भारत में 13 फीसदी बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं। मतलब कि देश में पैदा होने वाले करीब हर आठवें बच्चा समय से पहले जन्म लेता है। वहीं 18 फीसदी बच्चों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
वायु

गर्भावस्था में पीएम2.5 के संपर्क से 70 फीसदी तक बढ़ सकता है समय से पहले जन्म का खतरा: स्टडी

भारत में किए इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि पीएम2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की वृद्धि के साथ प्रीमैच्योर बर्थ का खतरा 12 फीसदी तक बढ़ जाता है

Lalit Maurya

भारत में करोड़ों लोग आज ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं, जो उन्हें हर पल बीमार बना रही है। हवा में घुला यह जहर न केवल हमारे दिल, दिमाग और फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इसके असर से अजन्मे भी सुरक्षित नहीं हैं।

एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हवा में घुले प्रदूषण के महीन कण जन्म से पहले ही सेहत पर असर डालना शुरू कर देते हैं, यानी गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी इसका गहरा असर पड़ रहा है। अध्ययन के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण, खासकर पीएम2.5 का संपर्क, बच्चे के वजन और जन्म के समय पर सीधा असर डालता है।

इससे बच्चों के समय से पहले जन्म और कम वजन के साथ पैदा होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।

यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली, एशियाई प्रौद्योगिकी संस्थान (एआईटी), थाईलैंड, यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन, आयरलैंड, अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान, मुंबई और सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल प्लोस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं।

भारत में किए इस अध्ययन पर शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) से जुड़े आंकड़ों और सैटेलाइट से मिले वायु गुणवत्ता के आंकड़ों का उपयोग किया है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की कि क्या दूषित हवा बच्चों को जन्म से पहले ही प्रभावित कर रही है। इस दौरान उन्होंने 0 से 5 वर्ष के लाखों बच्चों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है, जिनमें 52 फीसदी बच्चियां जबकि 48 फीसदी लड़के थे। उनका मकसद यह समझना था कि क्या वायु प्रदूषण है समय से पहले जन्म और कम वजन का कारण बन रहा है।

चौंकाने वाले हैं आंकड़े

आंकड़ों से पता चला है कि भारत में 13 फीसदी बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं। मतलब कि देश में पैदा होने वाले करीब हर आठवें बच्चा समय से पहले जन्म लेता है। वहीं 18 फीसदी बच्चों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है।

अध्ययन में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि गर्भावस्था के दौरान मां के पीएम2.5 के गंभीर स्तर के संपर्क में आने से बच्चे के समय से पहले जन्म लेने का खतरा 70 फीसदी तक बढ़ जाता है। इतना ही नहीं इसकी वजह से बच्चे के कम वजन के साथ जन्म लेने की आशंका भी 40 फीसदी तक बढ़ जाती है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पीएम2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की वृद्धि के साथ प्रीमैच्योर बर्थ का खतरा 12 फीसदी तक बढ़ जाता है। वहीं इसकी वजह से कम वजन के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में 5 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया।

उत्तर भारत में ज्यादा खराब है स्थिति

अध्ययन में खास बात यह सामने आई कि वायु प्रदूषण का असर देश के उत्तरी राज्यों में सबसे अधिक देखा गया। खासकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं। ये इलाके बढ़ते उद्योगों, भारी ट्रैफिक और खाना पकाने के लिए जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जो बढ़ते प्रदूषण की वजह है।

अध्ययन के मुताबिक देश के जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पीएम2.5 सबसे ज्यादा देखा गया, वहीं प्रीमैच्योर और कम वजन वाले बच्चों का अनुपात भी सबसे अधिक है। भारत के उत्तरी जिलों में रहने वाले बच्चे इन प्रभावों के प्रति ज्यादा संवेदनशील पाए गए।

उदाहरण के लिए पंजाब के 22 फीसदी बच्चों का वजन जन्म के समय कम था। वहीं दिल्ली में यह आंकड़ा 21.58 दर्ज किया गया। इसी तरह हिमाचल प्रदेश में 39 फीसदी बच्चे समय से पहले जन्मे हैं। वहीं उत्तराखंड में यह आंकड़ा 27 फीसदी, राजस्थान में 18 फीसदी, जबकि दिल्ली में 17.4 फीसदी रिकॉर्ड किया गया।

इसी तरह जिन घरों में खाना पकाने के लिए जीवाश्म ईंधन जैसे लकड़ी, कोयला, उपले आदि का इस्तेमाल किया गया, वहां कम वजन और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों के मामले ज्यादा पाए गए। दूसरी ओर, पूर्वोत्तर के राज्यों जैसे मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा में जहां हवा साफ है, वहां बच्चों के जन्म के नतीजे कहीं बेहतर रहे।

गौरतलब है कि पीएम2.5 प्रदूषण के बेहद महीन कण होते हैं, जो हवा में मौजूद रहते हैं। इन कणों का आकार 2.5 माइक्रॉन से भी कम होता है। ये वाहनों से निकलते धुएं, फैक्ट्रियों के प्रदूषण और कोयला या लकड़ी जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाने से पैदा होते हैं।

अपने बेहद छोटे आकार की वजह से ये कण आसानी से फेफड़ों और खून में पहुंच जाते हैं, जिससे सूजन, ऑक्सीजन की कमी, हार्मोनल गड़बड़ी और गर्भावस्था में कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं। इतना ही नहीं यह कण बच्चे के हृदय, मस्तिष्क और अन्य अंगों के विकास को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

गौरतलब है कि पीएम2.5 प्रदूषण के बेहद महीन कण होते हैं, जो हवा में मौजूद रहते हैं। इन कणों का आकार 2.5 माइक्रॉन से भी कम होता है। ये वाहनों से निकलते धुएं, फैक्ट्रियों के प्रदूषण और कोयला या लकड़ी जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाने से पैदा होते हैं।

अपने बेहद छोटे आकार की वजह से ये कण आसानी से फेफड़ों और खून में पहुंच जाते हैं, जिससे सूजन, ऑक्सीजन की कमी, हार्मोनल गड़बड़ी और गर्भावस्था में कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं। इतना ही नहीं यह कण बच्चे के हृदय, मस्तिष्क और अन्य अंगों के विकास को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

बता दें कि जन्म के समय कम वजन और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में आगे चलकर कई समस्याएं हो सकती हैं। इनमें दमा, फेफड़ों की बीमारियां, धीमा विकास, पढ़ाई-लिखाई, बोलने और व्यवहार से जुड़ी दिक्कतों के साथ-साथ हृदय रोग और मधुमेह जैसे बीमारियां भी शामिल हैं।

सरकार के साथ आम लोगों को भी होना होगा जागरूक

यह वजह है कि अध्ययन में सरकार और समय से इस मामले में तत्काल कदम उठाने की सिफारिश की गई है। अध्ययन से साफ पता चलता है कि गर्भावस्था के दौरान हवा में मौजूद पीएम2.5 के साथ-साथ तापमान व बारिश जैसे जलवायु कारकों का सीधा संबंध बच्चों के जन्म पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों से है।

जियोस्टैटिस्टिकल विश्लेषण से यह भी सामने आया कि उत्तर भारत के कई जिले इस खतरे के प्रति बेहद संवेदनशील हैं, ऐसे में वहां विशेष और लक्षित उपायों की जरूरत है।

शोधकर्ताओं ने इन समस्याओं से निपटने के लिए कुछ जरूरी कदम भी सुझाए हैं, इनमें नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को प्रभावी बनाने की बात कही है, जिसमें उत्सर्जन से जुड़े कड़े नियम और वायु गुणवत्ता की बेहतर निगरानी शामिल है। इसके साथ ही वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों को जोड़कर उन क्षेत्रों की पहचान की जा सकेगी जहां लोगों को सबसे ज्यादा खतरा है।

इसके साथ ही स्वच्छ ईंधन और ऊर्जा-संरक्षण तकनीकों को बढ़ावा देने से घर के भीतर मौजूद प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हीट एक्शन प्लान और बेहतर जल प्रबंधन जैसी रणनीतियां स्वास्थ्य योजना का हिस्सा होनी चाहिए।

अध्ययन में गर्भवती महिलाओं और आम लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ाने पर भी बल दिया गया है, ताकि वे वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों को समझ सकें और उनसे बचाव कर सकें।

भारत में वायु गुणवत्ता से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।