दिल्ली में वाहनों की पार्किंग की समस्या बढ़ती ही गई। फाइल फोटो: सम्राट मुखर्जी, सीएसई 
वायु

सांसों का आपातकाल: लेकिन दिल्ली में कारगर नहीं रहे प्रदूषण रोकने के उपाय

साल 2000 से दिल्ली की जहरीली हवा को साफ करने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन ये प्रयास बौने साबित हुए। सीएसई की नई किताब "सांसों का आपातकाल" में इस पर विस्तार से लिखा गया है

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  • कुछ समय बाद दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास नाकाफी साबित होने लगे

  • सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद, स्वच्छ ईंधन की उच्च कीमतें और अव्यवस्थित अमल ने प्रदूषण को बढ़ावा दिया

  • 2024 में पीएम 2.5 के स्तर में वृद्धि ने प्रदूषण नियंत्रण की कोशिशों को विफल कर दिया

  • इससे दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सुधार की उम्मीदें धूमिल हो गई

स्वच्छ आसमान और साफ फेफड़ों की इस लड़ाई में मुख्य स्रोत वह ईंधन है, जिसे हम घरेलू चूल्हों से लेकर कारखानों और थर्मल पावर प्लांट तक जलाते हैं। अधिकतर मामलों में यह बायोमास या कोयला होता है। सुप्रीम कोर्ट ने पेट कोक (ऐसे ईंधनों में सबसे गंदा) के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।

दिल्ली सरकार ने कोयले के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे बाद में पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक बढ़ा दिया गया। यह भी सहमति हुई थी कि थर्मल पावर प्लांट या तो सफाई करेंगे या बंद हो जाएंगे। लेकिन, इन आदेशों पर अमल बहुत ही अधूरा और अव्यवस्थित रहा है। सीएनजी में बदलाव से सबक यह मिलता है कि अगर कोई ईंधन बैन करना है, तो लोगों को उसका सस्ता और आसानी से मिलने वाला विकल्प देना जरूरी है।

जब डीजल बसों को रोका गया, तो सीएनजी की सप्लाई और उसकी सस्ती कीमत सुनिश्चित करनी पड़ी। नया विकल्प लागत के मामले में भी व्यवहारिक होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट इससे सहमत था कि स्वच्छ ईंधन को गंदे ईंधन से सस्ता रखने के लिए राजकोषीय उपायों की आवश्यकता होगी।

कोयले पर प्रतिबंध लग गया, लेकिन प्राकृतिक गैस (जो कोयले का एक स्वच्छ विकल्प है) की कीमत बहुत ज्यादा थी। इससे उद्योगों के लिए इसका इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि वे महंगे ईंधन के साथ प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाते। इसलिए यह तरीका काम नहीं करेगा।

दिल्ली को अपनी लंबे समय से चली आ रही वायु गुणवत्ता में हुई बढ़त के खोने का डर लग रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की तरफ से 2024 में किए गए पीएम2.5 के सालाना ट्रेंड के आकलन से पता चला है कि दिल्ली अपनी लंबे समय से चली आ रही वायु गुणवत्ता में सुधार को खोने के जोखिम पर है।

2022 से लगातार दूसरे साल पीएम 2.5 में वृद्धि हुई। इसे केवल मौसम संबंधी कारकों के कारण होने वाली वार्षिक गड़बड़ी के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसका मतलब है कि क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ रहा है।

2024 में पीएम 2.5 की वार्षिक सांद्रता बढ़कर 104.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गई, जो 2023 से 3.4 प्रतिशत अधिक और राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से दोगुनी से भी ज्यादा थी। 2018 से 2022 के बीच पीएम2.5 का स्तर स्थिर हुआ या थोड़ा कम हुआ था, लेकिन अब यह फिर से बढ़ रहा है।

वाहन, उद्योग, कचरा जलाने, ठोस ईंधन के इस्तेमाल, निर्माण कार्य और धूल जैसे स्थानीय और क्षेत्रीय प्रदूषण के स्रोतों ने पिछले एक दशक में हुई प्रगति को कम कर दिया है। दिल्ली अब पराली जलाने को बहाना नहीं बना सकती, क्योंकि 2024 की सर्दियों में पराली जलाने की घटनाएं 71.2 प्रतिशत कम हो गईं, फिर भी प्रदूषण बढ़ा हुआ रहा।

सर्दियों के दौरान (1 अक्टूबर से 31 दिसंबर 2024) में प्रदूषण का स्तर पिछले साल से 26 प्रतिशत ज्यादा रहा। दिल्ली में 17 दिन हवा “गंभीर” या उससे भी खराब रही, और दो बार लंबे समय तक घना स्मॉग छाया रहा। शहर में 17 दिन “गंभीर” या उससे भी खराब वायु गुणवत्ता रही, साथ ही दो लंबी धुंध (स्मॉग) की घटनाएं हुईं, जिनकी औसत तीव्रता क्रमशः 371 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और 324 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी, जिससे प्रदूषण का औसत स्तर बढ़ा रहा।

2024 में पीएम 2.5 के स्तर का बढ़ना एक बड़ी खतरे की घंटी था, क्योंकि इससे पता चलता है कि पहले प्रदूषण कम करने के लिए जो मेहनत की गई थी, वह अब बेकार हो रही है। हवा का प्रदूषण फिर से बढ़ रहा है और पिछले कुछ सालों में जो सुधार हुए थे, वे अब खत्म हो रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद दिल्ली में परिवहन और उद्योगों में स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ा था, जिसके बाद राज्य 2018 से पीएम 2.5 के स्तर को स्थिर कर पाया था। यहां तक कि सबसे पुराने 5 स्टेशनों पर ध्यान दिया जाए तो 2013 से इसमें लगातावर गिरावट देखी जा रही थी।

दिल्ली में पंजीकृत कुल वाहनों की संख्या में 2016 तक लगातार वृद्धि देखी गई, जो 2011-12 की तुलना में लगभग 33 प्रतिशत ज्यादा है। 2016 और 2021 के बीच वार्षिक पंजीकरण में लगभग 35 प्रतिशत की गिरावट शुरू हुई, जो ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी और कोविड-19 महामारी के कारण हुई।

लेकिन, 2022-23 में मोटर वाहनों की संख्या में जबरदस्त सुधार देखा गया, आश्चर्यजनक रूप से वाहनों के रजिस्ट्रेशन में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कुल वाहनों में दोपहिया वाहनों की संख्या सबसे ज्यादा है। 2020-21 में महामारी के दौरान इसमें लगभग 42 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि निजी कारों की बिक्री में 2019-2021 के बीच थोड़ी (13 प्रतिशत) कमी आई।

महामारी के दौरान ही कैब और ऑटो-रिक्शा की बिक्री में बहुत ज्यादा (क्रमशः 90 प्रतिशत और 65 प्रतिशत) गिरावट दर्ज की गई,  लेकिन 2021-22 के दौरान इनकी संख्या में बहुत तेज उछाल आया और ये वाहन क्रमशः 84 प्रतिशत और 99 प्रतिशत तक बढ़ गए।

वित्तीय वर्ष 2011 से 2023 के बीच दिल्ली में सभी सेगमेंट के वाहनों की बिक्री लगभग समान रही। दोपहिया वाहन हमेशा की तरह सबसे ज्यादा रहे, जिनकी हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से ज्यादा थी, जो 2018-19 में 74.8 प्रतिशत तक पहुंच गई थी।

इसके बाद कारों की हिस्सेदारी भी काफी ज्यादा लगभग 30 प्रतिशत रही और बीते 10 साल में इसमें केवल 1.9 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई। कैब की हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से कम रही। माल वाहक वाहन केवल 1.8 प्रतिशत बढ़े, तिपहिया और अन्य श्रेणियों के यात्री वाहनों की हिस्सेदारी बहुत कम रही।

तिपहिया यात्री वाहनों की हिस्सेदारी अब 3.2 प्रतिशत है, जो पिछले दशक की तुलना में 0.5 प्रतिशत कम है। वाणिज्यिक दोपहिया वाहन, बसें, ऑफ-रोड आदि को मिलाकर इनका कुल हिस्सा 1 प्रतिशत से कम रहा। दोपहिया वाहनों की हिस्सेदारी कभी भी 60 प्रतिशत के निशान से नीचे नहीं गिरी, जो 2018-19 में 74.8 प्रतिशत पर पहुंच गई थी।

हालांकि, दोपहिया वाहन बाजार महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ और 2021-22 में इसकी हिस्सेदारी 66.5 प्रतिशत तक रह गई। इसके उलट महामारी के दौरान कारों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी और 2021-22 में यह 11 साल में पहली बार 33.46 प्रतिशत तक पहुंच गई। उसी साल दोपहिया वाहनों की बिक्री गिरने से साफ पता चलता है कि लोग अब कारों की ओर ज्यादा जा रहे हैं।

राज्य में सड़कों पर चलने वाले वाहनों विशेषकर निजी वाहनों की अनियंत्रित वृद्धि को रोकने के लिए दिल्ली के परिवहन विभाग ने जनवरी 2022 में 48,77,646 पुराने पेट्रोल और डीजल वाहनों को डी-रजिस्टर कर दिया।

यह कदम राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के निर्देश के अनुसार उठाया गया था, जिसमें दिल्ली के एनसीटी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) की सड़कों पर 10 साल या उससे पुराने डीजल वाहनों और 15 साल या उससे पुराने पेट्रोल वाहनों के चलने पर प्रतिबंध लगाया गया था।

“दिल्ली का आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23” के अनुसार डी-रजिस्ट्रेशन अभियान के परिणामस्वरूप राज्य में पंजीकृत वाहनों की संख्या 1,22,53,350 से 54.76 प्रतिशत घटकर 79,17,898 हो गई। इसमें 13,00,000 कारें और 29,00,000 दोपहिया वाहन शामिल थे।

हालांकि, परिवहन विभाग ने बताया कि जिन वाहनों का रजिस्ट्रेशन रद्द हुआ है, उनमें से सभी ने सड़कों पर चलना बंद नहीं किया है। 2024 में लगभग 7,00,000 वाहनों ने दूसरे राज्यों में दोबारा पंजीकरण कराने के लिए एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) ले ली थी और लगभग 1,00,000 वाहनों को स्क्रैप कर दिया गया था। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस रद्द हुए ऐसे वाहनों को सड़कों पर देखते ही जब्त कर स्क्रैप कर देती है।

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