एक नए शोध में कहा गया है कि दुनिया के अंतिम प्राचीन पारिस्थितिक तंत्रों में से एक, अंटार्कटिक द्वीप के लगभग एक चौथाई ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के कारण पिघल गए हैं। इस खोज ने वैज्ञानिकों को जलवायु पर कार्रवाई करने का आह्वान करने पर मजबूर कर दिया है।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि इसका दक्षिण-पश्चिम में स्थित उप-अंटार्कटिक द्वीप व हर्ड द्वीप की जैव विविधता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। हर्ड द्वीप अंटार्कटिका से लगभग 1,700 किलोमीटर उत्तर में स्थित एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
मोनाश विश्वविद्यालय की अगुवाई में किए गए शोध में पाया गया कि 1947 से अब तक लगभग 64 वर्ग किलोमीटर या 23.1 फीसदी बर्फीला हिस्सा नष्ट हो चुका है। शोध में कहा गया है कि इस दूरस्थ वातावरण का अध्ययन इस बारे में बहुत कुछ बता सकता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे ग्रह के बाकी हिस्से कैसे प्रभावित हो रहे हैं।
हालांकि हर्ड द्वीप पृथ्वी पर सबसे दूर वाली जगह है, फिर भी इसे जलवायु में बदलाव के गंभीर परिणाम भुगतने पड़े हैं, इसके पीछे का कारण निश्चित रूप से 20वीं और 21वीं सदी में बढ़ते ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है।
दक्षिणी महासागर में इस द्वीप का स्थान इसे वैश्विक जलवायु प्रणाली का एक अहम हिस्सा और ग्रह के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक बनाता है, इसलिए जो बदलाव दिखाई दे रहे हैं, वे वास्तव में एक स्पष्ट और चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि दुर्गम भू-भाग तक पहुंचने और उसे पार करने की चुनौतियों के कारण हर्ड द्वीप के अधिकतर इलाकों का अध्ययन कम ही किया जा सका है, इसलिए हमने द्वीप का अध्ययन करने के लिए 1947 के स्थलाकृतिक मानचित्रों और ऐतिहासिक एवं वर्तमान पृथ्वी अवलोकन प्लेटफार्मों से प्राप्त उपग्रह चित्रों का उपयोग किया।
कुल मिलाकर ग्लेशियरों की सूची में 29 ग्लेशियरों को सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें 1947, 1988 और 2019 में उनके बारे में पता लगाया गया। इस इलाके की ढलान व ऊंचाई सहित प्रमुख विशेषताओं का भी दस्तावेजीकरण किया गया है, जिससे द्रव्यमान संतुलन, ग्लेशियर आयतन, सतही वेग और ज्वालामुखी व अन्य सतही मलबे के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए आंकड़े उपलब्ध होते हैं।
शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि इस साल के अंत में ऑस्ट्रेलियाई अंटार्कटिक कार्यक्रम के साथ हर्ड द्वीप की एक नियोजित यात्रा के दौरान वे इस कार्य को आगे बढ़ाएंगे और यह अध्ययन करेंगे कि ग्लेशियरों के पीछे हटने से पर्वतीय जैव विविधता को किस तरह का खतरा है।
द क्रायोस्फीयर पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शोधकर्ता कंप्यूटर मॉडल का उपयोग करके यह अनुमान लगाएंगे कि द्वीप के ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। उन्होंने कहा कि हम दो संभावित भविष्यों की खोज करेंगे, एक जहां ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे और दूसरा जहां बहुत कम काम किया जाएगा और उत्सर्जन सामान्य रूप से जारी रहेगा।
हालांकि यह मानचित्रण ग्लेशियरों के पीछे हटने और आगे बर्फ के नुकसान को दर्शाता है, ये ग्लेशियर बने रहेंगे या उनमें से अधिकतर पूरी तरह से गायब हो जाएंगे, यह लोगों और शोधकर्ताओं के द्वारा अपनाए गए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर निर्भर करता है।
इसका मतलब एक ऐसे भविष्य के बीच का अंतर भी हो सकता है जहां जैव विविधता नष्ट हो जाती है, या एक ऐसा भविष्य जहां प्रमुख हिस्से सुरक्षित रहते हैं।
हर्ड द्वीप 61 फीसदी बर्फ से ढका है और इसमें एक सक्रिय ज्वालामुखी, बिग बेन, व्याप्त है, जिसकी आधिकारिक ऊंचाई 2,745 मीटर है, हालांकि हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि इसकी ऊंचाई 2,800 मीटर से भी अधिक हो गई है।
यह द्वीप हाल ही में तब सुर्खियों में आया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस द्वीप और पास के मैकडोनाल्ड द्वीप पर 10 फीसदी का टैरिफ लगा दिया, जबकि 2016 से यहां कोई व्यापार नहीं हुआ और न ही लोगों ने यहां कोई दौरा किया।