पानी की बून्द में सूक्ष्मदर्शी की मदद से देखा गया जल पिस्सू; फोटो: जोहान स्वानपोएल/आईस्टॉक 
वन्य जीव एवं जैव विविधता

महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट क्षेत्र में खोजी गई स्थलीय जलपिस्सू की नई प्रजाति

जलपिस्सू की यह प्रजाति तैर नहीं सकती, इसलिए काई भरे पानी में रेंगने के लिए अपने एंटीना का उपयोग करती है

Lalit Maurya

जीव वैज्ञानिकों ने महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट क्षेत्र में जल पिस्सू की एक नई प्रजाति की खोज की है। अन्य जल पिस्सूओं के विपरीत इस प्रजाति ने अपने तैरने की क्षमता खो दी है। हालांकि यह तैरने की जगह काई जमा पानी की पतली परतों के माध्यम से रेंगती है। यह प्रजाति पश्चिमी घाट में पुराने किलों की दीवारों और सीढ़ियों पर काई लगे गीले स्थानों पर देखी गई है।

वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति के बारे में जानकारी साझा करते हुए जर्नल ऑफ क्रस्टेशियन बायोलॉजी में एक नया अध्ययन प्रकाशित किया है। यह अध्ययन मेंडेल विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता के वैन डेम और यूनिवर्सिटी ऑफ गुएल्फ से सम्बन्ध रखने वाले शोधकर्ता समीर एम पाध्ये द्वारा किया गया है।

गौरतलब है कि जल पिस्सू छोटे क्रस्टेशियन जीव होते हैं जो पानी में मौजूद शैवाल को छानकर खाते हैं। यह जीव आम तौर पर झीलों, नदियों और तालाबों में रहते हैं, लेकिन इनमें से कुछ ने अपने आप को जमीन पर पानी की पतली परतों में पनपने और विकसित करने के लिए अनुकूलित कर लिया है।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं के मुताबिक यह हड्डी रहित जीव अपने पर्यावरण में होने वाले बड़े बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। ऐसे में यह खोज दर्शाती है कि जलपिस्सू के आवास अभी भी अछूते, स्वस्थ और विविधतापूर्ण जीवन से भरे हुए हैं।

बायोलॉजिया लाइफ साइंसेज एलएलपी, अहमदनगर और यूनिवर्सिटी ऑफ गुएल्फ से सम्बन्ध रखने वाले शोधकर्ता समीर एम पाध्ये ने अध्ययन के दौरान एक मॉस के नमूने एकत्र किए। इसमें दस वयस्क मादाएं और एक वयस्क नर पिस्सू मौजूद थे। अपनी खोज के दौरान उन्होने चेक गणराज्य में मेंडेल विश्वविद्यालय के वैन डेम के सहयोग से इन जीवों की शारीरिक विशेषताओं का विश्लेषण किया है।

क्या बनाता है इस प्रजाति को खास

इस प्रजाति का नाम भारत के नाम पर ब्रायोस्पिलस (इंडोब्रियोस्पिलस) भरतिकस रखा गया है। यह ओरिएंटल क्षेत्र में वर्णित अपनी जीनस की पहली प्रजाति है। अनोखी बात यह यह कि यह तैरने की बजाय मानसून के दौरान काई से ढकी चट्टानों पर पानी की पतली परतों के माध्यम से रेंगती है।

ब्रायोस्पिलस प्रजातियां जिस क्षेत्र में पाई जाती हैं, वो भी उन्हें खास बनाता है। वैज्ञानिकों का अंदेशा है कि यह संभवतः गोंडवाना से जुड़ा एक पुरातन जीव है, जिसके करीबी रिश्तेदार अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, न्यूजीलैंड और अब भारत जैसे स्थानों में मौजूद हैं।

शोध के मुताबिक यह भारत में अब तक खोजे गए सबसे छोटे जीवों में से एक है। यह उत्तरी पश्चिमी घाट में केवल दो स्थानों पर खोजा गया है।

शोध के मुताबिक यह काई पर मोटे, मलबे भरे पानी में रेंगने के लिए अपने एंटीना का सहारा लेती है। इन एंटीना में बड़े-बड़े कांटें होते हैं, जो इसे आगे और बगल में बढ़ने में मदद करती हैं। चूंकि यह जीव बेहद कम रोशनी में रहते हैं, इसलिए इनके पास मुख्य आंखें नहीं होती है। बात दें कि इन्हें अपना भोजन खोजने के लिए रंगों को देखने की आवश्यकता नहीं होती।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, मानसून के मौसमों के बीच इनके काई के घर सूख जाते हैं। इसकी वजह से यह जलपिस्सू, आराम से अपने अंडे देते हैं, जो बारिश के लौटने पर फूटते हैं।