वैज्ञानिकों ने बरट्रम्स बास और अलतामा बास को आधिकारिक रूप से नई और अलग प्रजातियां घोषित किया। फोटो साभार: जूटाक्सा
वन्य जीव एवं जैव विविधता

जॉर्जिया की नदियों में मिलीं मछली की दो नई प्रजातियां, विलुप्ति का खतरा

इन मछलियों की खोज जितनी खास है, उतनी ही चिंता की बात यह है कि ये प्रजातियां तेजी से संकट में भी हैं।

Dayanidhi

  • वैज्ञानिकों ने बरट्रम्स बास और अलतामा बास को आधिकारिक रूप से नई और अलग प्रजातियां घोषित किया।

  • पहली बार इन मछलियों को 1980 के दशक में देखा था और तब से इन पर शोध शुरू किया।

  • इन मछलियों की पहचान सिर्फ रंग-रूप से नहीं, बल्कि जेनेटिक (डीएनए) परीक्षण से भी हुई, जिससे यह साबित हुआ कि ये प्रजातियां अलग हैं।

  • बरट्रम्स बास को "पुक पग्गी" यानी "फूल खोजने वाला" और अलतामा बास को "सुंदर पूंछ वाली मछली" के नाम पर वैज्ञानिक नाम मिले।

  • बाहरी प्रजातियों के आने और प्राकृतिक आवास के बदलने से इन मछलियों के विलुप्त होने का खतरा है। वैज्ञानिकों ने इनकी रक्षा के लिए जागरूकता की अपील की है।

प्रकृति रहस्यों से भरी हुई है। वैज्ञानिक जब ध्यान से प्रकृति को देखते हैं, तो कई बार उन्हें ऐसे जीव मिलते हैं जो अब तक पहचाने नहीं गए थे। कुछ ऐसा ही हुआ है अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में, जहां की नदियों में पाई जाने वाली दो मछलियों को अब नई और अलग प्रजातियों के रूप में मान्यता दी गई है। इनका नाम बरट्रम्स बास और अलतामा बास है।

हाल ही में जॉर्जिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इन दोनों मछलियों को औपचारिक रूप से नई प्रजातियां घोषित किया है। यह शोध कार्य विशेष रूप से मछली विज्ञानी के नेतृत्व में किया गया।

खोज की शुरुआत: 1980 के दशक

जूटाक्सा नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि पहली बार 1980 के दशक में बरट्रम्स बास को देखा था। वह जॉर्जिया की ब्रॉड नदी के पास एक स्थानीय दंपत्ति से मिले, जिनकी मछलियों से भरी बाल्टी में उन्हें एक अलग किस्म की मछली दिखाई दी।

उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि यह सामान्य रेडआई बास नहीं है, बल्कि कुछ अलग है। उन्होंने उस मछली के बदले पांच डॉलर भी देने चाहे, लेकिन वह दंपत्ति मछली को पका कर खाने की योजना बना चुका था। उस मछली के साथ तो वह मौका चला गया, लेकिन खोज वहीं से शुरू हुई।

वैज्ञानिक प्रमाण: सिर्फ दिखावट नहीं, जीन भी अलग

इन दोनों मछलियों को पहले रेडआई बास की उप-प्रजातियां मानी जाती थी। लेकिन विस्तृत अध्ययन के बाद पता चला कि इन मछलियों की शारीरिक बनावट और जेनेटिक संरचना (डीएनए) दोनों ही दूसरों से काफी अलग हैं।

बरट्रम्स बास की पहचान: रंग: सुनहरा, किनारों पर गहरे भूरे धब्बे, इनके पंख हल्के गुलाबी रंग के होते हैं। आंखें लाल रंग की होती है, जिनके चारों ओर पतली सुनहरी परत होती है। इनकी लंबाई: लगभग 15 इंच तक बढ़ सकती है।

अलतामा बास की पहचान: रंग सुनहरा लेकिन स्केल्स के किनारे हल्के हरे-भूरे रंग के होते हैं। इनके पंख किनारों पर नारंगी रंग लिए होते हैं। आंखें लाल रंग की, सुनहरे घेरे के साथ हैं और इनकी लंबाई करीब 14 इंच तक हो सकती है।

इनके डीएनए परीक्षण में भी यह साफ हुआ कि ये प्रजातियां विशुद्ध हैं और किसी अन्य मछली के साथ मिली-जुली नहीं हैं। शोधकर्ताओं ने 100 से अधिक मछलियों का गहन अध्ययन किया और कुल 570 मछलियों के आंकड़े इकट्ठा किए, जिसमें लार्जमाउथ, स्मॉलमाउथ, शोल बास, और अन्य बास प्रजातियां भी शामिल थीं।

क्या है नाम रखने के पीछे की कहानी?

बरट्रम्स बास को नाम मिला विलियम बरट्रम के नाम पर, जो 18वीं सदी के प्रकृति प्रेमी थे और उन्होंने 1773 से 1776 तक दक्षिण-पूर्वी अमेरिका की यात्रा की थी। उन्हें स्थानीय सेमिनोल-क्रिक लोगों ने “पुक पग्गी” नाम दिया था, जिसका अर्थ होता है “फूल खोजने वाला”।

अलतामा बास को यूनानी शब्दों से नाम मिला: काली का मतलब “सुंदर” और उरुस का मतलब “पूंछ” यानि “सुंदर पूंछ वाली मछली।”

खतरे में हैं नई मछलियां

इन मछलियों की खोज जितनी खास है, उतनी ही चिंता की बात यह है कि ये प्रजातियां तेजी से संकट में भी हैं। इन मछलियों का प्राकृतिक आवास नदी की चट्टानी धाराएं और साफ पानी वाले पूल हैं। लेकिन आजकल नदियों में मिट्टी जमने, बांध बनने और बाहरी प्रजातियों के आने से इनका पर्यावरण बदल गया है।

बाहर से आई दूसरी बास मछलियां जब इनसे मिलती हैं, तो संकर (हाइब्रिड) संतानें पैदा होती हैं। इससे असली प्रजाति का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि अब जब हमने इनके असली गुणों की पहचान कर ली है, तो भविष्य में यदि ये विलुप्त भी हो जाएं, तो हमारे पास रिकॉर्ड होगा कि ये कैसी थीं।

क्यों है यह खोज जरूरी?

प्राकृतिक विविधता की पहचान जरूरी है ताकि हम जान सकें कि हर जीव कितना अलग और महत्वपूर्ण है। पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है, अगर हम यह जानते हैं कि कोई प्रजाति अलग है, तो हम उसके लिए विशेष प्रयास कर सकते हैं। भविष्य की पीढ़ियों के लिए वैज्ञानिक रिकॉर्ड तैयार होता है।

बरट्रम्स बास और अलतामा बास अब सिर्फ दो मछलियां नहीं हैं बल्कि वे प्रकृति की अनमोल खोज बन चुकी हैं। यह शोध हमें याद दिलाता है कि प्रकृति में अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो हमें खोजने और समझने की जरूरत है। साथ ही, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस जैव विविधता को सहेजें और नष्ट होने से बचाएं।