हर्षिल घाटी में पेड़ों पर निशाल लगा दिए गए हैं। यह फोटो नवीन जुयाल के वीडियो से क्रॉप किया गया है। 
जलवायु

धराली त्रासदी: एक और आपदा की चेतावनी को किया जा रहा है नजरअंदाज?

हर्षिल घाटी में छह किलोमीटर सड़क चौड़ीकरण के लिए करीब 7000 पेड़ काटे जाने की योजना पर सवाल उठ रहे हैं

Rajesh Dobriyal

5 अगस्त 2025 की धराली आपदा के बाद लोगों को फिर याद आने लगा कि धराली कस्बा खीर गंगा (खीर गाड़) के रास्ते ही नहीं, उसकी लाई गाद पर बसा था और यहां पहले भी आपदाएं आती रही हैं। वैज्ञानिकों की चेतावनियों को अनदेखा करने की कितनी बड़ी कीमत 5 तारीख को धराली को चुकानी पड़ी है इसका ठीक-ठीक हिसाब लगने में वक्त लगेगा। इसके बावजूद हर्षिल में एक और आपदा की वैज्ञानिक चेतावनी को नजरअंदाज किया जा रहा है, जो भविष्य में और बड़ी आपदा की वजह बन सकता है।

धराली आपदा के बाद वरिष्ठ भूविज्ञानी प्रोफेसर नवीन जुयाल का 2023 में बनाया एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उन्होंने चेतावनी दी थी कि धराली एक टाइम बम पर बैठा है जो कभी भी फट सकता है। उनके अनुसार जो आपदा आई है वह अवश्यंभावी थी और यह हिमालय की नदियों की समझ न होने, हिमालय की प्रकृति से छेड़छाड़ की वजह से आई है।

इसी वीडियो में प्रोफ़ेसर जुयाल हर्षिल घाटी में छह किलोमीटर सड़क चौड़ीकरण के लिए करीब 7,000 पेड़ काटे जाने की योजना को लेकर भी चेतावनी देते हैं। वह कहते हैं कि झाला-जांगला की रोड के जंगल हिमस्खलन (एवलांच) की गाद पर बने हैं। यहां सर्दियों में काफी हिमस्खलन होते हैं जो पेड़ों के कारण ये रुक जाते हैं और उनकी जड़ें इस ढलान को स्थिर करती हैं। अगर ये पेड़ काटे गए तो पूरा पहाड़ अस्थिर हो जाएगा।

सड़क चौड़ीकरण प्रोजेक्ट

आइए सबसे पहले समझते हैं कि ये सड़क चौड़ीकरण प्रोजेक्ट है क्या...

ये प्रोजेक्ट भारत सरकार के महत्वाकांक्षी ऑल वेदर रोड परियोजना का हिस्सा है। इसके पर्यावरणीय प्रभाव पर अध्ययन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जाने-माने पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी भी बनाई थी। प्रोफेसर नवीन जुयाल भी इसके सदस्य थे।

इस कमेटी ने हर्षिल घाटी में देवदार के पेड़ न काटे जाने की सिफ़ारिश भी की थी लेकिन इस सड़क के सामरिक महत्व को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सड़क चौड़ीकरण और उसके लिए पेड़ काटे जाने को मंज़ूरी दे दी थी। वन विभाग के अनुसार इस प्रोजेक्ट के तहत 6800 पेड़ काटे जाने हैं।

बीआरओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर डाउन टू अर्थ के साथ इस प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारी साझा की। वह बताते हैं कि गंगोत्री से उत्तरकाशी तक सड़क चौड़ीकरण प्रोजेक्ट को पांच हिस्सों में बांटा गया है।

पहला है गंगोत्री से लेकर झाला, दूसरा है झाला से सुक्कीटॉप को बाइपास करके सामने वाले पहाड़ से गंगनानी तक आना क्योंकि सुक्कीटॉप खुद ही एक सिंकिंग एरिया है, तीसरा हिस्सा गंगनानी से हिना तक का है, चौथा हिना से तेकला तक है। इसमें नेताला स्लाइड या सिंकिंग एरिया को बाइपास करके तेकला तक जाना है, और पांचवां है तेकला से बड़ेथी चुंगी तक।

बीआरओ अधिकारी के अनुसार इनमें से तीन प्रोजेक्ट पहले से ही अप्रूव हैं। पहला उत्तरकाशी का टाउनशिप एरिया है, दूसरा जो नताला को बाइपास कर रहा है और तीसरा गंगोत्री से झाला तक. इसमें गंगोत्री से भैरों घाटी तक पहले से ही पर्याप्त चौड़ी सड़क है, उसमें कोई पेड़ नहीं कटना है। भैरों घाटी से झाला ब्रिज तक पेड़ कटने हैं।

कम काटेंगे, ट्रांस्लोकेट करेंगे

बीआरओ के यह अधिकारी कहते हैं कि जब फॉरेस्ट क्लियरेंस की बात हो रही थी तब यही कहा गया था कि मिनिमम कटिंग की जाएगी। वन विभाग की ओर से यह निर्देश दिए गए थे कि पांच-पांच किलोमीटर के एरिया में री-सर्वे करेंगे और जो मिनिमम कटिंग करनी होगी, वही करेंगे। यानी कि जो अभी 6800 पेड़ों पर काटने के लिए निशान लगाए गए हैं, ज़रूरी नहीं कि वह सभी कटें। वह कम हो सकते हैं।

उनके मुताबिक इन 6800 पेड़ों में से जो हमारी पहुंच में हैं उन्हें देखिए तो वह बहुत विकसित या पुराने पेड़ नहीं हैं। वह 10 से 20 की परिधि वाले पेड़ हैं। उसमें भी फैसला यह हुआ है कि वन विभाग बोल रहा था कि दो 0 से 10 या 10 से 20 वाले पेड़ हैं उन्हें कहीं ट्रांस्लोकेट किया जाएगा। वन विभाग का दावा है कि ट्रांस्लोकेशन में बड़े वाले पेड़ 25 फ़ीसदी सर्वाइव कर जाते हैं और छोटे वालों के सर्वाइवल की संभावना और रेट बेहतर होता है।

हिमस्खलन को थामते हैं ये पेड़

दो साल पहले प्रोफ़सर जुयाल अपने एक साथी के साथ हर्षिल घाटी गए थे। तब उन्होंने वह वीडियो अपने यूट्यूब चैनल में शेयर किया था जो धराली आपदा की चेतावनी की वजह से हाल ही में वायरल हुआ है।

इसमें वह कहते हैं, “इकोसेंसिटिव ज़ो इस क्षेत्र में झाला और जांगला के बीच ट्रैफिक का काफी जमाव रहता है। इस 6 किलोमीटर के स्ट्रेच में लगभग 6000 पेड़ों को काटने की बात कही जा रही है, जिनका निशान पहले ही लग चुका है। हम यह विकल्प खोजने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या बिना उन पेड़ों को काटे रोड को चौड़ा किया जा सकता है।”

वह आगे कहते हैं, “झाला-जांगला की रोड के बाईं ओर काफ़ी तीखी नॉर्थ फेसिंग ढलान है। इसमें जो पत्थर हैं ये हिमस्खलन का मलबा है। यहीं काटने के लिए निशान लगाए हुए पेड़ भी दिख रहे हैं। हिमस्खलन का मलबा यह बताता है कि ये पूरा ढलान हिमस्खलन-प्रवण है, यानी कि यहां सर्दियों में काफी हिमस्खलन होते हैं।”

प्रोफ़ेसर जुयाल चेतावनी देते हैं, “इन पेड़ों के कारण ये रुक जाते हैं और उनकी जड़ें इस ढलान को स्थिर करती हैं। अगर इन पेड़ों को काटा गया तो यह पूरा पहाड़ ही अस्थिर हो सकता है।”  

“हिमालय से छेड़छाड़ पूरी तरह से रोक देनी चाहिए”

सिक्किम यूनिवर्सिटी में वरिष्ठ भूविज्ञानी डॉक्टर विक्रम गुप्ता भी एसपीसी के सदस्य रहे हैं। वह न सिर्फ़ प्रोफ़ेसर जुयाल की बात से सहमत हैं बल्कि कहते हैं कि सिर्फ़ पेड़ कटान पर रोक नहीं लगनी चाहिए बल्कि हिमालयी क्षेत्र में सभी तरह के निर्माण कार्यों को पूरी तरह रोक देना चाहिए।

अगस्त 2023 में सिक्किम यूनिवर्सिटी आने से पहले उन्होंने देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में लंबे समय तक काम किया है। 2022 में वाडिया के लिए किए एक अध्ययन में उन्होंने पाया था कि उत्तराखंड का 51% हिस्सा 'उच्च' और 'अत्यधिक' भूस्खलन-संवेदी क्षेत्रों में आता है।

इस अध्ययन में उन्होंने कहा था कि जलविद्युत परियोजनाओं, सुरंगों, बांधों, पुलों, नई सड़कों आदि के निर्माण के रूप में पहाड़ों पर इंसानी हस्तक्षेप बहुत अधिक है। इनमें से कई गतिविधियों ने राज्य की भूवैज्ञानिक स्थितियों को प्रभावित किया है।

शोधपत्र में चेतावनी दी गई थी कि “आम तौर पर, प्राकृतिक कोण से कोई भी विचलन ढलानों में अस्थिरता पैदा कर सकता है, और अगर तुरंत उपाय न किए गए तो ढलान या तो तुरंत या समय के साथ टूट सकते हैं।"

धराली आपदा के बाद प्रोफ़ेसर जुयाल के पेड़ न काटने की बात को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर गुप्ता कहते हैं, “प्रोफ़ेसर जुयाल सही कहते हैं कि पेड़ भूमि की धारण क्षमता को बढ़ाते हैं और ऊपर से कोई भी पत्थर गिरता या लैंड स्लाइड होता है उसे रोकते हैं।”

डॉक्टर गुप्ता कहते हैं, “अब तो यह बहुत ज़्यादा हो गया है… हिमाचल में हुआ, सिक्किम में हुआ और अब यहां (उत्तराखंड में) हो गया. आज के परिप्रेक्ष्य में मुझे लगता है कि सारी कंस्ट्रक्शन एक्टिविटीज को रोक देना चाहिए क्योंकि पिछले कुछ समय में एक्सट्रीम इवेंट्स बहुत ज़्यादा बढ़ गए हैं।”

“जलवायु परिवर्तन के साथ इनके और बढ़ने की आशंका है इसलिए अब तो वेट एंड वॉच करना चाहिए, कन्सट्रक्शन एक्टिविटीज़ बिल्कुल ज़ीरो कर देनी चाहिए. नेचर को आप छोड़ दो, बहुत देख लिया है हमने.”

एलिवेटेड रोड… संभव नहीं  

प्रोफ़ेसर नवीन जुयाल जानते हैं कि चीन से ख़तरे को देखते हुए सीमांत इलाके में चौड़ी सड़कें ज़रूरी हैं लेकिन उनका मानना है कि ऐसा पेड़ काटे बिना भी हो सकता है। वह सुझाव देते हैं, “पहाड़ को अस्थिर होने से बचाने के लिए ज़रूरी है कि इस ढलान को न छेड़ा जाए। इसके बजाय, हमें नदी की तरफ जाकर एक एलिवेटेड कॉरिडोर बनाकर रोड को चौड़ा करना चाहिए।”

प्रोफ़ेसर जुयाल की बात डाउन टू अर्थ ने बीआरओ अधिकारी के सामने रखी लेकिन वह इससे सहमत नहीं हुए. उनका कहना था कि इसके लिए 90-100 मीटर ऊंचा पुल या एलिवेटेड रोड बनानी पड़ेगी जो असंभव है।

वह यह भी कहते हैं कि इस तरह का कोई प्रस्ताव बीआरओ के पास आया भी नहीं है। बीच में एक यह प्रपोज़ल चला था कि जो सामने वाली पहाड़ी है, मुखबा वाली उससे सड़क को जोड़ा जाए. जब डीपीआर बनी थी तो उस एरिया को भी लिया गया था लेकिन उस एरिया में 9 से 10 स्लाइड प्रोन एरिया हैं। यहां झाला से भैरों घाटी तक स्लाइड प्रोन एरिया कोई भी नहीं है।

हालांकि वह मानते हैं कि दो जगहें ऐसी हैं जहां हिमस्खलन होते हैं। वह कहते हैं कि छह साल बाद किलोमीटर 15 और किलोमीटर 22 पर दो एवलॉंच आए थे वरना वहां एवलॉंच नहीं आए.

बता दें कि 4 अक्टूबर 2022 को उत्तरकाशी के द्रौपदी का डांडा-2 चोटी पर हुए एक बड़े हिमस्खलन में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) के 26 पर्वतारोहियों की मृत्यु हो गई थी. इससे पहले 2021 में उत्तरकाशी के लमखागा चितकुल ट्रैक पर और त्रिशूल चोटी पर कई हिमस्खलन हुए थे जिनमें कई लोगों की जान चली गई थी.

प्रोफ़ेसर जुयाल कहते हैं, “वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन का असर ऊंचाई पर ज़्यादा होगा. विशेषकर हिमालय में ऊंचाई के अनुसार तापमान बढ़ेगा. यानी कि ऊंचे इलाकों में तापमान निचले इलाकों की तुलना में ज़्यादा बढ़़ने वाला है। इससे ये ग्लेशियर काफी सक्रिय होंगे और बर्फ के चट्टान वाले हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ेंगी, जिससे रोंटी गाड़ (ऋषि गंगा आपदा और अब धराली) जैसी बाढ़ आने की संभावना है।”

और जब ये हिमस्खलन होंगे तो इस बात से बहुत ज़्यादा फ़र्क पड़ेगा कि उनका प्रभाव कम करने के लिए नीचे देवदार के जंगल हैं या नहीं।