सहारा की धूल सहित वायुमंडल में जारी कण जो हृदय संबंधी बीमारियों से संबंधित 7,70,000 वार्षिक मौतों का कारण बनते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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प्रदूषण से बढ़ रही हैं दिल की बीमारियां, 45 लाख लोग समय से पहले समा रहे हैं काल के गाल में:अध्ययन

प्रदूषण के कारण हर साल 90 लाख अकाल मौतें हो जाती है, जिनमें से आधे हृदय संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं।

Dayanidhi

पानी, हवा और मिट्टी का प्रदूषण चुपचाप हमारे दिल को खतरे में डाल रहा है। भारी धातुएं और कीटनाशक हमारी सोच से ज्यादा खतरनाक हैं। शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा है कि इन पदार्थों का पहले जितना सोचा गया था उससे से कहीं ज्यादा खतरनाक प्रभाव हो सकते हैं, जिससे हृदय संबंधी बीमारियों में भारी वृद्धि हो सकती है

जबकि स्वस्थ, प्रदूषण रहित मिट्टी और साफ पानी लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ पृथ्वी पर रहने वाले समस्त जीवों के लिए आवश्यक है। मिट्टी और पानी में मिले केमिकल अरबों लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डालते हैं। प्रदूषकों में भारी धातुएं और माइक्रोप्लास्टिक से सूजन, ऑक्सीडेटिव या ऑक्सीकरण से होने वाले तनाव और एंडोथेलियल डिसफंक्शन, खून की नसों और हृदय की आंतरिक दीवार के ऊतकों के लिए खतरा पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं।

नेचर रिव्यू कार्डियोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में हृदय रोग विशेषज्ञों द्वारा अक्सर कम करके आंके जाने वाले इस खतरे की भयावहता को सामने लाया गया है। ये प्रदूषक मनुष्य के जैविक घड़ी को प्रभावित करते हैं और खून की नसों की परत को बदलते हैं, जिससे हृदय रोग में तेजी आती है।

अध्ययन के मुताबिक, प्रदूषण के कारण हर साल 90 लाख अकाल मौतें हो जाती है, जिनमें से आधे हृदय संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं। यह दुनिया भर में होने वाली मौतों का 16 फीसदी है, जो एक भयावह आंकड़ा है।

जल प्रदूषण दुनिया भर की आबादी के 25 फीसदी पर असर डालता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। सहारा की धूल सहित वायुमंडल में जारी कण भी इसके लिए जिम्मेदार हैं, जो हृदय संबंधी बीमारियों से संबंधित 7,70,000 वार्षिक मौतों का कारण बनते हैं। इसके अलावा मिट्टी के क्षरण की वजह से दुनिया की 40 फीसदी आबादी के स्वास्थ्य को खतरा है।

शोधकर्ता शोध के हवाले से हृदय रोग की रोकथाम में इन पर्यावरणीय कारणों पर विचार करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। कीटनाशकों के उपयोग को कम करना, बेहतर वायु गुणवत्ता प्रबंधन और पानी को छानने से इन खतरों को कम किया जा सकता है।

शोध में कहा गया है कि ये उपाय लंबे समय तक अपनाए जाने चाहिए, जिसमें प्रदूषण को कम करके सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के उद्देश्य से इन्हें दुनिया भर में लागू किया जाना चाहिए। वहीं यूरोपीय आयोग का लक्ष्य 2050 तक प्रदूषण मुक्त यूरोप बनाना है।

एंडोथेलियल डिसफंक्शन का मतलब एंडोथेलियम के कामकाज में कमी से है, जो खून की नसों को सही तरीके से व्यवस्थित करने वाली कोशिकाओं की परत है। यह संवहनी स्वर, सूजन और जमावट को नियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एथेरोस्क्लेरोसिस सहित हृदय संबंधी बीमारियों को जन्म दे सकता है।

भारी धातुओं, कीटनाशकों और अन्य रासायनिक पदार्थों से प्रदूषण एंडोथेलियल कोशिकाओं के साथ परस्पर क्रिया करता है, जिससे ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन होती है। ये गड़बड़ी एंडोथेलियम के रक्षा तंत्र में रुकावट डालती है, जिससे खून की नसों को नुकसान होने की अधिक आशंका होती है और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है।

जल प्रदूषण के पीछे का कारण भारी धातुओं, औद्योगिक रसायनों और कीटनाशकों जैसे प्रदूषकों का जलीय प्रणालियों में मिलाना है। इन प्रदूषकों का मनुष्य के स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव हो सकता है, जिसमें हृदय संबंधी बीमारियां भी शामिल हैं।

दूषित पानी पीने या उसके संपर्क में आने से शरीर के विभिन्न कार्यों में रुकावट आती है, जिससे सूजन संबंधी प्रतिक्रियाएं और ऑक्सीडेटिव तनाव उत्पन्न होता है। ये जैविक प्रक्रियाएं खून की नसों और हृदय को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। लगभग दो अरब लोग जल प्रदूषण से प्रभावित इलाकों में रहते हैं, जिससे यह एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन जाती है।

इन प्रभावों को कम करने के लिए, जल प्रबंधन के तरीकों में सुधार करना, दूषित पदार्थों को छानना और जल संसाधनों में प्रदूषक के मिलने को कम करने के उद्देश्य से पर्यावरण नीतियों को बढ़ावा देना आवश्यक है। इससे न केवल जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने में मदद मिलेगी, बल्कि गरीब व कमजोर आबादी के स्वास्थ्य की भी रक्षा होगी।