एक नए वैश्विक अध्ययन में पता चला है कि दुनिया भर के जंगलों, घास के मैदानों और अन्य प्राकृतिक क्षेत्रों को पहले के अनुमान से कहीं कम मात्रा में नया नाइट्रोजन मिल रहा है। भले ही हमें यह उतना महत्वपूर्ण न लगे लेकिन यह कमी प्रकृति की जलवायु परिवर्तन को थामने की क्षमता को कमजोर कर सकती है, क्योंकि पौधों को अपने विकास और वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने के लिए नाइट्रोजन की जरूरत होती है।
रुझानों से पता चला है कि प्राकृतिक क्षेत्रों में होने वाले नाइट्रोजन स्थिरीकरण की मात्रा सालाना करीब 65 टेराग्राम है, जो पिछले अनुमान से कम है। बता दें कि 1999 में किए एक अध्ययन में जहां नाइट्रोजन स्थिरीकरण की यह मात्रा 195 टेराग्राम प्रति वर्ष आंकी गई थी। वहीं 2020 में किए एक अन्य अध्ययन में इसे 88 टेराग्राम प्रति वर्ष आंका गया था।
देखा जाए तो इस कमी से प्रकृति की कार्बन सोखने की क्षमता कमजोर पड़ सकती है, जिससे जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में मुश्किल हो सकती है। वहीं दूसरी तरफ कृषि क्षेत्रों में जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण में वृद्धि हो रही है। यह बढ़ोतरी जमीन, हवा और पानी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा सकती है।
यह अध्ययन ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि प्राकृतिक क्षेत्रों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण के आंकड़े गलत सैंपलिंग की वजह से बढ़ा-चढ़ाकर आंके गए थे। शोध में जिन जगहों से माप लिए गए, वहां नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीव वैश्विक औसत की तुलना में 17 गुना अधिक पाए गए, जिससे पूरे अनुमान में गड़बड़ी आ गई।
क्यों है नाइट्रोजन इतनी महत्वपूर्ण?
बता दें कि नाइट्रोजन पृथ्वी के वायुमंडल का तीन-चौथाई से ज्यादा हिस्सा है। यह जीवन के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन वातावरण में यह गैस रूप में होती है जिसकी वजह से पौधों सहित ज्यादातर जीव इसका सीधे उपयोग नहीं कर पाते।
इसलिए, कुछ विशेष बैक्टीरिया और सूक्ष्म जीव इस नाइट्रोजन को स्थिर (फिक्स) करके उसे पौधों के लिए उपयोगी बनाते हैं। इसी जैविक-रासायनिक प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं। यह बैक्टीरिया वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन गैस को अमोनिया जैसे रूपों में बदल देते हैं, जिससे पौधे प्रोटीन और क्लोरोफिल बना पाते हैं। यह क्लोरोफिल पत्तों का हरा रंग होता है और यह प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) में मदद करता है, जिससे पौधे वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर अपना भोजन बनाते हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में नाइट्रोजन स्थिरीकरण मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और पौधों की वृद्धि में मदद करता है, जिससे कार्बन भंडारण भी बढ़ता है।
शोध के मुताबिक, लेकिन यदि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में नाइट्रोजन की आपूर्ति सोची गई मात्रा से कम है, तो उनकी कार्बन स्टोरेज क्षमता भी पहले के अनुमान से कम हो सकती है। यानी, जलवायु परिवर्तन से निपटने में इन क्षेत्रों की भूमिका सीमित हो सकती है।
कृषि में बढ़ा नाइट्रोजन स्थिरीकरण
जहां प्राकृतिक वातावरण में नाइट्रोजन कम हो रही है, वहीं कृषि में सोयाबीन और अन्य दलहन फसलें, जो नाइट्रोजन फिक्स करती हैं, तेजी से अपनाई जा रही हैं। ये फसलें खाद्य उत्पादन के लिए जरूरी हैं और रासायनिक खाद के मुकाबले पर्यावरण के लिए बेहतर मानी जाती हैं।
यह एक तरफ जहां अच्छा है वहीं चिंता का विषय भी बन रहा है, क्योंकि उत्पादन से लेकर खाने की बर्बादी तक पूरी प्रक्रिया में होने वाला फूड वेस्ट, नाइट्रोजन प्रदूषण का एक बड़ा कारण बन गया है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली फसलों को फसल चक्र में शामिल करना मिट्टी की सेहत को लंबे समय तक बेहतर बनाए रख सकता है। साथ ही यह रासायनिक उर्वरकों से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम कर सकता है।
अध्ययन के मुताबिक कृषि से होने वाली नाइट्रोजन स्थिरीकरण की वजह से जमीन में मिलने वाली कुल नाइट्रोजन प्राकृतिक मात्रा से 64 फीसदी अधिक हो गई है। वहीं यदि सभी स्रोतों जैसे कृषि, उर्वरक, वायुमंडल आदि से जमीन में आने वाली कुल नाइट्रोजन को देखें, तो यह औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में 60 फीसदी अधिक हो गई है।
क्या है चिंता का विषय?
लेकिन अगर मिट्टी में नाइट्रोजन जरूरत से ज्यादा हो जाए, तो पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ सकता है। अतिरिक्त नाइट्रोजन भूजल में मिल सकता है या नदियों-झीलों को प्रदूषित कर सकता है, जिससे शैवाल की अधिकता (एल्गी ब्लूम) हो सकती है। इससे जलीय जीवन को नुकसान होता है।
इसके साथ ही ज्यादा नाइट्रोजन, नाइट्रस ऑक्साइड में बदल सकती है, जो एक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस है। इसके अलावा, अत्यधिक नाइट्रोजन तेजी से बढ़ने वाले आक्रामक पौधों को बढ़ावा देता है, जो स्थानीय प्रजातियों को दबा देते हैं और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक कृषि क्षेत्र में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की अधिकता एक जटिल मुद्दा है। इससे फायदा जरूर होता है, लेकिन जब इसके साथ कृत्रिम नाइट्रोजन उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है, तो यह नाइट्रोजन प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाता है।
ऐसे में वैज्ञानिकों का सुझाव है जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण की निगरानी लगातार की जानी चाहिए। फसलों के सही चक्र को अपनाकर नाइट्रोजन के स्तर को संतुलित किया जा सकता है। इसके साथ ही भोजन की बर्बादी को कम कर, नाइट्रोजन प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
यह संतुलन बेहद जरुरी है क्योंकि जहां नाइट्रोजन की कमी से जलवायु संरक्षण की क्षमता घटती है, वहीं अधिकता पर्यावरण के लिए जहर बन सकती है।