गंगा डॉल्फिन (प्लैटनिस्टा गैंगेटिका); फोटो: विकीमीडिया 
वन्य जीव एवं जैव विविधता

गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में हैं करीब 6,324 डॉल्फिन: डब्ल्यूआईआई रिपोर्ट

परियोजना का उद्देश्य गंगा नदी घाटी में जैव विविधता की स्थिति का मूल्यांकन करने के साथ-साथ नदी की सेहत की जांच करना है

Susan Chacko, Lalit Maurya

  • वन्यजीव संस्थान ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में डॉल्फिन की संख्या लगभग 6,324 है।

  • यह सर्वेक्षण पर्यावरण मंत्रालय के सहयोग से 2020 से 2023 के बीच किया गया, जिसमें 7,680 किलोमीटर नदी तटों पर डॉल्फिन की उपस्थिति दर्ज की गई।

  • इस परियोजना का उद्देश्य गंगा की जैव विविधता और डॉल्फिन की स्थिति का मूल्यांकन करना है।

वन्यजीव संस्थान ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) ने एनजीटी में एक हलफनामा प्रस्तुत किया है, जिसमें बताया गया है कि गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में डॉल्फिन की अनुमानित संख्या करीब 6,324 है। गंगा और आसपास की नदियों में गंगा डॉल्फिन की आबादी का जानने के लिए यह व्यापक सर्वेक्षण पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से किया गया है।

इस सर्वेक्षण के तहत 2020 से 2023 के बीच कुल 7,680 किलोमीटर नदी तटों पर डॉल्फिन की उपस्थिति दर्ज की गई।

गौरतलब है कि 20 जनवरी 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने वन्यजीव संस्थान को निर्देश दिया था कि वह गंगा घाटी में डॉल्फिन की संख्या का अनुमान लगाने की प्रक्रिया और तरीके पर एक रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करे।

रिपोर्ट के मुताबिक, "गंगा नदी घाटी में जलीय प्रजातियों के संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के प्रबंधन" संबंधी परियोजना को जल शक्ति मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा वित्तपोषित किया गया है।

इस परियोजना का उद्देश्य गंगा नदी घाटी में जैव विविधता की स्थिति का मूल्यांकन करने के साथ-साथ नदी की सेहत की जांच करना है। साथ ही गंगा डॉल्फिन जैसी महत्वपूर्ण संरक्षण-आश्रित प्रजातियों की आबादी और वर्तमान स्थिति का पता लगाना है। 

इसे समझने के लिए संस्थान ने गंगा मुख्य धारा सहित घाटी की 22 नदियों में नौका की मदद से व्यापक सर्वेक्षण किया है, ताकि गंगा डॉल्फिन के वितरण और संख्या का व्यवस्थित रूप से दस्तावेज तैयार किया जा सके। अध्ययन में इस क्षेत्र को 5-5 किलोमीटर की नमूना इकाइयों में बांटा गया, जिन्हें जैव विविधता मूल्यांकन इकाई कहा गया है।

क्या है पूरा मामला

रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा नदी घाटी में गंगा डॉल्फिन की अनुमानित संख्या 3,936 है। यह रिपोर्ट 16 मई 2025 को तैयार की गई थी और इसे 3 सितंबर 2025 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।

बता दें कि इससे पहले गंगा नदी में डॉल्फिन की घटती संख्या के मुद्दे को संबोधित करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 1 मई, 2025 को एक अहम आदेश जारी किया था। ट्रिब्यूनल ने पटना स्थित नेशनल डॉल्फिन रिसर्च सेंटर (एनडीआरसी) और कोलकाता के सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआईएफआरआई) के निदेशकों को अगली सुनवाई में अदालत की मदद के लिए वर्चुअली उपस्थित रहने को कहा था।

वहीं 20 जनवरी, 2025 को एनजीटी ने इन दोनों संस्थानों को मामले में पक्षकार बनाते हुए सुझाव मांगे थे कि गंगा नदी में डॉल्फिन की संख्या को कैसे बढ़ाया जाए। लेकिन एक मई की सुनवाई में, नोटिस भेजे जाने के बावजूद इन संस्थानों की ओर से कोई प्रतिनिधि पेश नहीं हुआ, जिससे ट्रिब्यूनल ने नाराजगी जताई। वहीं, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ओर से पेश वकील ने 20 जनवरी, 2025 के आदेश में निहित निर्देशों के अनुसार अतिरिक्त जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से दो सप्ताह का समय और मांगा था।

प्रदूषण की चपेट में लछुगुड़ा: न कोई मुआवजा, न राहत, जानिए क्या है पूरा मामला

ओडिशा के रायगढ़ जिले के लछुगुड़ा और दोरागुड़ा गांवों में रहने वाले लोग उत्कल एल्युमिना इंटरनेशनल लिमिटेड (यूएआईएल), डोरागुड़ा की गतिविधियों से हो रहे प्रदूषण से परेशान हैं। यह प्रदूषण कंपनी द्वारा संचालित बॉक्साइट कन्वेयर बेल्ट, रेड मड तालाब, ऐश पोंड, रॉड मिल, इंटरमीडिएट जंक्शन हाउस और गांव की सड़कों पर भारी वाहनों की आवाजाही के कारण हो रहा है।

यह जानकारी लछुगुड़ा गांव के निवासी नंदा झोड़िया द्वारा 11 अगस्त 2025 को दायर पुनः हलफनामे में दी गई है, जो संयुक्त समिति की निरीक्षण रिपोर्ट के जवाब में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत किया गया है।

हलफनामे में रायगढ़ा के जिला कलेक्टर द्वारा दायर समिति रिपोर्ट का हवाला दिया है, जिसमें माना गया है कि संकरी घाटी में स्थित इंटरमीडिएट जंक्शन हाउस के कारण वहां धूल प्रदूषण हो रहा है। यह जंक्शन हाउस, खदान से रिफाइनरी तक बॉक्साइट ले जाने वाली कन्वेयर बेल्ट का हिस्सा है, लछुगुड़ा गांव से महज 40 से 50 मीटर की दूरी पर स्थित है।

रिपोर्ट के अनुसार, यूनिट द्वारा ध्वनि के लिए निर्धारित सीमा का उल्लंघन किया गया है। प्रदूषण नियंत्रण उपाय पूरी तरह से विफल रहे हैं, जिसके कारण गांव के पेड़ों और घरों पर धूल की मोटी परत जम गई है। यह स्थिति लोगों के स्वास्थ्य और जीवन में कई तरह की समस्याएं पैदा कर रही है।

निरीक्षण रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि कन्वेयर बेल्ट से उड़ने वाली धूल आसपास की बस्तियों और स्कूल पर असर डाल रही है।

इसके अलावा, यूनिट से होने वाले बेकाबू धूल प्रदूषण के कारण लछुगुड़ा गांव की नालियां और अन्य जल स्रोत भी प्रदूषित हो रहे हैं। रेड मड तालाब के चारों ओर ग्रीन बेल्ट नहीं है, और यह तालाब गांव से महज 600 मीटर की दूरी पर है। गर्मियों में इससे भारी धूल उड़ती है, जबकि बरसात में तालाब का गंदा पानी नालों और खेतों में मिलकर जमीन और जल स्रोतों को नुकसान पहुंचाता है।

रिपोर्ट में पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन की पुष्टि के बावजूद अब तक न तो पिछले उल्लंघनों के लिए मुआवजा तय किया गया है और न ही वर्तमान प्रदूषण पर कोई ठोस कार्रवाई की गई है। कन्वेयर बेल्ट और रेड मड तालाब के साथ-साथ गांव की सड़कों पर भारी वाहनों की आवाजाही से भी भारी प्रदूषण फैल रहा है।