य प्रदेश और दक्षिण उत्तर प्रदेश में, दूसरा 23 और 24 अगस्त को पंजाब में और तीसरा 25 और 26 अगस्त को दक्षिण हरियाणा और उत्तरपूर्व राजस्थान में सक्रिय रहा। यही प्रणाली 27 अगस्त को दक्षिण पंजाब में सक्रिय रही। दो निम्न दाब रेखाएं भी बनीं, जिन्होंने बारिश को प्रभावित किया। पहली रेखा 25 अगस्त को दक्षिण हरियाणा से उत्तर पश्चिम बंगाल की खाड़ी तक बनी, जिसने वहां से नमी खींची। दूसरी रेखा 27 अगस्त को पंजाब के ऊपर सक्रिय चक्रवात से मध्यप्रदेश तक फैली। इसके अलावा, 24 अगस्त को उत्तरी पाकिस्तान में पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हुआ और 26 अगस्त तक असर डालता रहा। 27 अगस्त को एक और पश्चिमी विक्षोभ ने क्षेत्र को प्रभावित करना शुरू किया।
28 अगस्त से तीन सितंबर तक भी कई मौसम प्रणालियां सक्रिय रहीं, जिन्होंने पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भारी से अति भारी वर्षा कराई। हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई। पंजाब की स्थिति भी यही रही, बल्कि पिछले हफ्ते से भी ज्यादा वर्षा दर्ज की गई। जम्मू-कश्मीर के कठुआ ने 30 प्रतिशत और उधमपुर ने 520 प्रतिशत ज्यादा वर्षा दर्ज की, जिससे पंजाब में बाढ़ का खतरा और बढ़ गया क्योंकि इन दोनों जिलों से पंजाब में बाढ़ का पानी आ सकता है।
इस दौरान मॉनसूनी ट्रफ ज्यादातर दिनों में सक्रिय रहा और सात में से पांच दिन अपनी सामान्य स्थिति में था। 30 और 31 अगस्त को यह दक्षिण की ओर खिसक गया, जिससे बारिश कोंकण क्षेत्र, मध्य और दक्षिण भारत की ओर बढ़ गई। वहीं, बंगाल की खाड़ी में बने निम्न दबाव का असर 31 अगस्त को मध्य राजस्थान तक पहुंचा और एक सितंबर तक उत्तर-पश्चिम राजस्थान में छाया रहा। इसके बाद दो और तीन सितंबर को दक्षिण हरियाणा में भी एक चक्रवाती असर सक्रिय रहा।
इस हफ्ते तीन निम्न दबाव रेखाएं भी बनीं। पहली एक सितंबर को उत्तर-पश्चिम राजस्थान के परिसंचरण से झारखंड तक फैली और दूसरी बार दो सितंबर को कश्मीर से उत्तर-पश्चिम मध्यप्रदेश तक बनी। तीसरी प्रणाली तीन सितंबर को ऊपरी क्षोभमंडल में उत्तर पाकिस्तान के ऊपर बनी। 27 अगस्त को जो पश्चिमी विक्षोभ बना था, वह 31 अगस्त तक सक्रिय रहा। इसके बाद, दो सितंबर को उत्तर पाकिस्तान में एक और पश्चिमी विक्षोभ बना जिसने तीन सितंबर तक असर डाला। चार सितंबर को पंजाब के पास मॉनसून का 18वां पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो गया।
मौसम प्रणालियों के अलावा मानवीय कारणों ने भी पंजाब की बाढ़ को और विनाशकारी बना दिया। साउथ एशिया नेटवर्क ऑन बांध्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) से जुड़े हिमांशु ठक्कर कहते हैं, “पंजाब की बाढ़ में कई मानवजनित कारक भी जिम्मेदार हैं, जिनमें राज्य की बेहद कमजोर निकासी व्यवस्था, कई बांधों और तटबंधों का टूटना, बाढ़ क्षेत्र और जलाशयों पर अतिक्रमण और अंधाधुंध बालू खनन शामिल हैं।”
एक अहम वजह प्राकृतिक जल निकासी मार्गों का अवरुद्ध होना है। नदियों और धाराओं के बाढ़ मैदानों में गाद, रेत और पत्थरों का अत्यधिक जमाव उनकी जल ढोने की क्षमता घटा देता है। पंजाब के माइन्स एंड जियोलॉजी डिपार्टमेंट की 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नदियों में गाद, रेत और पत्थरों की अधिकता 2019 की बाढ़ का भी कारण बनी थी। पंजाब के जल संसाधन विभाग द्वारा जारी फ्लड प्रिपेयर्डनेस गाइडबुक 2024 में भी प्राकृतिक जल निकासी मार्गों में रुकावट, खासकर नालों के प्रवाह को बाधित करने वाले ढांचों को बाढ़ का प्रमुख कारण बताया गया है।
नीति आयोग की जनवरी 2021 में प्रकाशित “रिपोर्ट ऑफ द कमेटी कसंटीट्यूटेड फॉर फॉर्मुलेशन ऑफ स्ट्रैटजी फॉर फ्लड मैनेजमेंट वर्क्स इन इंटायर कंट्री एंड रिवर मैनेजमेंट एक्टीविटीज एंड वर्क्स रीलेटेड टू बॉर्डर एरियाज (2021-2026)” में कहा गया है कि सतही जल निकासी तब बाधित होती है जब प्राकृतिक या कृत्रिम निकासी प्रणालियां समय पर वर्षा का पानी बाहर निकालने में असमर्थ होती हैं। इससे जलभराव और क्षति होती है। रिपोर्ट में पाया गया कि यह समस्या विशेष रूप से पंजाब, आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल में गंभीर है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च एंड एनालिटिकल रिव्यूज में प्रकाशित अध्ययन “टेम्पोरल एनालिसिस ऑफ फ्लड इन पंजाब, इंडिया (1990-2010)” में अचानक भाखड़ा बांध से पानी छोड़े जाने, नदियों और नहरों के खराब प्रबंधन और तटबंधों के कमजोर होने को बाढ़ के मुख्य कारण बताया गया है। समय पर नदियों और नहरों की सफाई न होने से पानी की निकासी बाधित हो जाती है और छोटी धाराएं तट तोड़कर खेतों और गांवों को डुबो देती हैं। तटबंधों की मरम्मत न होने से अक्सर दरारें पड़ जाती हैं। 2005 की बाढ़ में रूपनगर जिले के किरतपुर साहिब ब्लॉक का बड़ा हिस्सा डूब गया क्योंकि लोटन नामक नदी पर बने बांध में दरारें आ गईं थीं। वहीं, 2007 में आनंदपुर साहिब में गंगा नदी पर बना रेलवे पुल का एक हिस्सा गिर गया। इसके कारण नहर का तटबंध टूट गया और 12 गांव डूब गए जबकि 2010 की बाढ़ में रूपनगर, पटियाला, संगरूर, मोगा और लुधियाना जिलों को तटबंध टूटने से भारी नुकसान उठाना पड़ा।
राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के निर्माण के दौरान प्राकृतिक जल निकासी को भी भारी उपेक्षा का शिकार बनाया गया। कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसद की समिति, जिसकी अध्यक्षता पूर्व पंजाब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कर रहे हैं उन्होंने दो सितंबर 2025 को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के अधिकारियों को इस लापरवाही पर तलब किया और दो महीने के भीतर उन पुलों और सड़कों पर रिपोर्ट मांगी, जिन्होंने पानी के प्राकृतिक बहाव को रोका है। समिति ने एनएचएआई अधिकारियों से राजमार्गों की योजना रिपोर्ट और जल निकासी व्यवस्था का ब्यौरा मांगा है। यह भी पाया गया है कि ऊंचे बने राजमार्गों ने खेतों की प्राकृतिक निकासी रोक दी है, जिससे खेत डूब गए और नदियां और बड़े क्षेत्र में फैल गईं।
गुरदासपुर से लोकसभा सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा कहते हैं, “गुरदासपुर में खासकर सिखों के धार्मिक स्थल करतारपुर कॉरिडोर क्षेत्र में बाढ़ की तीव्रता बढ़ने की एक बड़ी वजह यह है कि एनएचएआई ने राजमार्ग पर निकासी के लिए कल्वर्ट यानी पुलिया नहीं बनाए।” उन्होंने केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की है। 2023 की बाढ़ के दौरान जालंधर के गिद्दरपिंडी इलाके के लोगों ने फ्लड रोकू कमेटी के बैनर तले लोहियान-माखू हाईवे जाम कर दिया था। उनका आरोप था कि सतलुज का पानी उनके गांव में इसलिए घुसा क्योंकि राजमार्ग के पुल पर बने फाटक बंद कर दिए गए थे। इस साल की शुरुआत में लोक निर्माण विभाग की एक समिति ने सर्वे किया और पंजाब में राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और मंडी बोर्ड सड़कों पर ऐसे 346 स्थानों की पहचान की जहां जल निकासी बाधित हो रही थी। आलमी पंजाबी संगत नामक सामाजिक संगठन के संस्थापक गंगवीर सिंह राठौड़ बताते हैं कि पंजाब के अधिकांश राष्ट्रीय राजमार्ग उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की दिशा में बने हैं। यह राजमार्ग ऊंचाई पर बने होने के कारण पानी की दीवार की तरह काम करते हैं और पानी की निकासी रोक देते हैं।
पंजाब विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के सहायक प्रोफेसर सुच्चा सिंह ने 2018 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च एंड एनालिटिकल रिव्यूज में प्रकाशित “पंजाब फ्लड्स: सम लेसन्स लर्न्ड फॉर फ्यूचर फ्लड मैनेजमेंट” नामक अपने अध्ययन में लिखा है कि अगस्त 2013 की भारी बारिश के दौरान मुक्तसर जिले में नहर निकासी रुकने के कारण कुल 236 गांव डूब गए और 70,000 हेक्टेयर फसल क्षेत्र नष्ट हो गया।
वहीं, 2023 की बाढ़ का उदाहरण देते हुए राज्य सरकार की फ्लड प्रिपेयर्डनेस गाइडबुक 2024 में बताया गया है कि सतलुज नदी के पास एक गांव के लिए रेलवे पुल बड़ी समस्या बन गया था। पुल के नीचे जल निकासी के लिए एक मार्ग बनाया गया था, लेकिन उसकी चौड़ाई बहुत ज्यादा थी। लिहाजा जब नदी में आठ-नौ महीने तक पानी कम रहा तो उसमें गाद जमने लगी। इससे नदी का प्रवाह घट गया और जल मार्ग संकरा हो गया। 2023 में बारिश होने पर वही गाद पानी के प्रवाह को रोकने लगी और क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति गंभीर हो गई।
गाइडबुक ने नए ऊंचे राजमार्गों पर भी सवाल उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि एक्सप्रेसवे या ऊंचे राजमार्गों का निर्माण करने से पहले पानी के प्राकृतिक प्रवाह का सही अध्ययन नहीं किया गया और बरसात के मौसम में वर्षाजल की निकासी के लिए जरूरी निकासी मार्ग (कॉजवे) नहीं बनाए गए।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के जरिए 2018 में तैयार बाढ़ संवेदनशीलता सूचकांक में पंजाब को बाढ़ के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील बताया गया था। यह रैंकिंग 1950 से 2016 तक वास्तव में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों, बाढ़ के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों और बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में स्थित महानगरों और बड़े शहरों के आधार पर की गई। त्रिपाठी कहते हैं, “पिछले पांच-छह साल से बाढ़ एक नियमित घटना बन गई है। यह हर दो-तीन साल के अंतराल पर लौट आती है।” उन्हें बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति चिंता में डालती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि राज्य में बाढ़ को लेकर समझ में बड़ी कमी है और बहुत कम अध्ययन ही इस विषय पर किए गए हैं। इसका कारण है नदी से निकलने वाले पानी यानी स्ट्रीम फ्लो डेटा की कमी, जिसे केंद्रीय जल आयोग इकट्ठा करता है। यह डेटा खुले तौर पर उपलब्ध नहीं है। हैदराबाद स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च- सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राईलैंड की वैज्ञानिक शैलजा शर्मा कहती हैं, “हमें प्रायद्वीपीय भारत में बाढ़ की बेहतर समझ है।” वह बताती हैं कि शोधकर्ता शहरी बाढ़ का अध्ययन करने के लिए आईएमडी वर्षा आंकड़ों का इस्तेमाल करती हैं, जिससे वापसी अवधि यानी दो घटनाओं के बीच का औसत अंतराल निकाला जा सकता है। गगनदीप सिंह ज्यादा शोध की मांग करते हैं, खासकर इस बात पर कि हाइड्रोलॉजिकल मॉडल का इस्तेमाल कर वर्षा-अपवाह और नदी जलप्रवाह की परिस्थितियों का आकलन किया जाए ताकि उन क्षेत्रों की पहचान हो सके जहां असर पड़ने की संभावना है। आईआईटी कानपुर के कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी की सहायक प्रोफेसर नंदिता जे एस कहती हैं कि मिट्टी की नमी का वास्तविक समय पर आकलन, स्थल पर किए गए अवलोकनों और उपग्रह से मापी गई सतही मिट्टी की नमी की मदद से किया जा सकता है, जिससे किसी क्षेत्र की बाढ़ संभावना का अंदाजा लगाया जा सके।
आठ सितम्बर को पंजाब सरकार ने घोषणा की कि जिन किसानों की फसल बाढ़ से प्रभावित हुई है उन्हें प्रति एकड़ 20 हजार रुपए दिए जाएंगे (1 एकड़ बराबर 0.4 हेक्टेयर)। जिन परिवारों ने अपने सदस्य खोए हैं उन्हें चार लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी। सरकार ने यह भी कहा कि 15 नवम्बर तक नदी किनारे रहने वाले किसानों को अपने खेतों में जमी बालू निकालने और बेचने के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं होगी। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की प्रतिक्रिया काफी धीमी रही है। पंजाब और रावी नदी बेसिन के भूभाग पर शोध कर चुके पूर्व सेना अधिकारी के जे एस ढिल्लों कहते हैं, “सेना और स्थानीय प्रशासन की मौजूदगी के बावजूद 90 प्रतिशत राहत कार्य स्वयंसेवकों और आम नागरिकों द्वारा किया जा रहा है।” पटियाला के चमारु खेड़ा गांव के 53 वर्षीय किसान हरबस सिंह विरक कहते हैं कि उन्होंने बाढ़ में अपना राशन और मवेशियों का चारा खो दिया और गांव के ज्यादातर लोग इसी हालात में हैं। लेकिन सरकार की बजाय एक गुरुद्वारा उनकी मदद के लिए आगे आया है और लंगर शुरू किया है। विरक कहते हैं, “हमें खाना और चारा गुरुद्वारे से मिलता है।” मवेशियों के लिए अलग से चारा लंगर भी चलाए जा रहे हैं। जैसे जडमंगोली गांव के गुरुद्वारे में लोग अपने ट्रैक्टर लेकर आते हैं और उसमें चारा लादकर ले जाते हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के स्वयंसेवक सरनजीत सिंह कहते हैं “इन इलाकों में सरकार की कोई मदद नहीं पहुंची है, यहां सिर्फ गांववाले ही एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं।”