विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि एशिया वैश्विक औसत के मुकाबले करीब दो गुना तेजी से गर्म हो रहा है। इसका असर सिर्फ मौसम पर ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और समाज पर भी गंभीर रूप से पड़ रहा है।
"स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया 2024" नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक 2024 एशिया के इतिहास का सबसे गर्म वर्ष रहा जब औसत तापमान 1991 से 2020 के औसत से करीब 1.04 डिग्री सेल्सियस अधिक था। वहीं कुछ डेटासेट के अनुसार 2024 एशिया के लिए दूसरा सबसे गर्म साल था।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी पुष्टि की है कि साल 2024 भारत के लिए भी अब तक का सबसे गर्म साल साबित हुआ है।
यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा था कि 2024 में एशिया के कई हिस्सों में भीषण गर्मी और लू का कहर दर्ज किया गया। अप्रैल से नवंबर के बीच पूर्वी एशिया में लू ने जनजीवन को बुरी तरह त्रस्त कर दिया। जापान, चीन और दक्षिण कोरिया में लगातार महीनों तक रिकॉर्ड तोड़ तापमान बना रहा।
इसी तरह दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया और मध्य पूर्व में भी लू का कहर देखा गया। म्यांमार में तो 48.2 डिग्री सेल्सियस के साथ तापमान ने एक नया रिकॉर्ड भी बनाया। 2024 में भारत के कई हिस्सों को भी भीषण लू का सामना करना पड़ा। इससे देशभर में 450 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।
इसी तरह 2024 के दौरान भारत में बिजली गिरने की घटनाओं में करीब 1,300 लोगों की जान चली गई। 10 जुलाई को उत्तर भारत में ऐसी ही एक भीषण घटना में 72 लोगों की मौत हो गई। यह हादसा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और झारखंड में हुआ।
ऐसा नहीं है कि एशिया में बढ़ते तापमान का असर महज जमीनी इलाकों तक ही सीमित था, इस दौरान समुद्रों की सतह का तापमान भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। आंकड़ों पर नजर डालें तो एशिया में समुद्र वैश्विक औसत से करीब दोगुनी तेजी से गर्म हो रहे हैं। बढ़ते तापमान का यह असर खासकर उत्तरी अरब सागर और प्रशांत महासागर में कहीं ज्यादा स्पष्ट है। एशिया में समुद्र की सतह का तापमान हर दशक औसतन 0.24 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है, जो वैश्विक औसत 0.13 डिग्री सेल्सियस से करीब दोगुना है।
इसका सीधा असर भारत में बारिश के पैटर्न पर भी पड़ रहा है।
हिमालय पर तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
रिपोर्ट से पता चला है कि अगस्त से सितंबर 2024 के बीच करीब 1.5 करोड़ वर्ग किलोमीटर का समुद्री क्षेत्र हीटवेव की चपेट में रहा। यह धरती की कुल महासागरीय सतह का दसवां हिस्सा है।
यह 1993 से रिकॉर्ड की गई सबसे बड़ी घटना थी। खासकर उत्तरी हिंद महासागर, जापान के पास के समुद्र, येलो सी और पूर्वी चीन सागर पर इसका ज्यादा असर पड़ा।
समुद्रों का बढ़ता तापमान अलग-अलग रूपों अपने प्रभाव दिखा रहा है। इसी का नतीजा है कि समुद्रों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। रुझानों पर नजर डालें तो 1993 से नवंबर 2024 के बीच भारत और प्रशांत महासागर के किनारों पर स्थित एशियाई तटों पर समुद्र के स्तर में वृद्धि वैश्विक औसत से अधिक रही। इसकी वजह से निचले तटीय इलाकों में बाढ़ और विस्थापन का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ गया।
एशिया में बढ़ते तापमान से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी बढ़ रही है। सर्दियों में बर्फबारी की कमी और भीषण गर्मी ने मध्य हिमालय और तियान शान में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार को बढ़ा दिया है। इन पर्वत श्रृंखलाओं में 24 में से 23 ग्लेशियरों में जमा बर्फ में गिरावट दर्ज की गई। इस पिघलती बर्फ के साथ बाढ़, हिमनद झीलों में विस्फोट और भूस्खलन जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ गया है। इतना ही नहीं तेजी से पिघलते ग्लेशियर इन क्षेत्रों में जल सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं।
चरम मौसमी घटनाओं से त्रस्त रहा एशिया
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि मध्य एशिया ने पिछले 70 सालों में सबसे भयंकर बाढ़ का सामना किया। वहीं संयुक्त अरब अमीरात में 24 घंटे में 259.5 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड दर्ज की गई, जोकि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। देखा जाए तो ये 1949 से अब तक की सबसे गंभीर बारिश से जुड़ी घटनाओं में से एक है।
साल का सबसे शक्तिशाली चक्रवात यागी वियतनाम, फिलीपींस, थाईलैंड, म्यांमार और चीन में भारी नुकसान और जान-माल की हानि लेकर आया। मध्य एशिया, खासकर कजाकिस्तान और दक्षिणी रूस में तेजी से पिघलती बर्फ और रिकॉर्ड तोड़ बारिश के चलते पिछले 70 वर्षों की सबसे भयंकर बाढ़ आई, जिससे 1,18,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजना पड़ा।
इसी तरह 26 मई 2024 को भीषण चक्रवाती तूफान ‘रेमल’ ने बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल के मोंगला और खेपुपारा तटों पर दस्तक दी। बांग्लादेश में 27 मई को हवा की अधिकतम रफ्तार 111 किलोमीटर प्रति घंटा रिकॉर्ड की गई। तेज बारिश और तूफानी लहरों के कारण तटीय जिलों में करीब 2.5 मीटर तक बाढ़ आ गई।
ऐसा ही कुछ चक्रवाती तूफान 'फेंगल' के मामले में भी देखने को मिला जो 30 नवंबर को भारत के तट से टकराने से पहले श्रीलंका के पास से गुजरा था। इसकी वजह से श्रीलंका में भारी बारिश, तेज हवाएं, आंधी और बिजली गिरने से बाढ़, भूस्खलन और कई मौसम से जुड़ी घटनाएं दर्ज की गई।
भारत में 30 जुलाई को उत्तर केरल में भारी बारिश के बाद भूस्खलन की बड़ी घटनाएं दर्ज की गई। वहां 48 घंटों में 500 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई। इन घटनाओं ने 350 से अधिक जिंदगियों को निगल लिया।
सितंबर के अंत में नेपाल में रिकॉर्ड तोड़ बारिश से भारी बाढ़ की स्थिति बन गई। इस बाढ़ में कम से कम 246 लोग मारे गए और करीब 9.4 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। हालांकि समय रहते की गई तैयारी और सहायता से 1,30,000 से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकी और स्वास्थ्य पर मंडराते जोखिम को कम करने में सफलता मिली।
वहीं, चीन में सूखे ने करीब 48 लाख लोगों को प्रभावित किया। इस सूखे से 3,35,200 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली फसल बर्बाद हो गई और करीब 2.89 अरब चीनी युआन (40 करोड़ डॉलर) का आर्थिक नुकसान हुआ।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2024 के दौरान भारत में मानसून सामान्य समय पर शुरू हुआ। इस दौरान पूरे देश में औसत मानसूनी बारिश 1971 से 2020 के सामान्य औसत का 108 फीसदी रही।
डब्ल्यूएमओ की महासचिव सेलेस्टे साउलो का इस बारे में कहना है, “जलवायु परिवर्तन के ये संकेत समाज, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के लिए बड़ी चेतावनी हैं। ऐसे में मौसम संबंधी सेवाएं और समय रहते चेतावनी देने की व्यवस्था अब पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गई है।”
रिपोर्ट में नेपाल के उदाहरण को सराहा गया, जहां समय रहते चेतावनी और तैयारी से 1.3 लाख लोगों के जीवन को बचाया जा सका। देखा जाए तो एशिया में बदलती जलवायु की मार विकराल रूप लेती जा रही है। ऐसे में समय रहते कदम उठाना अब जीवन और मृत्यु का सवाल बन गया है।