बढ़ते तापमान के चलते चरम मौसमी घटनाएं बार-बार दस्तक दे रही हैं और इनकी तीव्रता में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है। हालांकि पिछले लाखों सालों के दौरान गर्मियों के दौरान अचानक जलवायु परिवर्तन में तेजी आई या नहीं, यह भूवैज्ञानिक रिकॉर्ड व आंकड़ों की कमी के कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है।
अब एक नए अध्ययन से पता चलता है कि पूर्वी एशियाई ग्रीष्मकालीन माॅनसून में पिछली गर्मियों के दौरान लगातार और तेजी से बदलाव हुए थे, जिन्हें पहले जलवायु के लिहाज से स्थिर माना जाता था। इस बात का खुलासा चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ अर्थ एनवायरनमेंट के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।
शोध पत्र में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने 20 लाख साल के जलवायु इतिहास का फिर निर्माण करने के लिए मध्य चीन में वेहे बेसिन से 512 मीटर दूर के तलछट का विश्लेषण किया। शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि सहस्राब्दी में माॅनसून के उतार-चढ़ाव, उस काल के मध्य का समय जब उत्तरी गोलार्द्ध बर्फ से ढका रहता था, उच्च-अक्षांशों पर बर्फ की चादरों का असर नहीं पड़ता था, बल्कि उन पर निम्न-अक्षांश के सौर विकिरण का प्रभाव पड़ता था।
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि शोध के परिणाम गर्म अवधि के दौरान जलवायु स्थिरता की धारणा को चुनौती देते हैं। वे अचानक हाइड्रोलॉजिकल बदलावों को बढ़ाने, बड़ी बर्फ की चादर की उपस्थिति से स्वतंत्र, पूर्ववर्ती गति वाले सौर बल की भूमिका को सामने लाते हैं।
यहां बताते चलें कि हाइड्रोलॉजी या जल विज्ञान पृथ्वी पर पानी की गति, वितरण और प्रबंधन का वैज्ञानिक अध्ययन है। इसमें जल चक्र, जल संसाधन और जल निकासी बेसिन स्थिरता शामिल है। यह पानी का ही अध्ययन है, जिसमें इसकी विभिन्न अवस्थाएं और पर्यावरण के साथ आंतरिक क्रियाएं शामिल हैं।
पैलियोलेक तलछट के विश्लेषण के आधार पर शोध ने हर 11,000 से 5,500 सालों में बनने वाले मजबूत पैटर्न का खुलासा किया। गोलार्ध में सौर विकिरण से पूर्वी एशिया में बारी-बारी से भीषण सूखे और भयंकर बारिश की घटनाएं हुई।
इसके अलावा शोध से पता चलता है कि वर्तमान ऑर्बिटल कॉन्फ़िगरेशन या कक्षीय विन्यास के तहत आने वाली सहस्राब्दियों में पूर्वी एशियाई माॅनसून की ताकत कम हो सकती है, जिससे लंबे समय तक सूखे का खतरा बढ़ सकता है।
उस काल के मध्य का समय जब उत्तरी गोलार्द्ध बर्फ से ढका रहता था, जिसे इंटरग्लैशिअल कहा जाता है। इंटरग्लैशिअल जलवायु गतिशीलता के नए पहलुओं को सामने लाने के लिए, यह शोध मजबूत हाइड्रोक्लाइमैटिक पूर्वानुमान लगाकर निम्न-अक्षांश की गतिविधि के महत्व को सामने लाता है।