यह तस्वीर 2022 में झारखंड में पड़े सूखे की है। फाइल फोटो: विकास चौधरी 
कृषि

झारखंडः क्या तीसरी बार सूखे की चपेट में आएगा राज्य?

झारखंड में आठ जुलाई 2024 तक 135 मिलीमीटर (मिमी) बारिश हुई है, जबकि सामान्य स्थिति में यहां 265 मिमी बारिश हो जानी चाहिए थी

Anand Dutt

झारखंड में मानसून की बेरुखी जारी है। पूरे राज्य में अब तक सामान्य से 50 प्रतिशत कम बारिश हुई है। राज्य में आठ जुलाई 2024 तक 135 मिलीमीटर (मिमी) बारिश हुई है, जबकि सामान्य स्थिति में यहां 265 मिमी बारिश हो जानी चाहिए थी।

सबसे खराब स्थिति चतरा, पू सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, रामगढ़, सरायकेला- खरसांवा, लोहरदगा, पाकुड़ और रामगढ़ जिले की है। यहां सामान्य से 60 से 70 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है।

बारिश के अभाव में अभी लक्ष्य के मुकाबले मात्र तीन फीसदी ही धान की खेती हो पाई है। राज्य के किसान खरीफ की खेती के लिए मॉनसून की बारिश पर ही निर्भर रहते हैं। यहां सबसे अधिक करीब 18 लाख हेक्टेयर में धान की ही खेती होती है। राज्य के अधिसंख्य जिलों में 20 जुलाई के बाद रोपाई शुरू हो जताई है। 

राजधानी रांची से 152 किलोमीटर दूर सिमडेगा जिले के कोनबेगी गांव के किसान मनोज प्रसाद मंगलवार 9 जुलाई को खेत में ट्रैक्टर चला रहे थे। उन्होंने बताया कि चार दिन पहले लगातार पांच दिनों तक ठीक-ठाक बारिश हुई थी, लेकिन इसके बाद पूरी तरह बंद है।

ऐसे में जिन लोगों ने बिचड़ा (नर्सरी) लगा दिए हैं, उनका बिचड़ा सूख रहा है। क्योंकि लागातार बारिश से लोग खेत जोत नहीं पाए और बिचड़ा लगा नहीं पाए हैं। जो पहले से बिचड़ा लगा चुके हैं, उनके खेत में पानी नहीं है। मौसम केंद्र ने 12 जुलाई को राज्य के उत्तर-पूर्वी इलाके (संताल व गिरिडीह-धनबाद) में कई स्थानों परपर भारी बारिश का पूर्वानुमान लगाया है। 12 जुलाई को राजधानी में भी बारिश हो सकती है। अन्य जिलों में कहीं- कहीं हल्की बारिश का अनुमान है। राजधानी में मंगलवार को कुछ स्थानों पर बारिश का अनुमान है। 

रांची शहर से 20 किलोमीटर दूर ओरमांझी के रहनेवाले ज्ञान रंजन सिंह दूसरे किसानों के खेतों में ट्रैक्टर चलाते हैं। वह कहते हैं कि धान रोपनी के समय हर साल उनका एक ट्रैक्टर लगभग 100 घंटे तक चलता है, यानी 50 से 60 एकड़ खेत वो जोत देते हैं, लेकिन अब तक उनका एक ट्रैक्टर बमुश्किल 30 घंटा चल पाया है।

ज्ञान रंजन की बात को ऐसे समझें। अब तक राज्य में 18 लाख हेक्टेयर की तुलना में मात्र 58 हजार हेक्टेयर में ही धान लग सका है। इसमें करीब 55 हजार हेक्टेयर में छींटा विधि (सूखे खेत की जुताई करके धान का छिड़काव किया जाता है। कम बारिश की स्थिति में भी इसमें अच्छी पैदावार हो जाती है) से धान लगाया गया है। राज्य के अधिसंख्य जिलों में 20 जुलाई के बाद रोपा शुरू हो जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस साल यानी लगातार तीसरे साल राज्य सूखे की चपेट में रहेगा?

रांची के जिले के कांके इलाके में बारिश न होने के कारण खेत सूख रहे हैं। फोटो: आनंद दत्त

देवघर जिले के बासुकीनाथ के रहनेवाले प्रगतिशील किसान जयप्रकाश मंडल कहते हैं, सुखाड़ वाली स्थिति से बचने के लिए 50 प्रतिशत उम्मीद अभी भी बाकी है। उनके इलाके में मात्र 10 से 15 प्रतिशत बिछड़ा लग पाया है. किसान अभी भी अच्छी बारिश की उम्मीद लगाए हुए हैं. वो ये भी बताते हैं कि बीते सार सरकार ने सूखा राहत की घोषणा की थी। प्रति किसान 3500 रुपए मिलने थे, लेकिन बमुश्किल 60 प्रतिशत किसानों को अब यह पैसा मिल पाया है। 

बीते साल के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2023 में राज्य सरकार ने  17 जिलों के 158 ब्लॉकों को सूखा ग्रस्त घोषित किया था. सरकार का लक्ष्य 16.13 लाख हेक्टेयर में धान लगाने का था, लेकिन मात्र 2.82 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हो पाई थी। राज्य के सिर्फ 4 जिलों में सामान्य बारिश दर्ज की गई थी, जबकि 19 जिलों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई थी। पूरे राज्य में लगभग 15 लाख किसान इससे प्रभावित हुए थे। यही नहीं, साल 2022 में भी राज्य के 22 जिलों के 260 ब्लॉकों में से 226 को सूखा प्रभावित घोषित किया था। 

क्या धान के अलावा और कोई विकल्प है

झारखंड किसान महासभा के उपाध्यक्ष पंकज रॉय भी एक प्रगतिशील किसान हैं। मिलेट (मोटा अनाज) को लेकर बीते पांच साल से काम कर रहे हैं। साथ ही मिललाइफ नाम से स्टार्ट-अप भी चला रहे हैं। वह कहते हैं, बिल्कुल विकल्प है। मड़ुआ की खेती से किसान धान से बेहतर स्थिति में पहुंच गए हैं। एक एकड़ में धान की कुल लागत, जुताई, बीज, लेबरस, खाद, दवाई को जोड़कर 30-32 हजार रुपए आता है। उत्पादन औसत 25 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।

बाजार में औसत मूल्य 16 से 18 रुपए प्रति किलो है, जबकि झारखंड में  न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 23 रुपया तय है. यानी प्रति एकड़ किसान की कुल कमाई लगभग 60 हजार रुपए आता है. जबकि रागी को लगाने में प्रति एकड़ 10 हजार रुपए आता है। उत्पादन 10-15 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। रागी की एमएसपी प्रति किलो 42.90 रुपए है। ऐसे में किसान 40 से 43 हजार रुपए प्रति एकड़ कमा लेता है। न्यूट्रल मिलेट के रूप में झारखंड  में रागी, ज्वार, बाजरा और चीना अधिक उपजाए जाते हैं। इसमें रागी यानी मड़ुआ का उत्पादन सबसे अधिक होता है।

धान के साथ तो एक और बड़ी समस्या ये है कि फसल नवंबर में कट जाती है, लेकिन सरकार फरवरी के बाद खरीददारी शुरू करती है। ऐसे में किसानों को एमएसपी वाला रेट भी नहीं मिल पाता किसान थक हारकर दलालों को 16-18 रुपए किलो बेच देता है। यही दलाल फिर सरकार को एमएसपी रेट पर धान बेच देते हैं। हाल ये है कि साल 2023 में अधिकतम 6 प्रतिशत धान सरकार ने खरीदा है। अगर किसान ने सरकार के हाथों सीधे बेच भी दिया तो पैसे दो से तीन साल तक लटका कर रखा जाता है। 

इन सब के बीच झारखंड को नया कृषि मंत्री मिला है। बतौर कृषि मंत्री कांग्रेस की विधायक दीपिका पांडेय सिंह ने बीते सोमवार 8 जुलाई को पदभार ग्रहण किया। इसके बाद उन्होंने कहा कि राज्य के किसानों की उपज को बढ़ाना और उनकी आय को दोगुणा करना उनका लक्ष्य होगा। हालांकि उनका कार्यकाल बमुश्किल तीन महीने का होगा, क्योंकि तीन महीने बाद चुनाव होने की संभावना है।