भीषण सूखे से जन्मी तबाही सिर्फ फसलों और पानी की किल्लत तक सीमित नहीं, इसका गहरा असर युवा बच्चियों के जीवन पर भी पड़ रहा है। कमजोर देशों में पानी की तलाश में मजबूर ये बच्चियां, बढ़ते सामाजिक संकट और आर्थिक तंगी के बीच यौन हिंसा का शिकार बन रही हैं।
इस बारे में किए एक नए अंतराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि लंबे और गंभीर सूखे का सीधा संबंध युवा बच्चियों के खिलाफ यौन हिंसा के बढ़ते मामलों से जुड़ा है। यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया के कर्टिन विश्वविद्यालय और किड्स रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल प्लोस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन में पता चला है कि जो किशोरियां 8 से 43 महीनों तक पड़े भीषण सूखे से प्रभावित रही, उनके खिलाफ यौन हिंसा की आशंका 21 फीसदी अधिक पाई गई। सूखे के गंभीर दौर में यौन हिंसा के मामले और अधिक होते हैं। देखा जाए तो यह आंकड़े सूखे की तपती जमीन से कहीं अधिक, इंसान के जीवन में घुड़ती पीड़ा और टूटती उम्मीदों की कहानी बयां करते हैं।
अध्ययन 14 देशों की 35,000 से अधिक युवा बच्चियों के सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों और उनके विश्लेषण पर आधारित है। इनमें दक्षिण अमेरिका, उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी यूरोप के ग्रामीण इलाके शामिल हैं। इन बच्चियों की आयु 13 से 24 वर्ष के बीच थी। बता दें कि यह आंकड़े 2013 से 2019 के बीच एकत्र किए गए थे।
सूखा क्यों बन रहा हिंसा की जमीन?
शोधकर्ताओं के मुताबिक, लंबे समय से चल रहे सूखे की वजह से भोजन, पानी की किल्लत के साथ आर्थिक तंगी पैदा हो जाती है। इसकी वजह से लोगों को पलायन जैसी परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ता है। ऐसे में महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा और गरिमा खतरे में पड़ जाती है।
जलवायु परिवर्तन के कारण महिलाओं को पानी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, कभी-कभी उन्हें पलायन भी करना पड़ता है, और सीमित संसाधनों को बचाने के लिए बाल विवाह को बढ़ावा मिलता है, ये सब मिलकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे पैदा करते हैं। इसके साथ ही सामुदायिक तनाव इस खतरे को और बढ़ा देते हैं।
अध्ययन में पाया गया है कि लंबे समय तक चलने वाले भीषण सूखे की स्थिति में यौन हिंसा का खतरा 21 फीसदी तक बढ़ जाता है। यहां तक कि कम अवधि के लिए पड़े सूखे भी इस खतरे को कम नहीं करते।
अध्ययन में यह भी चेताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते भविष्य में सूखे की घटनाएं और बढ़ेंगी, जिससे महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ हिंसा का खतरा और बढ़ जाएगा।
शोधकर्ताओं ने इस बात की भी पुष्टि की है कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग पर्यावरण से जुड़े तनाव से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, क्योंकि सूखे से उनकी जीविका और संसाधनों पर विपरीत असर पड़ता है। वहीं पानी के लिए दूर-दराज के स्रोतों पर निर्भरता, पलायन की मजबूरी और संसाधनों की बचत के लिए जल्द शादी जैसे कारण यौन हिंसा के जोखिम को बढ़ा देते हैं।
जलवायु नीतियों में हो महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी
पहले के अध्ययन भी यह संकेत देते हैं कि प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, तूफान और भू-स्खलन के बाद घरेलू हिंसा के मामले बढ़ जाते हैं। अक्टूबर 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि ऐसी घटनाओं के दो साल बाद साथी द्वारा की गई हिंसा में वृद्धि होती है।
इंडोनेशिया और पेरू में किए एक अन्य अध्ययन में महिलाओं ने पानी की कमी को भी हिंसा का एक रूप बताया है, जो उनके यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। साथ ही इससे सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी कमजोर होती है। ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि सूखे के कारण महिलाओं पर पड़ने वाले नुकसान को समझने के लिए हिंसा की परिभाषा को और व्यापक रूप से देखने की जरूरत है।
जर्नल प्लोस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन यह भी दर्शाता है कि यौन हिंसा महज करीबी संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि सूखे के कारण यह सामाजिक स्तर पर भी बढ़ सकती है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने जोर दिया है कि सूखे से होने वाले पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभावों के साथ-साथ सामाजिक और स्वास्थ्य से जुड़े नुकसान से निपटने के लिए ठोस और व्यापक कदम उठाने की जरुरत है।
शोधकर्ताओं ने सरकार और नीति-निर्माताओं से आग्रह किया है कि वे ऐसी जलवायु नीतियां अपनाएं जो सामाजिक चुनौतियों को समझते हुए महिलाओं और बच्चियों के प्रति भी संवेदनशील हों, ताकि पर्यावरणीय संकटों के साथ-साथ उन पर पड़ने वाले सामाजिक खतरों का भी प्रभावी ढंग से सामना किया जा सके।