तेजी से बढ़ने वाली फसलें लगाना, उत्सर्जित सीओ2 को कैप्चर उसे संग्रहित करना, वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैसों को हटाने और लंबे समय तक दुनिया भर में तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के समाधान के तौर पर देखा जाता है।
लेकिन शोध पत्र के हवाले से शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर यह मौजूदा खेती की जमीन से अलग हिस्से पर किया जाता है, तो यह जीवमंडल की स्थिरता को खतरे में डालता है।
कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) के द्वारा किए गए एक अध्ययन में ऐसे नए जलवायु वृक्षारोपण की क्षमता का एक आंकड़ा दिया गया है। इसे कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (बीईसीसीएस) के साथ बायोएनर्जी के रूप में भी जाना जाता है। अध्ययन में न केवल कार्बन संतुलन बल्कि धरती की अन्य सीमाओं का भी आकलन किया गया है।
पौधों की प्रजातियों की उत्पादकता के बारे में अध्ययन की मान्यताओं के अनुसार, समय के साथ कोई नई किस्में नहीं हैं। मध्यम जलवायु परिवर्तन मौजूदा खेती की जमीन के बाहर 2050 में कार्बन डाइऑक्साइड हटाने की क्षमता 20 करोड़ टन से कम होने के आसार हैं। जो कि कई जलवायु परिदृश्यों में अनुमान से काफी कम है।
इसका मतलब यह है कि अगर हम कार्बन हटाने की इस पद्धति पर भरोसा करना चाहते हैं, न कि हवा छानने की प्रणाली जैसे संभावित विकल्पों पर, तो हमें मौजूदा खेती की जमीन का उपयोग करने की जरूरत पड़ेगी। यह तभी संभव है जब हमारी खाद्य प्रणाली में बदलाव हो और अन्य बातों के अलावा पशु उत्पादों पर कम निर्भरता हो।
शोध में कहा गया है कि शोध टीम ने धरती की सीमाओं की अवधारणा से शुरुआत की, जिसे 2009 में विकसित किया गया था। सीमाएं उन नौ प्रक्रियाओं की सीमाओं की बात करती हैं जो मनुष्य जीवन का आधार बनती हैं। इसमें जलवायु से लेकर जंगलों और महासागरों की स्थिति तथा जैव विविधता तक शामिल है।
शोध में कहा गया है कि छह सीमाओं का पहले ही उल्लंघन किया जा चुका है। उनमें से चार भूमि से संबंधित हैं और इस प्रकार जलवायु वृक्षारोपण के आवंटन और प्रबंधन के लिए प्रासंगिक हैं, वे नाइट्रोजन में बढ़ोतरी करने, मीठे या ताजे पानी के चक्र, जंगलों के काटे जाने और जैव विविधता में गिरावट के कारण बायोस्फीयर के नुकसान से संबंधित हैं।
नया अध्ययन पहला व्यवस्थित, प्रक्रिया-आधारित मॉडलिंग प्रदान करता है, अगर इन अहम सीमाओं को और अधिक पार नहीं किया जाता है तो बीईसीसीएस क्षमता कैसे सीमित होगी।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि कंप्यूटर सिमुलेशन पीआईके द्वारा विकसित बायोस्फीयर मॉडल के अब तक के सबसे परिष्कृत प्रयोगों में से एक है।
यह वर्तमान जलवायु चर्चा पर एक अहम नजरिया प्रदान करता है, इस तथ्य के मद्देनजर कि वर्तमान में 1.5 डिग्री की सीमा पार हो रही है। जलवायु संकट के प्रति हमारी प्रतिक्रिया में, हमें न केवल सार्वजनिक नीतियों के सीओ2 संतुलन को देखना चाहिए, बल्कि अन्य ग्रहीय सीमाओं पर भी नजर रखनी चाहिए। क्योंकि पृथ्वी प्रणाली का लचीलापन कई परस्पर संबंधित प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है।
यदि आज की कृषि के बाहर सभी जैव-भौतिक रूप से उपयुक्त क्षेत्रों को बदल दिया जाए, तो जलवायु वृक्षारोपण के माध्यम से कार्बन हटाने की क्षमता अधिकांश जलवायु परिदृश्यों में अनुमान की तुलना में काफी अधिक होगी।
ये परिदृश्य 2050 में औसतन लगभग 7.5 अरब टन कार्बन हटाने का अनुमान लगाते हैं। दुनिया भर के तापमान को 1.5 डिग्री के बजाय दो डिग्री तक सीमित करने के लिए अक्सर बीईसीसीएस आधारित तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि यदि ग्रहीय सीमाओं पर गौर किया जाए, तो तस्वीर उलट जाती है, इस तकनीक से अरबों टन हासिल करना बहुत दूर की बात है।
एलपीजेएमएल वैश्विक जैवमंडल मॉडल, जो आधे डिग्री अक्षांश और देशांतर के रिज़ॉल्यूशन पर रोजमर्रा पानी, कार्बन और नाइट्रोजन प्रवाह का अनुकरण करता है, यह दर्शाता है कि चारों बाधाएं कार्बन निकलने की क्षमता को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।
उर्वरकों से नाइट्रोजन की मात्रा को सीमित करने से यह सैद्धांतिक ऊपरी सीमा के सापेक्ष 21 फीसदी कम हो जाता है। मीठे पानी की प्रणालियों का संरक्षण इसे 59 फीसदी तक कम कर देता है। जंगलों के काटे जाने की सीमाओं के कारण 61 फीसदी की कमी होती है। जैवमंडल के आगे के नुकसान को 93 फीसदी तक टाला जा सकता है।
शोध के मुताबिक, यह मानते हुए कि सभी चार ग्रहीय सीमाओं का सम्मान किया जाता है, मौजूदा जंगलों के लिए स्पष्ट सुरक्षा के साथ, मॉडल अध्ययन 2050 में 20 करोड़ टन से कम सीओ2 हटाने की क्षमता की ओर इशारा करता है।
शोध के निष्कर्ष में कहा गया है कि सबसे अहम जलवायु संरक्षण रणनीति उत्सर्जन को शून्य की ओर तेजी से कम करना है। जलवायु वृक्षारोपण की भौगोलिक सीमा और इस प्रकार कार्बन हटाने की क्षमता को बढ़ाने के लिए, दुनिया को कृषि के लिए कम जगह के साथ काम चलाना होगा। उदाहरण के लिए, दुनिया भर में अधिक पौधे आधारित आहार सैद्धांतिक रूप से अन्य उपयोगों के लिए महत्वपूर्ण चरागाह क्षेत्रों को मुक्त कर सकता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि पशु उत्पादों का कम उत्पादन और उपभोग न केवल कृषि से होने वाले उत्सर्जन को कम करके जलवायु में मदद करता है, बल्कि यह दुर्लभ संसाधनों के लिए संघर्ष को भी आसान बनाता है, जिससे पूरी पृथ्वी प्रणाली की रक्षा होती है।